Thursday, May 30, 2013

            
            थका  हुआ घोड़ा

जीवन के कितने ही दुर्गम ,पथ पर सरपट ,भागा दोड़ा 
                                          मै  तो थका हुआ हूँ घोड़ा 
मै हूँ अश्व रवि के रथ का ,करता हूँ ,दिन रात नियंत्रित 
सेवा और परोपकार में, मेरा सारा    जीवन  अर्पित 
कभी ,किसी तांगे  में जुत कर ,लोगों को मंजिल दिलवाई 
कभी किसी दूल्हे को अपनी ,पीठ बिठा ,शादी करवाई 
कितने वीर सैनिको ने थी ,करी सवारी,मुझ पर ,रण  में
' पोलो'और खेल कितने ही ,खेले मैंने  ,क्रीडांगन    में 
राजा और शूरवीरों का ,रहा हमेशा ,प्रिय साथी बन 
उनके रथ को दौडाता था,मै  ही था द्रुतगामी  वाहन 
झाँसीवाली  रानी के संग ,अंग्रेजों  से युद्ध किया था 
अमर सिंह राठौर सरीखे,वीरों के संग ,मरा,जिया था  
महाराणा प्रताप से योद्धा ,बैठे थे मेरी काठी   में 
मेरी टापों के स्वर  अब भी ,गूँज रहे हल्दी घाटी में 
दिया कृष्ण ने अर्जुन को जब,गीता ज्ञान,महाभारत में 
ज्ञान सुधा मैंने भी पी थी ,मै  था   जुता  हुआ उस रथ में 
प्रकटा  था समुद्र मंथन में ,लक्ष्मीजी का मै भाई  हूँ 
मै शक्ती का मापदंड हूँ , अश्व -शक्ती की मै  इकाई  हूँ  
हुआ अशक्त मशीनी युग में ,लोगों ने मेरा संग छोड़ा 
                                       मै  तो थका हुआ हूँ घोडा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, May 29, 2013

  बुढापा-सबको आता

   राम और कृष्ण का अवतार लेकर ,
  आये भगवान थे
पर मानव शरीर लिए हुए ,
वो भी तो  इंसान थे 
उनने भी मानव शरीर के ,
सारे दुःख उठाये होंगे  
बुढापे की तकलीफ़ भी पाये  होंगे 
रामजी ने चौदह बरस वनवास काटा,
सीताजी का हरण हुआ ,
लंका पर चढ़ाई कर ,
रावण का संहार किया  
अयोध्या आये पर धोबी के कहने पर,
गर्भवती सीता को ,घर से निकाल दिया 
बिना पत्नी के ,उनके जीवन में,
अन्धकार छा गया 
पर अपनी उस गलती के पश्चाताप में ,
बुढ़ापे में,उन्हें भी डिप्रेशन आ गया 
बड़े परेशान और डिस्टर्ब थे रहते 
और इसी घुटन में,
उन्होंने सरयू में डूब कर
 आत्महत्या की,ऐसा लोग है कहते 
कृष्ण जी ने भी किया था ,द्वारका पर शासन 
पर बुढापे में नहीं चला ,उनका अनुशासन 
उनके सब यदुवंशी ,
आपस में ही लड़ने लग गये  
तो शांति की तलाश में,
वो द्वारका छोड़ कर,
दूर प्रभाष क्षेत्र की तरफ चले गये  
अकेले,तनहा,एक वृक्ष के नीचे ,
शांति से कर रहे थे   विश्राम 
और वहीँ पर लगा उन्हें बाण 
और वो कर गए महाप्रयाण 
अंतिम समय में ,उनके परिवार का,
कोई भी सदस्य ,नहीं आया काम 
तो भगवान भी ,जब इंसान का रूप लेते है, 
बढती उम्र में ,उनके साथ भी  ऐसा होता है
 सब साथ छोड़ते , कोई साथ नहीं होता है 
ओ अगर तुझे ,तेरे अपनों ने छोड़ दिया है ,
और बुढापे में  परेशानी होती है,
तो काहे को रोता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, May 28, 2013

            
              क्यों?
तुम भगवान् को मानते हो,
जो एक अनुपम अगोचर शक्ती है ,
जिसने इस संसार का निर्माण किया है 
तुम साधू,संत और गुरुओं को पूजते हो,
क्योंकि उन्होंने तुम्हे ज्ञान का प्रकाश दिया है   
तुम  अपनी पत्नी के गुण गाते हो,
क्योंकि उसने तुम्हारी जिन्दगी को,
प्यार के रंगों से सजाया है 
तो फिर तुम अपने उन माँ बाप का,
तिरस्कार क्यों करते हो ,
जिन्होने तुम्हारा निर्माण किया,
तुम्हे ज्ञान दिया,और तुम पर,
जी भर भर के प्यार लुटाया  है?

मदन मोहन  बाहेती'घोटू'

Sunday, May 26, 2013

        मन की खिड़कियाँ 

जरा देखो,खोल मन की खिड़कियाँ ,
                 ठंडी और ताज़ी हवाएं आयेगी 
जायेंगे अवसाद सारे दूर हट,
                 और मन की घुटन सब घट जायेगी 
आयेगी बौछार खुशियों की मधुर,
                   और सुख से जिन्दगी सरसायेगी 
निकल कर तो देखो अपने कूप से,
                    जगत की जगमग नज़र आ जायेगी 
दिन में सूरज राह रोशन करेगा ,
                     रात में भी चांदनी  छिटकायेगी 
मार कर बैठे रहोगे कुण्डली ,
                      मोह माया  उम्र भर  तडफायेगी
और जब जाओगे दुनिया छोड़ कर ,
                       धन और दौलत ,काम ना कुछ आयेगी 
  आज का पूरा मज़ा लो आज तुम,
                       कल की चिंता ,कल ही देखी  जायेगी  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
      मेरी माँ सचमुच कमाल है 
     

बात बात में हर दिन ,हर पल,
                            रखती  जो मेरा ख़याल है 
छोटा बच्चा मुझे समझ कर,
                            करती मेरी  देखभाल  है 
ममता की जीवित मूरत है,
                             प्यार भरी  वो बेमिसाल है 
सब पर अपना प्यार लुटाती ,
                              मेरी माँ सचमुच  कमाल है 
जब तक मै  ना बैठूं,संग में,
                               वो खाना ना खाया करती 
निज थाली से पहले मेरी ,
                               थाली वो पुरसाया  करती
मैंने क्या क्या लिया और क्या ,
                               खाया रखती ,तीक्ष्ण नज़र है 
वो मूरत    साक्षात प्रेम की ,
                               वो तो ममता  की निर्झर  है  
बूढी है पर अगर सहारा  ,
                                दो तो मना किया करती  है 
जीवन की बीती यादों में ,
                                डूबी हुई ,जिया करती  है 
कोई बेटी बेटे का जब ,
                              फोन उसे  आ जाया  करता 
मैंने देखा ,बातें करते  ,
                             उन आँखों में प्यार उमड़ता 
पोते,पोती,नाती,नातिन,
                             सब की लिए फिकर है मन में 
पूजा पाठ,सुमरनी ,माला ,
                               डूबी रहती  रामायण में 
कोई जब आता है मिलने ,
                                 बड़ी मुदित खुश हो जाती है 
अपने स्वर्ण दन्त चमका कर ,
                                    हो प्रसन्न वो मुस्काती है  
बाते करने और सुनने का ,
                                   उसके मन में बड़ा  चाव है 
अपनापन, वात्सल्य भरा है ,
                                   और सबके प्रति प्रेम भाव है 
याददाश्त कमजोर हो गयी ,
                                    बिसरा देती है सब बातें 
है कमजोर ,मगर घबराती ,
                                  है दवाई की गोली  खाते 
उसके बच्चे ,स्वस्थ ,खुशी हो ,
                                  देती आशीर्वाद  हमेशा 
अपने   गाँव ,पुराने घर को ,
                                   करती रहती याद हमेशा 
बड़ा धरा सा ,विस्तृत नभ सा ,
                                 उसका मन इतना विशाल है  
सब पर अपना प्यार लुटाती,
                                  मेरी माँ  सचमुच  कमाल है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, May 21, 2013

          बदलती दुनिया 

इलास्टिक ने नाडे  को गायब किया ,
और ज़िप आई,बटन को खा गयी 
परांठे ,पुरियों को पीज़ा का गया ,
सिवैयां ,चाइनीज नूडल खा गयी 
दादी नानी की कहानी खा गए,
टी वी पर ,दिनरात चलते सीरियल 
चिट्ठियां और लिफाफों को खा गए ,
एस एम् एस और ई मेल ,आजकल 
स्लेट पाटी ,गुम  हुई,निब भी गयी ,
होल्डर,श्याही की बोतल और पेन 
आजकल  ये सब नज़र आते नहीं ,
बस चला करते है केवल जेल  पेन 
फोन काले चोगे वाला खो गया ,
सब के हाथों में है मोबाईल हुआ 
नज़र टाईप राईटर आते नहीं,
कंप्यूटर है  ,इस तरह काबिज हुआ 
लाला की परचून की सब दुकाने,
बड़े शौपिंग माल सारे खा गए 
बंद सब एकल सिनेमा हो गए ,
आज मल्टीप्लेक्स इतने छा  गए 
ग्रामोफोन और रेडियो गायब हुए,
सारा म्यूजिक अब डिजिटल हो गया 
इस कदर है दाम सोने के बढे ,
चैन से सोना भी मुश्किल  हो गया 
एक पैसा,चवन्नी और अठन्नी ,
नोट दो या एक का अब ना मिले 
दौड़ता है मशीनों सा आदमी ,
जिन्दगी में चैन भी अब ना मिले 
चोटियाँ और परांदे गुम  हो गए ,
औरतों के कटे ,खुल्ले  बाल है 
नेताओं ने देशभक्ती छोड़ दी ,
लगे है सब लूटने में माल है 
अपनापन था,खुशी थी ,आनंद था 
होते थे संयुक्त सब परिवार जब 
छह डिजिट की सेलरी तो हो गयी ,
सिकुड़ कर एकल हुए परिवार अब 
सभी चीजें ,छोटी छोटी हो गयी ,
आदमी के दिल भी छोटे हो गए
समय के संग ,बदल हम तुमभी गए  
मै हूँ बूढा ,जवां तुम भी ना रहे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
           बरसों बीते 
 बरसों बीते ,बरस बरस कर 
कभी दुखी हो ,कभी हुलस कर 
जीवन सारा ,यूं ही गुजारा ,
हमने मोह माया में फंस कर 
कभी किसी को बसा ह्रदय में ,
कभी किसी के दिल में बस कर 
कभी दर्द ने बहुत रुलाया ,
आंसू सूखे,बरस बरस कर 
और कभी खुशियों ने हमको ,
गले लगाया ,खुश हो,हंस कर 
हमने जिनको दूध पिलाया ,
वो ही गए हमें  डस डस  कर 
यूं तो बहुत हौंसला है पर,
उम्र गयी हमको बेबस  कर 
और बुढ़ापा ,लाया स्यापा ,
कब तक जीयें,तरस तरस कर 
ऊपर वाले ,तूने  हमको ,
बहुत नचाया,अब तो बस कर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
        बुढापे की थकान 

आजकल हम इस कदर से थक रहे है 
ऐसा लगता ,धीरे धीरे   पक रहे  है 
बड़े मीठे और रसीले हो गये  है,
देखने में पिलपिले  से लग रहे है
दिखा कर के चेहरे पे नकली हंसी ,
अपनी सब कमजोरियों को ढक रहे है 
अपने दिल का गम छुपाने के लिए,
करते सारी कोशिशे  भरसक रहे  है 
नहीं सुनता है हमारी कोई भी , 
मारते बस डींग हम नाहक रहे है 
सर उठा कर आसमां को देखते,
अपना अगला आशियाना  तक रहे है 
'घोटू'करना गौर मेरी बात पर ,
मत समझना यूं ही नाहक बक रहे है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

Saturday, May 18, 2013

     मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे संभालो 

दुःख पीड़ा में ,इक दूजे का हाथ बटा लो
मै तुम्हे सम्भालूँ ,तुम मुझे संभालो 
जब भी आती याद जवानी की वो बातें
 दिन मस्ती के होते थे और मादक रातें  
बीत गया वो दौर खुशी का ,हँसते ,गाते 
अब तो बस यादें है जिनसे मन बहलाते 
आपा  धापी में जीवन की ,बस मशीन बन 
चलते ,रुकते ,यूं ही बीत गया सब जीवन 
भूली बिसरी उन यादों को  आओ खंगालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ,तुम मुझे  संभालो ,,
तुम संग बंधन बाँध ,बंधे दुनियादारी में 
फंसे गृहस्थी के चक्कर,जिम्मेदारी में 
बच्चों का पालन पोषण और बीमारी में 
जीवन बीत गया यूं ही मारामारी में 
उमर काट दी ,यूं ही घुट घुट ,रह कर चिंतित 
पर हम दोनों,इक दूजे पर ,अब अवलंबित 
एक दूसरे को सुख दुःख में,देखो भालो 
मै तुम्हे सम्भालूँ, तुम मुझे संभालो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'