मै तो बस सूखा सावन हूँ
ना मुरली की तान न राधा ,एसा सूना बृन्दावन हूँ
एक सुंदरी मधुबाला का ,पल पल कर ढलता योवन हूँ
बूँद बूँद आँखों से बहता ,गंगा जमना का संगम हूँ
अपनों का बेगाना पन या सास बहू वाली अनबन हूँ
कृष्ण पक्ष का घटता शशि हूँ या फिर जैसे चन्द्र ग्रहण हूँ
सीखा जहाँ सभी ने चलना ,मै पुरखों का वो आँगन हूँ
आज रक्त में जा घुल बैठा,बातों का वो मीठापन हूँ
गो मुख में जा दुग्ध बनेगा,मै तो एसा सूखा तृण हूँ
भट्टी में तप गया समय की ,तब जाकर निखरा कुंदन हूँ
विस्तृत ज्ञान हो गया विस्मृत ,शेष बचा वो पागलपन हूँ
थका थका सा मेरा तन है ,मै तो बुझा बुझा सा मन हूँ
मै तो बस सूखा सावन हूँ
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Budhapa is the time wen u r supposed to rest on ur laurels;wen the younger generation whom u hv nurtured with so much luv and care tries to return back all that u hv done for them in whatever way they can.But its often a dreaded sentence;a phase wen younger ones grow out of their use of you & desert u;when poor health and ungrateful children unite forces to make life miserable.This blog of poems of Ghotoo reflect experiences of life in old age,in which u’ll find your own experience reflected
Sunday, December 26, 2010
Friday, December 24, 2010
वो बात जवानी वाली थी
वो बात जवानी वाली थी
तुम्हारे कोमल हाथो का
स्पर्श बड़ा रोमांचक था
तन में सिहरन भर देता था
मन में सिहरन भर देता था
कुछ पागलपन भर देता था
और जब गुबार थम जाता था
तब कितनी राहत मिलती थी
अब आई उम्र बुढ़ापे की
तुम भी बूढी, मै भी बूढ़ा
जब पावों में होती पीड़ा
तुम हलके हलके हाथो से
जब मेरे पाँव दबाती हो
सारी थकान मिट जाती है
या फिर झुर्राए हाथों से
तुम मेरी पीठ खुजाती हो
सारी खराश हट जाती है
स्पर्श तुम्हारे हाथों का
अब भी कितनी राहत देता
तुम भी वोही, हम भी वोही
ये सारा असर उमर का है
तुम्हारे कोमल हाथो का
स्पर्श बड़ा रोमांचक था
तन में सिहरन भर देता था
मन में सिहरन भर देता था
कुछ पागलपन भर देता था
और जब गुबार थम जाता था
तब कितनी राहत मिलती थी
अब आई उम्र बुढ़ापे की
तुम भी बूढी, मै भी बूढ़ा
जब पावों में होती पीड़ा
तुम हलके हलके हाथो से
जब मेरे पाँव दबाती हो
सारी थकान मिट जाती है
या फिर झुर्राए हाथों से
तुम मेरी पीठ खुजाती हो
सारी खराश हट जाती है
स्पर्श तुम्हारे हाथों का
अब भी कितनी राहत देता
तुम भी वोही, हम भी वोही
ये सारा असर उमर का है
Monday, December 20, 2010
आशीर्वाद
आशीर्वाद
तुम जीवो जैसे तुम चाहो,हम जिए जैसे हम चाहे
हम में पीड़ी का अंतर है ,अलग अलग है अपनी राहे
हाँ ये सच है,उंगली पकड़,सिखाया हमने,तुमको चलना
हमने तुमको राह बताई,तुमने सीखा आगे बढ़ना
लेकिन तुम स्वच्छंद गगन में,अगर चाहते हो खुद उड़ना
तुम्हारी मंजिल ऊँची है,कई सीडिया तुमको चढ़ना
तुम्हारी गति बहुत तेज है,हम धीरे धीरे चलते है
इसीलिए बढ़ रही दूरिया हम दोनों में ,हम खलते है
हमें छोड़ दो ,आगे भागो ,तुम्हे लक्ष्य है ,अपना पाना
अर्जुन, मछली घूम रही है,तुम्हे आँख में तीर लगाना
आशीर्वाद हमारा तुमको,तुम अपनी मंजिल को पाओ
हम पगडण्डी पर चल खुश ,तुम राजमार्ग पर दोड लगाओ
चूमे चरण सफलता लेकिन ,मंजिल पाकर फूल न जाना
जिन ने तुमको राह दिखाई,उन अपनों को भूल न जाना
ढूंढ रही तुम में अपनापन,धुंधली ममता भरी निगाहे
तुम जियो जैसे तुम चाहो,हम जीए जैसे हम चाहे
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तुम जीवो जैसे तुम चाहो,हम जिए जैसे हम चाहे
हम में पीड़ी का अंतर है ,अलग अलग है अपनी राहे
हाँ ये सच है,उंगली पकड़,सिखाया हमने,तुमको चलना
हमने तुमको राह बताई,तुमने सीखा आगे बढ़ना
लेकिन तुम स्वच्छंद गगन में,अगर चाहते हो खुद उड़ना
तुम्हारी मंजिल ऊँची है,कई सीडिया तुमको चढ़ना
तुम्हारी गति बहुत तेज है,हम धीरे धीरे चलते है
इसीलिए बढ़ रही दूरिया हम दोनों में ,हम खलते है
हमें छोड़ दो ,आगे भागो ,तुम्हे लक्ष्य है ,अपना पाना
अर्जुन, मछली घूम रही है,तुम्हे आँख में तीर लगाना
आशीर्वाद हमारा तुमको,तुम अपनी मंजिल को पाओ
हम पगडण्डी पर चल खुश ,तुम राजमार्ग पर दोड लगाओ
चूमे चरण सफलता लेकिन ,मंजिल पाकर फूल न जाना
जिन ने तुमको राह दिखाई,उन अपनों को भूल न जाना
ढूंढ रही तुम में अपनापन,धुंधली ममता भरी निगाहे
तुम जियो जैसे तुम चाहो,हम जीए जैसे हम चाहे
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Sunday, December 19, 2010
दिया
दिया
माटी का तन
रस मय जीवन
में हूँ दिया
मैंने बस दिया ही दिया
तिमिर त्रास को भगा
जगती को जगमगा
मैंने सदा प्रकाश दिया
निज काया को जला
करने सब का भला
प्यार का उजास दिया
जब तक था जीवन रस
जलता रहा मै बस
औरों का पथ प्रदर्शन करता रहा
स्वार्थ को छोड़ पीछे
मेरे स्वम के नीचे
अँधियारा पलता रहा
और दुनिया ने मुझे क्या दिया
रिक्त हुआ ,फेंक दिया
मै हू दिया
माटी का तन
रस मय जीवन
में हूँ दिया
मैंने बस दिया ही दिया
तिमिर त्रास को भगा
जगती को जगमगा
मैंने सदा प्रकाश दिया
निज काया को जला
करने सब का भला
प्यार का उजास दिया
जब तक था जीवन रस
जलता रहा मै बस
औरों का पथ प्रदर्शन करता रहा
स्वार्थ को छोड़ पीछे
मेरे स्वम के नीचे
अँधियारा पलता रहा
और दुनिया ने मुझे क्या दिया
रिक्त हुआ ,फेंक दिया
मै हू दिया
Saturday, December 18, 2010
नव वर्ष
नव वर्ष
नए वर्ष का जशन मनाओ
आज ख़ुशी आनंद उठाओ
गत की गति से आज आया है
लेकिन तुम यह भूल न जाओ
कल कल था तो आज आया है
कल के कारन कल आएगा
आने वाले कल की सोचो
यही आज कल बन जायेगा
कल भंडार अनुभव का है
कल से सीखो, कलसे जानो
कल ने ही कांटे छाटे थे
किया सुगम पथ ,इतना मनो
आज तुम्हे कुछ करना होगा
तो ही कल के काम आओगे
कल की बात करेगी बेकल
जब तुम खुद कल बन जाओगे
यह तो जीवन की सतिता है
कल कल कर बहते जाओ
आने वाले कल की सोचो
बीते कल को मत बिसराओ
नए वर्ष का जशन मनाओ
आज ख़ुशी आनंद उठाओ
गत की गति से आज आया है
लेकिन तुम यह भूल न जाओ
कल कल था तो आज आया है
कल के कारन कल आएगा
आने वाले कल की सोचो
यही आज कल बन जायेगा
कल भंडार अनुभव का है
कल से सीखो, कलसे जानो
कल ने ही कांटे छाटे थे
किया सुगम पथ ,इतना मनो
आज तुम्हे कुछ करना होगा
तो ही कल के काम आओगे
कल की बात करेगी बेकल
जब तुम खुद कल बन जाओगे
यह तो जीवन की सतिता है
कल कल कर बहते जाओ
आने वाले कल की सोचो
बीते कल को मत बिसराओ
बुढ़ापा
बुढ़ापा
बिना बुलाये ही आ जाता ,दबे पाँव चुपचाप बुढ़ापा
कभी ख़ुशी से झोली भरता ,या देता संताप बुढ़ापा
संचित पुण्यो का प्रतिफल या पूर्व जन्म का पाप बुढ़ापा
व्यथित ह्रदय और थका हुआ तन ,जीवन का अभिशाप बुढ़ापा
जीवन की मधुरिम संध्या या ढलने का आभास बुढ़ापा
टिम टिम करती जीवन लो का बुझता हुआ उजास बुढ़ापा
मृत्यु द्वार नजदीक आ गया ,आकर देता थाप बुढ़ापा
यादों के सागर में तैरो,हंस कर काटो आप बुढ़ापा
बिना बुलाये ही आ जाता ,दबे पाँव चुपचाप बुढ़ापा
कभी ख़ुशी से झोली भरता ,या देता संताप बुढ़ापा
संचित पुण्यो का प्रतिफल या पूर्व जन्म का पाप बुढ़ापा
व्यथित ह्रदय और थका हुआ तन ,जीवन का अभिशाप बुढ़ापा
जीवन की मधुरिम संध्या या ढलने का आभास बुढ़ापा
टिम टिम करती जीवन लो का बुझता हुआ उजास बुढ़ापा
मृत्यु द्वार नजदीक आ गया ,आकर देता थाप बुढ़ापा
यादों के सागर में तैरो,हंस कर काटो आप बुढ़ापा
Sunday, December 5, 2010
अब भी
अब भी
अब भी तेरा रूप महकता जेसे चन्दन
अब भी तुझको छूकर तन में होती सिहरन
अब भी चाँद सरीखा लगता तेरा आनन्
अब भी तुझको देख मचल जाता मेरा मन
अब भी तेरे नयना उतने मतवाले है
अब भी तेरे होंठ भरे रस के प्याले है
अब भी तेरी बाते मोह लेती है मन को
अब भी तेरा साथ बड़ा देता धड़कन को
मुझे अप्सरा लगती अब भी, तू ही हूर है
वही रूप है,वही जवानी, वही नूर है
अब भी तेरी रूप अदाए ,उतनी मादक
वो ही नशा है,वो ही मज़ा है,तुझमे अब तक
तुझ पर अब तक हुआ उम्र का असर नहीं है
मेरी उम्र बाद गयी तो क्या ,नज़र वही है
अब भी मुझको रात रात भर तू तड फाती
तेरे खर्राटो से मुझको नीद न आती
&nbs
अब भी तेरा रूप महकता जेसे चन्दन
अब भी तुझको छूकर तन में होती सिहरन
अब भी चाँद सरीखा लगता तेरा आनन्
अब भी तुझको देख मचल जाता मेरा मन
अब भी तेरे नयना उतने मतवाले है
अब भी तेरे होंठ भरे रस के प्याले है
अब भी तेरी बाते मोह लेती है मन को
अब भी तेरा साथ बड़ा देता धड़कन को
मुझे अप्सरा लगती अब भी, तू ही हूर है
वही रूप है,वही जवानी, वही नूर है
अब भी तेरी रूप अदाए ,उतनी मादक
वो ही नशा है,वो ही मज़ा है,तुझमे अब तक
तुझ पर अब तक हुआ उम्र का असर नहीं है
मेरी उम्र बाद गयी तो क्या ,नज़र वही है
अब भी मुझको रात रात भर तू तड फाती
तेरे खर्राटो से मुझको नीद न आती
&nbs
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
खाते गाते जीवन काटे
गरम जलेबी गाजर हलवा
रबड़ी के लच्छो का जलवा
दही बड़े ,आलू की टिक्की
दोने में भर ,दोनों चाटे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
जाए सिनेमा, देखे पिक्चर
काफी पिए,बरिस्ता जाकर
घर आकर तुम हमें खिलाओ
आलू वाले गरम परांठे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
गाये मुन्नी की बदनामी
या शीला की मस्त जवानी
कजरारे कजरारे नयना
गाकर दूर करे सन्नाटे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
खाते गाते जीवन काटे
गरम जलेबी गाजर हलवा
रबड़ी के लच्छो का जलवा
दही बड़े ,आलू की टिक्की
दोने में भर ,दोनों चाटे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
जाए सिनेमा, देखे पिक्चर
काफी पिए,बरिस्ता जाकर
घर आकर तुम हमें खिलाओ
आलू वाले गरम परांठे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
गाये मुन्नी की बदनामी
या शीला की मस्त जवानी
कजरारे कजरारे नयना
गाकर दूर करे सन्नाटे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
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