Sunday, September 21, 2014

             कल की यादें-आज की बातें

                             १
याद हमको आते वो दिन ,हम बड़े दिलफेंक थे
दिखने में लगते थे असली ,पर असल में 'फेक'थे
जवानी में खूब जम कर हमने मारी मस्तियाँ ,
अब तो टीवी  हो या बीबी,  दूर से बस  देखते
                    २
हो रही मुश्किल बहुत अब ,कैसे टाइम 'किल'करें
व्यस्त है लाइन सभी की, किसे 'मोबाइल ' करें
इस तरह के बुढ़ापे में ,हो गए हालात  है,
गया 'थ्रिल',तन शिथिल ,अब क्या किसीसे हम मिल करें
                   ३
अपने  बूढ़े दोस्तों संग ,थोड़ी गप्पें हाँक लो
बैठ कर के ,गैलरी में,थोड़ा नीचे झाँक लो
'एक्स्ट्रा करिक्यूलियर एक्टिविटी' के नाम पर,
पड़ोसन क्या कर रही,नज़रें बचा कर ताक लो

घोटू

Sunday, September 14, 2014

       बीत गए दिन

बीत गए दिन अवगुंठन के ,
         अब केवल सहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
          अपना मन बहला लेते है
जो पकवान रोज खाते थे,
           कभी कभी ही चख पाते है
जोश जवानी का गायब है ,
           अब जल्दी ही थक जाते है
'आई लव यू 'उनको कह देते ,
           उनसे भी कहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
          अपना मन बहला लेते है
कभी दर्द मेरा सर करता ,
            कभी पेट दुखता तुम्हारा
कभी थकावट, बने रुकावट,
            एक दूजे  से करें किनारा
कोई न कोई बहाना करके ,
             इच्छा को टहला देते  है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
            अपना मन बहला लेते  है
गया ज़माना रोज चाँद का ,
           जब दीदार हुआ करता  था
मौज ,मस्तियाँ होती हर दिन ,
          जब त्योंहार हुआ करता था
बीती यादों की गंगा में,
           बस खुद को  नहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
           अपना मन बहला लेते है
 शाश्वत सत्य बुढ़ापा लेकिन ,
             उमर बढ़ी और जोश घट गया      
एक दूजे की पीड़ा में ही ,
               हम दोनों का ध्यान  बंट  गया
 शारीरिक सुख ,गौण हो गया ,
              मन का सुख पहला  लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता  कर ,
              अपना मन बहला लेते  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '    

Friday, September 5, 2014

              उम्र के त्योंहार में

क्यों परेशां हो रहे हो  ,तुम यूं  ही  बेकार में
आएगा जब समापन इस उम्र के त्योंहार में
यज्ञ की आहुतियों से ,स्वाह तुम हो जाओगे,
राख यमुना में बहेगी,हड्डियां  हरद्वार  में
तुम उठे,दो चार दिन में 'उठाला 'हो जाएगा ,
तुम्हारी तस्वीर भी,छप सकती है अखबार में
सांस राहत की मिलेगी ,तुम्हारी संतान को ,
तुम्हारी दौलत बंटेगी ,जब सभी परिवार में
अब तो निपटा देते बरसी ,लोग बस एक माह में,
श्राद्ध में  याद आ सकोगे,साल में, एक बार  में
जब तलक संतान है ,बन कर के उनकी वल्दियत,
उनकी तुम पहचान बन कर,रहोगे   संसार   में
सोच कर यह , घर का इंटीरियर ना  जाए  बिगड़ ,
तुम्हारी  तस्वीर भी ना टंगेगी ,दीवार  में
जब तलक है दम में दम और बसे तन में प्राण है,
तब तलक ही तुम्हारा ,अस्तित्व है संसार में

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, September 3, 2014

         जोश- बुढ़ापे में

उठो,जागो,पड़े रहने से न कुछ हो पायेगा ,
                     अगर कुछ  करना है तुमको ,खड़ा होना  चाहिए
यूं ही ढीले पड़े रह कर ,काम हो सकता नहीं,
                      जोश हो और हौसला भी,बड़ा होना  होना  चाहिए
इस बुढ़ापे  में भला ये सब कहाँ हो पायेगा ,
                       ये ग़लतफ़हमी तुम्हारी ,सोचना ये छोड़ दो,
पुरानी माचिस तीली भी लगा देती आग है ,
                        मसाला माचिस पर लेकिन ,चढ़ा होना चाहिए

घोटू