बुढ़ापा -शाश्वत सत्य
मेरे मन में चाह हमेशा दिखूं जवां मै
और जवानी ढूँढा करता ,यहाँ वहां मै
कभी केश करता काले ,खिजाब लगाके
शक्तिवर्धिनी कभी दवा की गोली खा के
कभी फेशियल करवाता सलून में जाकर
नए नए फैशन से खुद को रखूँ सजा कर
और कभी परफ्यूम लगाता हूँ मै मादक
करता हूँ जवान दिखने की कोशिश भरसक
जिम जाता हूँ ,फेट हटाने ,रहने को फिट
जिससे मेरी तरफ लड़कियां हो आकर्षित
पर किस्मत की बेरहमी करती है बेकल
जब कन्याएं,महिलायें कहती है 'अंकल'
लाख छिपाओ,उम्र न छिपती ,तथ्य यही है
मै बूढा हो गया ,शाश्वत सत्य यही है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मेरे मन में चाह हमेशा दिखूं जवां मै
और जवानी ढूँढा करता ,यहाँ वहां मै
कभी केश करता काले ,खिजाब लगाके
शक्तिवर्धिनी कभी दवा की गोली खा के
कभी फेशियल करवाता सलून में जाकर
नए नए फैशन से खुद को रखूँ सजा कर
और कभी परफ्यूम लगाता हूँ मै मादक
करता हूँ जवान दिखने की कोशिश भरसक
जिम जाता हूँ ,फेट हटाने ,रहने को फिट
जिससे मेरी तरफ लड़कियां हो आकर्षित
पर किस्मत की बेरहमी करती है बेकल
जब कन्याएं,महिलायें कहती है 'अंकल'
लाख छिपाओ,उम्र न छिपती ,तथ्य यही है
मै बूढा हो गया ,शाश्वत सत्य यही है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'