Sunday, September 18, 2016

पश्चाताप

मैंने गर्वोन्वित हो सबको किया तिरस्कृत ,
     मेरे माँ और बाप,बहन भाई थे अच्छे
जैसा मैंने किया ,मिला मुझको भी वैसा ,
     मुझको नहीं पूछते ,बिलकुल,मेरे बच्चे
मैंने कितने मन्दिर और देवता पूजे ,
      मातृदेवता,पितृदेवता भूला  गया मैं
वो जो हरदम ,मेरे आंसू रहे पोंछते,
      उनकी धुंधलाई आँखों को रुला गया मै
तीर्थयात्राएं की ,अन्नक्षेत्र खुलवाये ,
     जगह जगह पर मैंने करवाये भंडारे
लेकिन घर के एक कोने में गुमसुम बैठे ,
    जो मिल जाता ,खा लेते ,माँ बाप बिचारे
दीनो को कम्बल बंटवा ,फोटो खिंचवाए ,
     फटी रजाई ,माँ की लेकिन बदल न पाया
सच तो ये है ,मैंने जैसा ,जो बोया था ,
      आज बुढापे में,वैसा ही फल है पाया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
श्री गणेश उचावः

एक रिटायर हुए सज्जन
कर रहे थे गणपति बप्पा का आराधन
'हे बप्पा ,मै अब हो रहा हूँ रिटायर
अपनी संतानो पर रहूंगा निर्भर
तू उन्हें इतनी सदबुद्धि दे
कि वो अपने माँ बाप का ख्याल रखे
गणपति बप्पा बोले वत्स ,
ये संसार का नियम सदा से चला आता है
ज्यादा दिनों तक किसी का रहना ,
किसी को भी नहीं सुहाता है
तुम्ही मुझे बप्पा बप्पा कह कर
बड़े प्रेम से पूजते हो पर
डेढ़ दिन या तीन दिन ,
या ज्यादा से ज्यादा दस दिन में
मुझे विसर्जित देते हो कर
माँ का भी, नवरात्रों में ,
नौ दिन तक ही करते हो पूजन
और फिर कर देती हो ,
उसका भी विसर्जन
तो जब हम देवताओं के साथ ,
आदमी का ऐसा  व्यवहार है
तो ज्यादा दिन टिकने पर ,
अगर होता तुम्हारा तिरस्कार है
तो तुम्हे इसके लिए रहना होगा तैयार
क्योंकि बड़ा प्रेक्टिकल होता है ये संसार

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, September 2, 2016

अवमूल्यन

अपने जमाने में ,
मात्र पांच सौ रूपये महीने की पगार से ,
अपने पूरे परिवार को पालनेवाला पिता ,
 अपने बेटे के साथ
पांच सितारा होटल में डिनर के बाद
जब वेटर को पांच सौ रूपये की ,
टिप देते हुए देखता है 
तो शंशोपज में पड़  जाता है कि ,
अपने बेटे की सम्पन्नता पर अभिमान करे
या अपने अवमूल्यन का करे अहसास

घोटू
अंतिम पीढ़ी

प्रियजन ,
हम हैं ,मानव प्रजाति के ,
वो लुप्तप्रायः होते हुए संस्करण
जिन्होंने बचपन में झेला है ,
अपनी पिछली पीढ़ी का कठोर,
अनुशासन और बन्धन
और अब झेल रहे है ,अगली पीढ़ी के ,
व्यंगबाण और प्रताड़न
हमारी पीढ़ी के ,
बस ,अब भग्नावशेष ही पड़े है
और हम अब,
विलुप्त होने की कगार पर खड़े है

घोटू

Thursday, September 1, 2016

        कब आएगी ?

लेटे लेटे ,मैं तो करता यूं ही प्रतीक्षा,
किन्तु नींद को जब आना है ,तब आएगी

सूरज अस्त हो गया ,तारे नज़र आ रहे ,
धीरे धीरे पसर रही रजनी  काली है
कृष्णपक्ष का चाँद दे रहा है संदेसा ,
रात अमावस की जल्दी आनेवाली है
मौन और स्तब्ध ,दिशाएँ सब की सब है
गहन तिमिर है और सब तरफ सन्नाहट है
धक् धक् करती धड़कन के स्वर ऐसे लगते ,
जैसे कोई के  पदचापों की  आहट  है
मैं बेचैन बहुत हूँ,बाहुपाश में लेकर ,
कब वो मेरी आंखों में आ बस जायेगी
लेटे लेटे मैं तो करता यूं ही प्रतीक्षा ,
किन्तु नींद तो जब आना है तब आएगी

यूं ही मौन ,अकेला ,निश्चल पड़ा हुआ हूँ,
मन्द हवा के झोंकों सी आती है यादे 
जीवन भर के कितने ही  खट्टे मीठे पल ,
कुछ यौवन के प्यारे से वो पल उन्मादे
बार बार पलकें झपका कर कोशिश करता ,
भूल जाऊं,पर रह रह कर वो तड़फाते है
करवट लेता हूँ तो कुछ ऐसा लगता है ,
बिस्तर में कुछ कांटे है ,चुभ चुभ जाते है
कब वह ठगिनी ,चुपके से आकर ,सहलाकर ,
मेरी पलको को,मेरा मन बहलाएगी
लेटे लेटे ,मैं तो करता ,यूं ही प्रतीक्षा,
किन्तु नींद को जब आना है ,तब आएगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'