Sunday, November 21, 2010

अपने ही दूरस्थ हो गए

    अपने ही दूरस्थ हो गए
     उम्र बड़ी हम पस्त हो गए
    थे हम प्रखर सूर्य चमकीले
    लगता है अब अस्त हो गए
देखे थे जो हमने मिल कर
     वो सब सपने ध्वस्त हो गए
    हमको छोड़ किसी कोने में
     सब अपने में मस्त हो गए
रोटी, कपडा, खर्चा, पानी
      दे कर के आश्वस्त हो गए
अपनों के बेगानेपन की
    बीमारी से ग्रस्त हो गए
   अब तो जल्दी राम उथले
  हम तो इतने त्रस्त हो गए

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