Monday, July 28, 2014

'हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा '

बड़े  सख्त दिल के है दीखते जो इन्सां ,
         रहे झाड़ते रौब ,हमेशा ही,जब तब
झलकते  है उनकी भी आँखों में आंसूं,
       विवाह करके बेटी,बिदा करते है जब
बाहर से कोई दिखे सख्त दिल पर ,
       है दिल मोम  का और भरा प्यार सच्चा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
      हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा
अम्मा की गोदी में जब रखता माथा ,
     ममता से अम्मा ,जब  सहलाती सिर  है
आँखों में छा जाती बचपन की यादें ,
    लौट आता प्यारा सा, बचपन वो फिर है
नज़र फिर से आता है ,भोलापन वो ही ,
    वही प्यारी मीठी सी,बातों का  लच्छा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
    हरेक में छुपा  है एक छोटा सा बच्चा
नफासत,नज़ाकत,शराफत का पुतला,
          बड़े ही अदब से ,सदा पेश आता  
बड़े ही सलीके से,काँटा छुरी से ,
          है खाने की टेबल पे ,खाना जो खाता
अकेले में,ठेले पे,खा गोलगप्पे,
          या गोला बरफ का,मज़ा लेता सच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
         हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा
वो बच्चा बड़ा जो हठी जिद्दी होता ,
         जिसे पाने को रहती,चन्दा की चाहत
अगर जिद नहीं उसकी होती है पूरी ,
        उठा लेता ,घर सर पे,करता मुसीबत
उसे अक्स चंदा का पानी में दिखला ,
         नहीं बहला सकते हो,दे  सकते गच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
         हरेक में छुपा है,एक  छोटा  सा बच्चा
बुढ़ापे में आता वो बच्चा निकल कर,
        वो ही जिद,हठीपन और वो ही मचलना
बूढ़ों में ,बच्चों में ,अंतर न रहता ,
        वही खानापीना और डगमग के चलना
बच्चों सी जिद ,रौब लेकिन बड़ों सा ,
        है लाचार तन ,प्यार दिल में है  सच्चा
बड़ा कोई कितना ही बन जाए लेकिन ,
        हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, July 21, 2014

            पुराने खिलाड़ी

न तो देखो धुला कुरता ,फटी बनियान मत देखो
          धड़कता इनके पीछे जो, दीवाना सा है दिल देखो
सफेदी देख कर सर की ,नहीं बिदकाओ  अपना मुंह,
            पुराने हम खलाड़ी है ,कभी हम से तो मिल देखो
       पुराने स्वाद चावल है ,अनुभव का खजाना है 
        चखोगे ,याद रख्खोगे ,माल परखा ,पुराना है
 नए नौ दिन,पुराने सौ दिनों तक काम आते है ,
       इस भँवरे का दिवानापन,कभी फूलों सा खिल देखो                 
'घोटू '
       उम्र है  मेरी तिहत्तर

जिंदगानी के सफर में ,मुश्किलों से रहा लड़ता
आ गया इस मोड़ पर हूँ,कभी गिरता ,कभी पड़ता
ना किया विश्राम कोई,और रुका ना ,कहीं थक कर
                                           उम्र है मेरी तिहत्तर
जवानी  ने बिदा ले ली ,भले कुछ  मुरझा रहा तन
जोश और जज्बा पुराना ,है मगर अब तलक कायम
आधा खाली दिख रहा पर,भरा है आधा कनस्तर
                                           उम्र है मेरी तिहत्तर  
भले ही सर पर हमारे ,सफेदी सी छा रही  है
पर हमारे हौंसले की ,बुलंदी वो की  वो ही है
दीवारें मजबूत अब भी ,गिर रहा चाहे पलस्तर
                                       उम्र मेरी है तिहत्तर  
छाँव दी कितने पथिक को ,था घना मैं जब तरुवर
दिया पंछी को बसेरा और बहाई हवा शीतल
फल उन्हें भी खिलाएं है,मारा जिनने ,फेंक पत्थर
                                           उम्र मेरी है तिहत्तर
किसी से शिकवा न कोई ,ना किसी को कोसता हूँ
न तो कल को भूल पाता और न कल की सोचता हूँ
पा लिया मैंने बहुत कुछ,जैसा था मेरा मुकद्दर
                                      उम्र मेरी है तिहत्तर
बेसुरी सी हो रही है  उमर के  संग  बांसुरी है
लग गयी बीमारियां कुछ,किन्तु हालत ना बुरी है
ज़रा ब्लडप्रेशर बढ़ा है,खून में है अधिक शक्कर
                                         उम्र है मेरी तिहत्तर
कठिन पथ है ,राह में कुछ ,दिक्कतें तो आ रही है 
चाल है मंथर नदी की ,मगर बहती जा रही है
 कौन जाने कब मिलेगा ,दूर है कितना समंदर
                                        उम्र है मेरी तिहत्तर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, July 15, 2014

           उम्र बढ़ी तो क्या क्या बदला

गठीली थी जो जंघाएँ ,पड़  गयी गांठ अब उनमे ,
              कसा था जिस्म  तुम्हारा ,हुआ अब गुदगुदा सा है
कमर चोवीस इंची थी ,हुई चालीस इंची अब,
              पेट  पर पड़  गए है सल, हुलिया ही जुदा सा  है
लचकती थी कमर तुम्हारी ,चलती थी अदा से जब ,
              आजकल चलती हो तुम तो,बदन सारा लचकता है
हिरन जैसी कुलाछों में,आयी गजराज की मस्ती,
              दूज का चाँद था जो ,हो गया ,अब वो पूनम का है
भले ही आगया है फर्क काफी तन में तुम्हारे ,
               तुम्हारे मन का भोलापन ,वही प्यारा सा है निर्मल
आज भी प्यार से जब देखती हो,जुल्मी नज़रों से ,
              दीवाना सा मैं हो जाता,मुझे कर देती तुम  पागल
कनक की जो छड़ी सा था ,हुआ है तन बदन दूना ,
               तुम्हारा प्यार मुझसे हो गया है चौगुना   लेकिन
हो गए इस तरह आश्रित है हम एक दूजे पर ,
               न रह सकती तुम मेरे बिन,न मैं रहता तुम्हारे बिन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

Sunday, July 13, 2014

           पुराना माल -तीन चतुष्पद
                              १
पुराने माल है लेकिन,ढंग से रंग रोगन कर ,
         किया 'मेन्टेन 'है खुद को ,चमकते ,साफ़ लगते है
कमी जो भी है अपनी ,हम,उसे ऐसा छिपाते है,
          लोग ये कहते है तंदरुस्त कितने   आप लगते है
हरेक अंग आजकल नकली ,हमें बाज़ार में मिलता ,
           आप  इम्प्लांट करवा लो,लगालो बाल भी नकली , 
विटामिन और ताक़त की ,गोलियां खूब बिकती है,
           जवाँ खुद ना ,जवानो के ,मगर हम बाप  लगते  है
                          २    
तीन ब्लेडों के रेज़र से,सफाई गाल की करते ,
           लगा कर 'फेयर एंड लवली'रूप अपना निखारा  है
रँगे  है बाल हमने 'लोरियल'की हेयर डाई से,
            कराया 'फेसियल' सेलून' में ,खुद को संवारा है 
 आज भी जब कलरफुल 'ड्रेस में सज कर निकलते है,
            लड़कियां 'दादा' ना  कहती, हमें 'अंकल'बुलाती है,
बूढ़ियाँ भी हमें नज़रें बचाके देख लेती है ,
                 कहे कोई हमें बूढा ,ये  हमको ना गंवारा है 
                           ३
'सेल'है 'एंड सीजन 'का,माल ये सस्ता हाज़िर है ,
          है डिस्काउंट भी अच्छा , ये मौका फिर न पाएंगे
पके है पान खा  लो तुम,न सर्दी ना जुकाम होगा ,
         बहल कुछ तुम भी जाओगे ,बहल कुछ हम भी जाएंगे
पुराना माल है इसको,समझ एंटीक ही ले लो,
       समय के साथ 'वेल्यूं' बढ़ती जाती ऐसी चीजों की,
उठाओ लाभ तुम इसका,ये ऑफर कुछ दिनों का है,
         हाथ से जाने ना दो तुम   ,ये मौका फिर न पाएंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
         बरसात आई

आज बरसात आई है
मुद्द्तों बाद आयी है
मचलने लग गया है मन,
लिए जज्बात आयी है
हुआ मौसम बड़ा बेहतर
भीग कर जाएँ हम हो तर
 साथ बूंदों के हम नाचें,
मज़ा मौसम का लें जी भर
देख कर तेरा भीगा तन ,
रहूँ ना मैं भी आपे में
मज़ा मुझको जवानी का,
मिले फिर से बुढ़ापे में

घोटू

Sunday, July 6, 2014

       बूढ़ों में भी दिल होता है

होता सिर्फ जिस्म बूढा है,
जो कुछ नाकाबिल होता है
पर जज्बात भड़कते रहते,
बूढ़ों में भी दिल होता है
सबसे प्यार महब्बत करना
और हुस्न की सोहबत करना
ताक,झाँक,छुप कर निहारना
चोरी चोरी  ,नज़र   मारना
जब भी देखें , फूल सुहाना
भँवरे सा उसपर  मंडराना
सुंदरता की  खुशबू  लेना
प्यार लुटाना और दिल देना
ये सब बातें, उमर न देखे
निरखें हुस्न ,आँख को सेंकें
दिल पर अपने काबू रखना ,
उनको भी मुश्किल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
उनके दिल का मस्त कबूतर
उड़ता रहता नीचे , ऊपर 
लेता इधर उधर की खुशबू
करता रहता सदा गुटरगूं
 घरकी चिड़िया  रहती घर में
खुद उड़ते रहते अम्बर मे
चाहे रहती, ढीली  सेहत
पर रहती अनुभव की दौलत
काम बुढ़ापे में जो आती
उनकी दाल सदा  गल जाती 
दंद फंद कर के कैसे भी ,
बस पाना मंज़िल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
जब तक रहती दिल की धड़कन
तब तक रहता दीवानापन
भले बरस वो ना पाते है
लेकिन बादल तो छाते है
हुई नज़र धुंधली हो चाहे
माशूक ठीक नज़र ना आये
होता प्यार मगर अँधा है
चलता सब गोरखधंधा है
भले नहीं करते वो जाहिर
अपने फ़न में होते माहिर
कैसे किसको जाए पटाया,
ये अनुभव हासिल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'