संतानों से
याद करें जो तुमको हर पल
उनको भी देदो तुम कुछ पल
जिससे उनका दिल खिल जाए
थोड़ी सी खुशियाँ मिल जाए
उनके ढलते से जीवन को ,
मिले प्यार का थोडा संबल
उनको भी दे दो तुम कुछ पल
आज गर्व से जहाँ खड़े हो
इतने ऊँचे हुए बड़े हो
ये उनका पालन पोषण है
और उनकी ममता का आँचल
उनको भी दे दो तुम कुछ पल
जिनने तुम पर तन मन वारे
प्यार लुटाते जनक तुम्हारे
जिनके आशीर्वाद आज भी
बरस रहें है तुम पर अविरल
याद करे तुमको जो हर पल
उनको भी दे दो तुम कुछ पल
Budhapa is the time wen u r supposed to rest on ur laurels;wen the younger generation whom u hv nurtured with so much luv and care tries to return back all that u hv done for them in whatever way they can.But its often a dreaded sentence;a phase wen younger ones grow out of their use of you & desert u;when poor health and ungrateful children unite forces to make life miserable.This blog of poems of Ghotoo reflect experiences of life in old age,in which u’ll find your own experience reflected
Sunday, January 30, 2011
ओह मिश्र के ग्रेट पिरेमिड
ओह मिश्र के ग्रेट पिरेमिड
तुम वृहद्ध हो ,तुम विशाल हो
तुम मानव के द्वारा निर्मित एक कमाल हो
तुम महान हो , तुम बड़े हो
आसमान में गर्व से ,सर उठाये खड़े हो
आज की प्रगतिशील पीढ़ी की तरह
तुम जितने ऊपर जाते हो
घटते ही जाते हो
तुम भी संवेदनाओं से शून्य हो
तुम्हारा दिल भी पत्थर है
तुम दोनों में बस थोडा सा अंतर है
तुम्हारे अन्दर तुम्हारे निर्माताओं का
मृत शरीर सुरक्षित है
और इस पीड़ी के हृदयों में बसने को
उनके जनकों की आत्माएं तरस रही है
और उनका मृतप्राय शरीर
घर के किसी कोने में ,
पड़ा उपेक्षित है
तुम वृहद्ध हो ,तुम विशाल हो
तुम मानव के द्वारा निर्मित एक कमाल हो
तुम महान हो , तुम बड़े हो
आसमान में गर्व से ,सर उठाये खड़े हो
आज की प्रगतिशील पीढ़ी की तरह
तुम जितने ऊपर जाते हो
घटते ही जाते हो
तुम भी संवेदनाओं से शून्य हो
तुम्हारा दिल भी पत्थर है
तुम दोनों में बस थोडा सा अंतर है
तुम्हारे अन्दर तुम्हारे निर्माताओं का
मृत शरीर सुरक्षित है
और इस पीड़ी के हृदयों में बसने को
उनके जनकों की आत्माएं तरस रही है
और उनका मृतप्राय शरीर
घर के किसी कोने में ,
पड़ा उपेक्षित है
Tuesday, January 25, 2011
माँ तुम ऐसी गयी ,गया सब ,खुशियों का संसार
माँ तुम ऐसी गयी ,गया सब ,खुशियों का संसार
तार तार हो बिखर गया है ,ये सारा परिवार
जब तुम थी तो चुम्बक जैसी ,सभी खींचे आते थे
कितनी चहल पहल होती थी ,हंसते थे ,गाते थे
दीवाली की लक्ष्मी पूजा और होली के रंग
कोशिश होती इन मोको पर ,रहें सभी संग संग
साथ साथ मिल कर मानते थे ,सभी तीज त्योंहार
माँ ,तुम ऐसी गयी ,गया सब ,खुशियों का संसार
जब तुम थी तो ,ये घर ,घर था ,अब है तिनका तिनका
टूट गया तिनको तिनको में ,कुछ उनका ,कुछ इनका
छोटी मुन्नी ,बड़के भैया,मंझली ,छोटू ,नन्हा
अब तो कोई नहीं आता है ,सब है तनहा तनहा
एक डोर से बाँध रखा था ,तुमने ये घर बार
माँ,तुम ऐसी गयी ,गया सब खुशियों का संसार
भाई भाई के बीच खड़ी है ,नफरत की दीवारे
कोर्ट ,कचहरी,झगडे नोटिस,खिंची हुई तलवारें
लुप्त हो गया ,भाईचारा,लालच के अंधड़ में
ऐसी सेंध लगाई स्वार्थ ने ,खुशियों के इस गढ़ में
माँ तुम रूठी ,टूट गया सब ,गठा हुआ संसार
तार तार हो कर के बिखरा ,ये सारा घर बार
संस्कार की देवी थी तुम ,ममता का आँचल थी
खान प्यार की ,माँ तुम आशीर्वादों का निर्झर थी
सबको राह दिखाती थी तुम ,सुख दुःख और मुश्किल में
तुम सबके दिल में रहती थी ,सभी तुम्हारे दिल में
हरा भरा परिवार वृक्ष था ,माँ तुम थी आधार
माँ, तुम ऐसी गयी ,गया सब ,खुशियों का संसार
तार तार हो बिखर गया है ,ये सारा परिवार
जब तुम थी तो चुम्बक जैसी ,सभी खींचे आते थे
कितनी चहल पहल होती थी ,हंसते थे ,गाते थे
दीवाली की लक्ष्मी पूजा और होली के रंग
कोशिश होती इन मोको पर ,रहें सभी संग संग
साथ साथ मिल कर मानते थे ,सभी तीज त्योंहार
माँ ,तुम ऐसी गयी ,गया सब ,खुशियों का संसार
जब तुम थी तो ,ये घर ,घर था ,अब है तिनका तिनका
टूट गया तिनको तिनको में ,कुछ उनका ,कुछ इनका
छोटी मुन्नी ,बड़के भैया,मंझली ,छोटू ,नन्हा
अब तो कोई नहीं आता है ,सब है तनहा तनहा
एक डोर से बाँध रखा था ,तुमने ये घर बार
माँ,तुम ऐसी गयी ,गया सब खुशियों का संसार
भाई भाई के बीच खड़ी है ,नफरत की दीवारे
कोर्ट ,कचहरी,झगडे नोटिस,खिंची हुई तलवारें
लुप्त हो गया ,भाईचारा,लालच के अंधड़ में
ऐसी सेंध लगाई स्वार्थ ने ,खुशियों के इस गढ़ में
माँ तुम रूठी ,टूट गया सब ,गठा हुआ संसार
तार तार हो कर के बिखरा ,ये सारा घर बार
संस्कार की देवी थी तुम ,ममता का आँचल थी
खान प्यार की ,माँ तुम आशीर्वादों का निर्झर थी
सबको राह दिखाती थी तुम ,सुख दुःख और मुश्किल में
तुम सबके दिल में रहती थी ,सभी तुम्हारे दिल में
हरा भरा परिवार वृक्ष था ,माँ तुम थी आधार
माँ, तुम ऐसी गयी ,गया सब ,खुशियों का संसार
Sunday, January 23, 2011
हाँ हम रेल की पटरियां है
लोहे का तन ,कुंठित जीवन
जमीन से जड़ी हुई
दूर दूर पड़ी हुई
जो कभी न मिल पायी
इसी दो सखियाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
कितनो का ही बोझ उठाती
सबको मंजिल तक पहुंचाती
सुनसान जंगलों में
या कस्बों ,शहरों में
साथ साथ भटक रही
पर हमको पता नहीं
हमारी मंजिल कहाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
साथ साथ रह कर भी,
क्या है मजबूरियां
बनी ही रहती है ,
आपस में दूरियां
जिनकी सोच आपस में ,
कभी नहीं मिल पाती
हम ऐसी दो पीढियां है
हाँ हम रेल की पटरियां है
जमीन से जड़ी हुई
दूर दूर पड़ी हुई
जो कभी न मिल पायी
इसी दो सखियाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
कितनो का ही बोझ उठाती
सबको मंजिल तक पहुंचाती
सुनसान जंगलों में
या कस्बों ,शहरों में
साथ साथ भटक रही
पर हमको पता नहीं
हमारी मंजिल कहाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
साथ साथ रह कर भी,
क्या है मजबूरियां
बनी ही रहती है ,
आपस में दूरियां
जिनकी सोच आपस में ,
कभी नहीं मिल पाती
हम ऐसी दो पीढियां है
हाँ हम रेल की पटरियां है
Saturday, January 22, 2011
हाँ हम रेल की पटरियां है
लोहे का तन ,कुंठित जीवन
जमीन से जड़ी हुई
दूर दूर पड़ी हुई
जो कभी न मिल पायी
इसी दो सखियाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
कितनो का ही बोझ उठाती
सबको मंजिल तक पहुंचाती
सुनसान जंगलों में
या कस्बों ,शहरों में
साथ साथ भटक रही
पर हमको पता नहीं
हमारी मंजिल कहाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
साथ साथ रह कर भी,
क्या है मजबूरियां
बनी ही रहती है ,
आपस में दूरियां
जिनकी सोच आपस में ,
कभी नहीं मिल पाती
हम ऐसी दो पीढियां है
हाँ हम रेल की पटरियां है
जमीन से जड़ी हुई
दूर दूर पड़ी हुई
जो कभी न मिल पायी
इसी दो सखियाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
कितनो का ही बोझ उठाती
सबको मंजिल तक पहुंचाती
सुनसान जंगलों में
या कस्बों ,शहरों में
साथ साथ भटक रही
पर हमको पता नहीं
हमारी मंजिल कहाँ है
हाँ ,हम रेल की पटरियां है
साथ साथ रह कर भी,
क्या है मजबूरियां
बनी ही रहती है ,
आपस में दूरियां
जिनकी सोच आपस में ,
कभी नहीं मिल पाती
हम ऐसी दो पीढियां है
हाँ हम रेल की पटरियां है
Sunday, January 16, 2011
हनीमून वाला पागलपन बुढ़ापे का दीवानापन बोलो इन में क्या अंतर है?
हनीमून वाला पागलपन
बुढ़ापे का दीवानापन
बोलो इन में क्या अंतर है?
एक अनजाना ,एक अनजानी
लिखने लगते नयी कहानी
कुछ उत्सुकता ,कुछ आकर्षण
ढूँढा करते है अपनापन
एक दूजे के तन में ,मन में
या अनोखे पागलपन में
थोड़े सहमे ,कुछ घबराये
आकुल व्याकुल पर शर्माए
प्रेम पुष्प करते है अर्पित
एक दूजे को पूर्ण समर्पित
हनीमून तो शुरुवात है
चालू करना नया सफ़र है
हनीमून वाला पागलपन
बुढ़ापे का दीवाना पन
देखो इनमे क्या अंतर है
और बुढ़ापे के दो साथी
एक दिया है और एक बाती
लम्बा सफ़र काट, सुस्ताते
करते याद पुरानी बातें
क्या क्या खोया ,क्या क्या पाया
किसने अपनाया, ठुकराया
एक दूजे पर पूर्ण समर्पण
वही प्रेम और दीवानापन
हैं अशक्त ,तन में थकान पर
एक दूजे की बांह थाम कर
सारा जीवन संग संग काटा
अब भी आपस में निर्भर है
हनीमून वाला पागलपन
बुढ़ापे का दीवानापन
देखो इन में क्या अंतर है
बुढ़ापे का दीवानापन
बोलो इन में क्या अंतर है?
एक अनजाना ,एक अनजानी
लिखने लगते नयी कहानी
कुछ उत्सुकता ,कुछ आकर्षण
ढूँढा करते है अपनापन
एक दूजे के तन में ,मन में
या अनोखे पागलपन में
थोड़े सहमे ,कुछ घबराये
आकुल व्याकुल पर शर्माए
प्रेम पुष्प करते है अर्पित
एक दूजे को पूर्ण समर्पित
हनीमून तो शुरुवात है
चालू करना नया सफ़र है
हनीमून वाला पागलपन
बुढ़ापे का दीवाना पन
देखो इनमे क्या अंतर है
और बुढ़ापे के दो साथी
एक दिया है और एक बाती
लम्बा सफ़र काट, सुस्ताते
करते याद पुरानी बातें
क्या क्या खोया ,क्या क्या पाया
किसने अपनाया, ठुकराया
एक दूजे पर पूर्ण समर्पण
वही प्रेम और दीवानापन
हैं अशक्त ,तन में थकान पर
एक दूजे की बांह थाम कर
सारा जीवन संग संग काटा
अब भी आपस में निर्भर है
हनीमून वाला पागलपन
बुढ़ापे का दीवानापन
देखो इन में क्या अंतर है
Friday, January 14, 2011
दहक बाकी है
छलकते जाम पर इतराए तू क्यों साकी है
बुझे हुए इन शोलो में दहक बाकी है
सर पर है चाँद या की चांदनी तू इन पे न जा
तेरे संग चाँद पर जाने की हवस बाकी है
बहुत बरसें है ये बादल तो कई बरसों तक
फिर से आया है सावन की बरस बाकी है
दूर से आँख चुरा लेती है ,आँखे तो मिला
देख इन बुझते चिरागों में चमक बाकी है
हम तो थे फूल गुलाबों के बहुत ही महके
सूखने लग गए है तो भी महक बाकी है
भले ही शाम है और ढलने लगा है सूरज
छाई है दूर तक लाली कि चमक बाकी है
बुझे हुए इन शोलो में दहक बाकी है
सर पर है चाँद या की चांदनी तू इन पे न जा
तेरे संग चाँद पर जाने की हवस बाकी है
बहुत बरसें है ये बादल तो कई बरसों तक
फिर से आया है सावन की बरस बाकी है
दूर से आँख चुरा लेती है ,आँखे तो मिला
देख इन बुझते चिरागों में चमक बाकी है
हम तो थे फूल गुलाबों के बहुत ही महके
सूखने लग गए है तो भी महक बाकी है
भले ही शाम है और ढलने लगा है सूरज
छाई है दूर तक लाली कि चमक बाकी है
Wednesday, January 12, 2011
असली इश्क बुढ़ापे में है
तुम जवान थी ,मै जवान था
गरम खून में तब उफान था
भरा जोश था ,नहीं होश था
हम तुम दोनों में योवन था
फिर बच्चो की जिम्मेदारी
और नोकरी की लाचारी
काम,कामना और कमाई
का जुनून और पागलपन था
और अब हम हो गए रिटायर
बच्चे खुश अपने अपने घर
बस हम और तुम दो ही बचे है
छूट गया सब जो बंधन था
फुर्सत है चिंता न फिकर है
मौज मजे की यही उमर है
असली इश्क बुढ़ापे में है
बाकी सब दीवानापन था
गरम खून में तब उफान था
भरा जोश था ,नहीं होश था
हम तुम दोनों में योवन था
फिर बच्चो की जिम्मेदारी
और नोकरी की लाचारी
काम,कामना और कमाई
का जुनून और पागलपन था
और अब हम हो गए रिटायर
बच्चे खुश अपने अपने घर
बस हम और तुम दो ही बचे है
छूट गया सब जो बंधन था
फुर्सत है चिंता न फिकर है
मौज मजे की यही उमर है
असली इश्क बुढ़ापे में है
बाकी सब दीवानापन था
Saturday, January 8, 2011
पहले तो ये बात नहीं थी
पहले तो ये बात नहीं थी
जब दिल से दिल नहीं मिले हो ,
इसी कोई रात नहीं थी
तुममे हममे एक बात थी
प्यार प्यार ही था बस केवल
एक दूसरे की यादे थी
इक दूजे के सपने हर पल
याद नहीं एसा कोई पल
जब तुम मेरे साथ नहीं थी
पहले तो ये बात नहीं थी
पहले जब झगडा होता था
उसमे मीठापन होता था
तब तनाव का अंत अधिकतर
मौन समर्पण ही होता था
एक दूसरे की बांहों बिन
कटती कोई रात नहीं थी
पहले तो ये बात नहीं थी
अब तो ऐसी उम्र आ गयी
तुम अपने में मै अपने मे
मै टी वी में पिक्चर देखू
तुम उलझी माला जपने में
अलग अलग है राह हमारी
अपनी तो ये जात नहीं थी
पहले तो ये बात नहीं थी
जब दिल से दिल नहीं मिले हो ,
इसी कोई रात नहीं थी
तुममे हममे एक बात थी
प्यार प्यार ही था बस केवल
एक दूसरे की यादे थी
इक दूजे के सपने हर पल
याद नहीं एसा कोई पल
जब तुम मेरे साथ नहीं थी
पहले तो ये बात नहीं थी
पहले जब झगडा होता था
उसमे मीठापन होता था
तब तनाव का अंत अधिकतर
मौन समर्पण ही होता था
एक दूसरे की बांहों बिन
कटती कोई रात नहीं थी
पहले तो ये बात नहीं थी
अब तो ऐसी उम्र आ गयी
तुम अपने में मै अपने मे
मै टी वी में पिक्चर देखू
तुम उलझी माला जपने में
अलग अलग है राह हमारी
अपनी तो ये जात नहीं थी
पहले तो ये बात नहीं थी
Friday, January 7, 2011
झगडे तो अब भी होते है
झगडे तो अब भी होते है
छोटी छोटी सी बातों में
अक्सर जब अनबन होती है
एक ही बिस्तर पर दूर दूर
हम मुहं को फेरे सोते है
झगडे तो अब भी होते है
अब भी जब सजते धजते है
तो कितने सुन्दर लगते है
लेकिन उनकी तारीफ़ न की
हो खफा ,सिसकते रोते है
जब घर वालो से नज़र बचा
हम रोमांटिक हो जाते है
वो झल्लाते है ,शरमा कर
फिर बाहुपाश में होते है
हम तो सोंदर्य उपासक है
कोई सुन्दर सी महिला को
देखा और जो तारीफ़ करदी
वो जल कर पलक भिजोते है
है शुगर हमारी बढ़ी हुई
लेकिन है शोक मिठाई का
हम चुपके चुपके खाते है
तो खफा बहुत वो होते है
उनके मैके से कभी कभी
जब फोन कोई आजाता है
टी वी का वोल्यूम कम न किया
वो अपना आपा खोते है
जब उनके खर्राटे सुन कर
खुल जाती नींद हमारी है
हम उनकी नाक दबा देते
चुपचाप चैन से सोते है
जब हमको गुस्सा आता है
और ब्लड प्रेशर बढ जाता है
अक्सर हमको या फिर उनको
करने पड़ते समझोते है
झगडे तो अब भी होते है
छोटी छोटी सी बातों में
अक्सर जब अनबन होती है
एक ही बिस्तर पर दूर दूर
हम मुहं को फेरे सोते है
झगडे तो अब भी होते है
अब भी जब सजते धजते है
तो कितने सुन्दर लगते है
लेकिन उनकी तारीफ़ न की
हो खफा ,सिसकते रोते है
जब घर वालो से नज़र बचा
हम रोमांटिक हो जाते है
वो झल्लाते है ,शरमा कर
फिर बाहुपाश में होते है
हम तो सोंदर्य उपासक है
कोई सुन्दर सी महिला को
देखा और जो तारीफ़ करदी
वो जल कर पलक भिजोते है
है शुगर हमारी बढ़ी हुई
लेकिन है शोक मिठाई का
हम चुपके चुपके खाते है
तो खफा बहुत वो होते है
उनके मैके से कभी कभी
जब फोन कोई आजाता है
टी वी का वोल्यूम कम न किया
वो अपना आपा खोते है
जब उनके खर्राटे सुन कर
खुल जाती नींद हमारी है
हम उनकी नाक दबा देते
चुपचाप चैन से सोते है
जब हमको गुस्सा आता है
और ब्लड प्रेशर बढ जाता है
अक्सर हमको या फिर उनको
करने पड़ते समझोते है
झगडे तो अब भी होते है
Sunday, January 2, 2011
देखो ये घर टूट न जाये
देखो ये घर टूट न जाये
अपने तुम से रूठ न जाए
क्योकि अगर ये घर टूटेगा
अपनों का ही दिल टूटेगा
धीरे धीरे ,रिसते रिसते
पिघल जायेगे सारे रिश्ते
मुस्काती ,खिलती बगिया की
खुशबू कोई लूट न जाए
देखो ये घर टूट न जाए
पीढ़ी में अंतर होता है
ये समझो तो समझोता है
अगर चाहते बचना गम से
तो रहना होगा संयम से
पनघट पर जाने से पहले,
खुशियों का घट फूट न जाए
देखो ये घर टूट न जाए
अपने तुम से रूठ न जाए
क्योकि अगर ये घर टूटेगा
अपनों का ही दिल टूटेगा
धीरे धीरे ,रिसते रिसते
पिघल जायेगे सारे रिश्ते
मुस्काती ,खिलती बगिया की
खुशबू कोई लूट न जाए
देखो ये घर टूट न जाए
पीढ़ी में अंतर होता है
ये समझो तो समझोता है
अगर चाहते बचना गम से
तो रहना होगा संयम से
पनघट पर जाने से पहले,
खुशियों का घट फूट न जाए
देखो ये घर टूट न जाए
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