Wednesday, November 27, 2013

               जवानी सलामत रहे

नाती ,पोते पोतियों की शादियां होने लगी ,
                उसपे भी हम कहते हैं कि सलामत है जवानी
इसी जिंदादिली ने है अभी तक ज़िंदा रखा ,
                  वरना अब तक खत्म हो जाती हमारी कहानी
बुढ़ापा तन का नहीं,अहसास मन का अधिक है ,
                   जंग हमको बुढ़ापे से ,लड़ते रहना   चाहिये
सोचता है जिस तरह ,इंसान बनता उस तरह,
                    हमेशा खुद को जवां ,हमको समझना चाहिये
घोटू     

Thursday, November 21, 2013

माँ बीमार है
दिल थोडा कमजोर हो गया,घबराता है
थोडा सा भी खाने से जी मचलाता  है
आधी से भी आधी रोटी खा पाती है
अस्पताल का नाम लिया तो घबराती है
साँस फूलने लगती जब कुछ चल लेती है
टीवी पर ही कथा भागवत सुन लेती है
जी घबराता रहता है ,आता बुखार है
माँ बीमार है
प्रात उठ स्नान ध्यान पूजन आराधन
गीताजी का पठन, आरती, भजन कीर्तन
फिर कुछ खाना,ये ही दिनचर्या होती थी
और रात को हाथ सुमरनी ले सोती थी
ये दिनचर्या बीमारी में छूट गयी है
कमजोरी के कारण थोड़ी टूट गयी है
बीमारी की लाचारी से बेक़रार है
माँ बीमार है
फ़ोन किसी का आता है,खुश हो जाती है
कोई मिलने आता है,खुश हो जाती है
याद पुरानी आती है,गुमसुम हो जाती
बहुत पुरानी बाते खुश हो होकर बतलाती
अपना गाँव मकान , मोहल्ला याद आते है
पर ये तो हो गयी पुरानी सी बाते है
एक बार फिर जाय वहां ,मन बेक़रार है
माँ बीमार है
बचपन में मै जब रोता था,माँ जगती थी
बिस्तर जब गीला होता था,माँ जगती थी
करती दिन भर काम  ,रात को थक जाती थी
दर्द हमें होता था और माँ जग जाती थी
अब जगती है,नींद न आती ,तन जर्जर  है
फिर भी सबके लिए काम , करने तत्पर है
ये ममता ही तो है ,माँ का अमिट प्यार है
माँ बीमार है
उसके बोये हुए वृक्ष फल फूल रहे है
सभी याद रखते है पर कुछ भूल रहे है
सबसे मिलने ,बाते करने का मन करता
देखा उसकी आँखों में संतोष झलकता
और जब सब मिलते है तो हरषा करती है
सब पर आशीर्वादो की बर्षा करती है
अपने बोये सब पोधों से उसे प्यार है
माँ बीमार है
यही प्रार्थना हम करते हैं हे इश्वर
उनका साया बना रहे हम सबके ऊपर
जल्दी से वो ठीक हो जाये पहले जैसी
प्यार,डांट  फटकार लगाये पहले जैसी
फिर से वो मुस्काए स्वर्ण दन्त चमका कर
हमें खिलाये बेसन चक्की स्वम बना कर
प्रभु से सबकी यही प्रार्थना बार बार है
माँ बीमार है

Monday, November 18, 2013

     घर घर की कहानी

रहो मिल ,बन दूध ,पानी
जिंदगी होती    सुहानी
दूध ही  कहलाओगे तुम
काम में आ जाओगे तुम
तेल,पानी सा न बनना 
कभी भी होगा मिलन ना
तैरते   ही  रहोगे  पर
अलग  अलग ,लिए स्तर
काम कुछ भी आओगे ना
मिलन का सुख पाओगे ना
प्यार हो जो अगर सच्चा
साथ रहना तभी अच्छा
एक में जल भाव जो है
एक तेल स्वभाव  जो है
साथ  ये  बेकार का  है
बस दिखावा  प्यार का है
भिन्न हो विचारधारा
मेल क्या होगा तुम्हारा
अलग रहना ही सही है
क्योंकि सुखकर बस यही है
अलग निज पहचान तो है
आप आते काम तो है
भले ना सहभागिता है
स्वयं की उपयोगिता है
बात यूं तो   है  पुरानी
किन्तु घर घर की कहानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, November 16, 2013

सर्दियों का सितम -बुढ़ापे में

बुढ़ापे में यूं ही ढीली खाल है
सर्दियों के सितम से ये हाल है
हाथ जो थे पहले से ही खुरदुरे ,
                    आजकल तो एकदम झुर्रा गये
महकते थे डाल पर सर तान के
गए दिन,जब बगीचे की शान थे
एक एक कर पंखुड़ियां गिरने लगी ,
                     आजकल हम  और भी कुम्हला गये
रजाई में रात ,घुस ,लेटे रहे
और दिन भर धूप में बैठे रहे
गले में गुलबंद ,सर पर केप है,
                       ओढ़ कर के शाल हम  दुबका गये 
 हमें अपनी जवानी का वास्ता
कभी मियां मारते थे फाख्ता
सर्दियों में चमक चेहरे की गयी ,
                       गया दम ख़म,अब बुरे दिन आ गये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'