Thursday, July 28, 2011

विडंबना

विडंबना
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हमारे संस्कार,
हमें सिखाते है,
प्रकृति की पूजा करना
हम वृक्षों को पूजते है,
वट सावित्री पर वट वृक्ष,
और आंवला नवमी पर,
आंवले के वृक्ष की पूजा करते है
और पीपल  हमारे लिए,
सदा पूजनीय रहा है
हम सुबह शाम,
सूर्य को अर्घ्य देते है
हमारे देश की महिलायें,
चाँद को देख कर  व्रत  तोड़ती है
गंगा,जमुना और सभी नदियाँ,
हमारे लिए इतनी पूजनीय है,
कि इनमे  एक डुबकी लगा कर,
हम जनम जनम के पाप से मुक्त हो जाते है
सरोवर,चाहे पुष्कर हो या अमृतसर,
यहाँ का स्नान,हमारे लिए पुण्यप्रदायक है
मिट्टी  के ढेले को भी,
लक्ष्मी मान,उसकी पूजा करते है
और पत्थर को भी पूज पूज,
भगवान बना देते है
लेकिन हमारी संस्कृति हमें,
'मातृ देवो भव' और 'पितृ देवो भव'
भी सिखाती है,
पर हम पत्थरों के पूजक,
पत्थर दिल बन कर,
अपने जीवित जनकों को,
पत्थरों की तरह,
तिरस्कृत कर रहे है;
कैसी विडम्बना है ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Sunday, July 24, 2011

हम सत्तर के

         हम सत्तर के
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हम सत्तर के
हम हस्ताक्षर बीते कल के
हम सत्तर के
कोई समझे अनुभव के घट
कोई समझे कूढा करकट
बीच अधर में लटके है हम,
नहीं इधर के ,नहीं उधर के
हम सत्तर के
कभी तेज थे,बड़े प्रखर थे
उजियारा करते दिन भर थे
अब भी लिए सुनहरी आभा,
ढलते सूरज अस्ताचल के
हम सत्तर के
याद आते वो दिन रह रह के
हम भी महके,हम भी चहके
यौवन था तो खूब उठाया,
मज़ा जिंदगी का जी भरके
हम सत्तर के
पीड़ा दी टूटे सपनो ने
हम को बाँट दिया अपनों ने
किस से करें शिकायत अपनी,
अब न घांट के और न घर के
हम सत्तर के
उम्र बढ़ी अब तन है जर्जर
लेकिन नहीं किसी पर निर्भर
स्वाभिमान  से जीवन जीते,
आभारी है परमेश्वर के
हम सत्तर के

मदन मोहन बहेती 'घोटू'


Friday, July 15, 2011

अबके सावन में

अबके   सावन में
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इन होटों पर गीत न आये, अबके सावन में
बारिश में हम भीग न पाए,अबके सावन में
अबके बस पानी ही बरसा,थी कोरी बरसात
रिमझिम में सरगम होती थी,था जब तेरा साथ
व्रत का अमृत बरसाती थी,जो हम पर हर साल,
वो हरियाली तीज न आये,अबके सावन में
तुम्हारी प्यारी अलकों का,था मेघों सा रंग
तड़ित रेख सा,दन्त लड़ी का,मुस्काने का ढंग
घुमड़ घुमड़ कर काले बादल ,छाये  कितनी बार
पर वो बादल रीत न पाये,अबके सावन में
पहली बार चुभी है तन पर,पानी की फुहार
जीवन के सावन में सूखे,है हम पहली बार
सूखा सूखा  ,भीगा मौसम,सूनी सूनी शाम,
उचट उचट कर नींद न आये,अबके सावन में

मदन मोहन बहेती'घोटू'

Tuesday, July 12, 2011

वेदनाये

  वेदनाये
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दुखी मन की वेदनायें,आज पीछे पड़ गयी है
ह्रदय की संवेदनायें, आज पीछे पड़ गयी है
  ओढ़ यादों की रजाई,मन बसंती ठिठुरता है
शूल जैसी चुभा करती ,स्वजनों की निठुरता है
जो कभी अपने सगे थे,पराये से हो गए है
प्यार के ,अपनत्व के सब,भाव क्यूं कर,खो गए है
मिलन की संभावनाएं,आज पीछे पड़ गयी है
दुखी मन की वेदनायें,आज पीछे पड़ गयी है
नींद क्यों जाती उचट अब ,रात के पिछले प्रहर है
भावना के ज्वार में क्यों,मन भटकता,इस कदर है
है बहुत चिंतित व्यथित मन,शांति मन की लुट रही है
घाव ताज़े या पुराने,टीस मन में उठ  रही है
कसकती कुछ भावनाए,आज पीछे पड़ गयी है
 ह्रदय की संवेदनाये, आज पीछे पड़ गयी है
हो रहा भारी बहुत मन ,ह्रदय में कुछ बोझ सा है
एक दिन  की बात ना है,सिलसिला ये रोज का है
कई बाते पुरानी आ,द्वार दिल के खटखटाती
ह्रदय में आक्रोश भरता,भावनाएं छटपटाती 
,व्यथित मन की यातनाएं,आज पीछे पड़ गयी है
दुखी दिल की वेदनाये, आज पीछे पड़ गयी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, July 7, 2011

संस्कार

संस्कार
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हमने जब बच्चे पाले
तो विनम्रता और आज्ञाकारी
होने के संस्कार डाले
हमें ख़ुशी है ,हमारा बेटा,
अभी भी संस्कारी है
हमारा नहीं तो क्या,
अपनी पत्नी का तो आज्ञाकारी है

घोटू

जनरेशन गेप

जनरेशन गेप
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हमारे बच्चे,जब छोटे होते है
हमारी उंगली पकड़ कर खड़े होते है
पर अपने पेरों पर खड़े होने के बाद,
वे अपनी खिचड़ी अलग पकाते है
उनके विचार,हमारे विचारों से मेल नहीं खाते है
और कहते है की ये जनरेशन का अंतर है
पर ये बात हमारी समझ के बाहर है
 क्योकि हमारी और उनकी उनकी ,
उम्र में तब भी था इतना ही अंतर
जब वो चलते थे हमारी उंगली पकड़ कर

घोटू

भविष्यवाणी

भविष्यवाणी
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एक पेंसठ वर्षीय बुढ़िया ने,
एक ज्योतिषी को,
अपनी जन्म कुंडली दिखलाई
 ज्योतिषी ने,काफी बातें सच बतलाई
बोला अटल सुहाग है,
काया निरोग है
पर माई,तेरा दो सासों का योग है
बुढ़िया बोली,तेरी ये बात है बेकार
मेरे ससुर तो गए है स्वर्ग सिधार
पास खड़ा बूढा पति बोला,
ज्योतिषी की बात में दम है
तेरी बहू, क्या सास से कम है?

घोटू