Monday, February 21, 2011

सत्तरवें जन्म दिन पर


पल पल करके ,गुजर गए दिन,दिन दिन करके ,बरसों बीते
उनसित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते
जीवन की आपाधापी में ,पंख लगा कर वक्त उड़ गया
छूटा साथ कई अपनों का ,कितनो का ही संग जुड़ गया
सबने मुझ पर ,प्यार लुटाया,मैंने प्यार सभी को बांटा
चलते फिरते ,हँसते गाते ,दूर किया मन का सन्नाटा
भोला बचपन ,मस्त जवानी ,पलक झपकते ,बस यों बीते
उनसित्तर की उमर हो गयी ,लगता है कल परसों बीते
सुख की गंगा ,दुःख की यमुना,गुप्त सरस्वती सी चिंतायें
इसी त्रिवेणी के संगम में ,हम जीवन भर ,खूब नहाये
क्या क्या खोया,क्या क्या पाया,रखा नहीं कुछ लेखा जोखा
किसने उंगली पकड़ उठाया,जीवन पथ पर किसने रोका
जीवन में संघर्ष बहुत था ,पता नहीं हारे या जीते
उनसित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते

Saturday, February 19, 2011

उमर का आलम

उमर का हमारी ये कैसा है आलम
सत्तर का है तन और सत्रह का मन
रंगे बाल हमने,किया फेशियल है
छुपाये न छुपती,मगर ये उमर है
होता हमारा ये दिल कितना बेकल
हसीनाएं कहती,जब बाबा या अंकल
करे नाचने मन,मगर टेढ़ा आँगन
उमर का हमारी ये कैसा है आलम
बहुत गुल खिलाये ,जवानी में हमने
उबलता था पानी,लगी बर्फ जमने
भले ही न हिम्मत बची तन के अन्दर
गुलाटी को मचले है ,मन का ये बन्दर
कटे पर है ,उड़ने को बेताब है मन
उमर का हमारी ,ये कैसा है आलम

Thursday, February 17, 2011

ये उमर बुढ़ापे की भी होती कमाल है ,

कहने को तो हम हो रहे सत्तर की उमर के
दिल की उमर अभी भी सिर्फ सत्रह साल है
है बदन बदहाल और तन पर है बुढ़ापा ,
लेकिन मलंगी मन में ,मस्ती है ,धमाल है
हो जाए बूढा कितना भी लेकिन कोई बन्दर,
ना भूले मारने का गुलाटी खयाल है
जब भी कभी हम देखते है हुस्न के जलवे
बासी कढी में फिर से आ जाता उबाल है
ये बात सच है आजकल गलती है देर से,
लेकिन कभी ना कभी तो गल जाती दाल है
ना कोई चिंता है किसी की ,ना ही फिकर है
ये उमर बुढ़ापे की भी होती कमाल है










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