Saturday, February 21, 2015

      चौहत्तरवें जन्मदिन पर -जीवन संगिनी से

उमर बढ़ रही ,पलपल,झटझट
 हुआ तिहत्तर मैं   ,तुम अड़सठ 
एक दूसरे पर अवलम्बित ,
एक सिक्के के हम दोनों पट
      सीधे सादे ,मन के सच्चे    
      पर दुनियादारी में कच्चे
     बंधे भावना के बंधन में,
    पर दुनिया कहती हमको षठ
कोई मिलता ,पुलकित होते 
याद कोई आ जाता ,रोते
तुम भी पागल,हम भी पागल,
 नहीं किसी से है कोई घट
       पलपल जीवन ,घटता जाता
      भावी कल ,गत कल बन जाता
       कभी चांदनी है पूनम की,
      कभी  अमावस का श्यामल पट
इस जीवन के  महासमर में
हरदम हार जीत के डर  में
हमने हंस हंस कर झेले है,
पग पग पर कितने ही संकट
      मन में क्रन्दन ,पीड़ा  ,चिंतन
      क्षरण हो रहा,तन का हर क्षण
      अब तो ऐसे लगता जैसे ,
      देने लगा  बुढ़ापा   आहट

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, February 12, 2015

           औलाद का सुख

हे परवरदिगार !
ये खाकसार
है तेरा बहुत शुक्रगुजार
तूने मुझे बक्शें है दो दो चश्मेचिराग
दोनों ही बेटे ,लायक,काबिल और लाजबाब
अच्छे ओहदों पर दूर दूर तैनात है
अपनी वल्दियत में  मेरा नाम लिखते है,
ये मेरे लिए फ़क्र की बात है 
लोग उनकी तारीफ़ करते है,गुण  गाते है
और वो भी जी जान से अपना फर्ज निभाते है
पर काम में इतने मशगूल  रहते है कि ,
अपने माबाप के लिए ,
बिलकुल भी समय नहीं निकाल पाते है
मेरे मौला !
तेरा तहेदिल से शुक्रिया
तूने जो भी दिया ,अच्छा दिया
पर काश!
तू मुझे दे देता एक और नालायक औलाद
जो भले ही कोई बड़ा काम तो नहीं करती ,
पर बुढ़ापे में तो रहती हमारे साथ
उम्र के इस मोड़ पर हमारा  ख्याल रखती ,
और सहारा देती ,पकड़ कर हमारा हाथ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                      उम्र-ठगिनी

वक़्त चलता था हमारे साथ में ,
                      उम्र के संग तबदीली यूं  छागयी
नींद भी गुस्ताख़ अब होने लगी,
                       हम न सोये,उसके पहले आ गयी
आजकल तो ढलता है दिन बाद में,
                       उसके पहले ढलने लग जाते है हम
साँझ घिरते ,लगता छाई रात है ,
                       और उस पर नींद ढाती है सितम
सपन भी तो आजकल आते नहीं ,
                        कहते है कि आते आते थक गए
एक भी अंजाम तक पहुंचा नहीं ,
                         हमारे संग इस तरह वो पक गए   
 हमारी मर्ज़ी मुताबिक़ कल तलक,
                         चला करती थी हवायें ,बेदखल
अपनी मन मर्जी की सब मालिक हुई ,
                      बदला बदला रुख है उनका आजकल     
आफताबी चमक थी हममें कभी ,
                       पीड़ाओं की बदलियों ने  ढक  लिया
'माया ठगिनी' को बहुत हमने ठगा ,
                        'उम्र ठगिनी'ने हमें पर ठग लिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'