Sunday, June 30, 2013


                   पुराने दिनो की याद
                 
     दिन मस्ताने,शाम सुहानी,रात दीवानी होती थी
     हमे याद आते वो दिन ,जब,हममे जवानी होती थी
तेरी हुस्न,अदा ,जलवों पर,तब हम इतना मरते थे
जैसे होती सुबह,रात का,   इंतजार हम करते थे
       छेड़छाड़ चलती थी दिन भर, यही कहानी होती  थी
       हमे याद आते वो दिन ,जब हममे  जवानी होती थी
शर्माती थी तो गुलाब से ,गाल तुम्हारे हो जाते
लाल रंग के होठ लरजते,मधु के प्याले हो जाते
       और तुम्हारी,शोख अदाएं ,भी मरजानी  होती थी
       हमे याद आते वो दिन जब ,हममे  जवानी होती थी
रिमझिम बारिश की फुहारों मे हम भीगा करते थे
तुम्हें पता है,मुझे पता है,फिर हम क्या क्या करते थे
        बेकल राजा की बाहों मे,पागल रानी होती थी
        हमे याद आते वो दिन ,जब हममे जवानी होती थी
रात चाँदनी मे जब छत पर ,हम तुम सोया करते थे
मधुर मिलन की धुन मे बेसुध होकर  खोया करते थे
          चाँद देखता ,तुम शर्मा कर,पानी पानी  होती थी
          हमे याद आते वो दिन ,जब हममे जवानी होती थी
पर अब ना वो मधु,मधुशाला ,ना मतवाला साकी है
उस मयखाने,की रौनक की ,केवल यादें बाकी है
           जब मदिरा से ज्यादा मादक,तू मस्तानी होती थी
           हमे याद आते वो दिन जब ,हममे जवानी होती थी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, June 27, 2013

           बुढ़ापे  की पीड़ा -चार मुक्तक
                       1
क्या गज़ब का हुस्न था,वो शोख थी,झक्कास थी
धधकती ज्वालामुखी के बीच जैसे आग   थी
देख कर ये,कढ़ी बासी भी उबलने  लग गयी,
मन मचलने लग गया,नज़रें हुई  गुस्ताख़ थी
                        2
हम पसीना पसीना थे,हसीना को देख कर
पास आई ,टिशू पेपर ,दिया हमको ,फेंक कर
बोली अंकल,यूं ही तुम क्यों,पानी पानी हो रहे ,
किसी आंटीजी को ताड़ो,उमर अपनी देख कर
                        3
  जवानी की यादें प्यारी,अब भी है मन मे बसी
  बड़े ही थे दिन सुहाने,और रातें थी  हसीं
  बुढ़ापे ने मगर आकर,सब कबाड़ा कर दिया ,
  करना चाहें,कर न पाये,हाय कैसी  बेबसी
                     4
घिरते तो बादल बहुत हैं,पर बरस पाते नहीं
उमर का एसा असर है ,खड़े हो पाते नहीं
देखकर स्विमिंगपूल को,मन मे उठती है लहर, 
डुबकियाँ मारे और तैरें,कुछ भी कर पाते नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

         
           दास्ताने  बुढ़ापा
  बस यूं ही बेकार मे और खामखाँ
  रहता हूँ मै मौन ,गुमसुम,परेशां
  मुश्किलें ही मुश्किलें है हर तरफ,
  बताओ दिन भर अकेला करूँ क्या
  वक़्त काटे से मेरा कटता नहीं,
  कब तलक अखबार,बैठूँ,चाटता
   डाक्टर ने खाने पीने पे मेरे ,
    लगा दी है ढेर सी पाबंदियाँ
   पसंदीदा कुछ भी का सकता नहीं,
    दवाई की गोलियां है  नाश्ता
    टी.वी, के चेनल बदलता मै रहूँ,
    हाथ मे रिमोट का ले झुनझुना
   एक जैसे सीरियल,किस्से वही ,
   वही खबरें,हर जगह और हर दफ़ा
   नींद भी आती नहीं है ठीक से ,
    रात भर करवट रहूँ मै बदलता
   तन बदन मे ,कभी दिल मे दर्द है,
   नहीं थमता ,मुश्किलों का सिलसिला
   जो लिखा है मुकद्दर मे हो रहा ,
   करूँ किससे शिकवे ,मै किससे गिला
   मन कहीं भी नहीं लगता ,क्या करूँ,
   खफा खुद से रहता हूँ मै गमजदा
   'घोटू' लानत,उम्र के इस दौर पर,
    बुढ़ापे मे ,ये सभी की दास्ताँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

 

Sunday, June 23, 2013

       

सब कुछ बदल गया दुनिया मे ,
                    मै ना बदला ,तुम  ना बदली 
मै तुम पर पहले सा पगला,
                   और तुम भी  पगली की पगली 
साइकिल अब कार बन गई,काला फोन बना मोबाइल 
और रेडियो ने बन टी वी ,जीत लिया है ,सबका ही दिल 
मटके और सुराही फूटे ,अब घर घर मे रेफ्रीजरेटर 
ए सी ,पंखे,और अब कूलर,गर्मी मे करते ठंडा  घर 
लालटेन और दिये बुझ गए ,
                       अब घर रोशन करती बिजली  
सब  कुछ बदल गया दुनिया मे ,
                      मै ना बदला,तुम ना बदली 
प्रेमपत्र अब लिखे न जाते,इंटरनेट चेट होती  है   
आपस मे अब लुल्लू चुप्पू,मीलों दूर,बैठ होती है 
इस युग मे ,पति पत्नी ,लेकर,इक दूजे का नाम बुलाते 
पर तुम्हारे'ए जी 'ओ जी',अब भी मुझको बहुत सुहाते 
मेरे आँगन बरसा करती,
                   बन कर प्यार भरी तुम बदली 
सब कुछ बदल  गया दुनिया मे,
                   मै ना बदला,तुम ना बदली 
बेटा बेटी ,बदल गये सब,अपना घर परिवार बसा कर 
अपने अपने घर मे खुश है ,कभी कभी मिल जाते आकर
भाई बहन ,व्यस्त अपने मे,सबकी है अपनी मजबूरी 
बस अब हम तुम बचे नीड़ मे,और बनाई सब ने दूरी 
बंधा हुआ मै तुम्हारे संग ,
                      और तुम भी मेरे संग बंध ली 
सब कुछ बदल गया दुनिया मे,
                       मै ना बदला ,तुम ना बादली
       
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, June 16, 2013


  

     बुढ़ापा- जीवन का संडे 
जीवन भर संधर्ष किया है ,गुजरें है तूफानो से ,
हम मे ऊर्जा भरी हुई है,ये न समझना  ठंडे  है 
दिखने मे बेजान काठ से,दुबले पतले लगते है,
अगर पड़े तो खाल उधेड़े ,हम तो एसे  डंडे  है 
हमको मत कमजोर समझना,देख हमारी काया को,
हमने दुनिया देखी,आते ,हमको सब हथकंडे  है 
ये जीवन,सप्ताह एक है,हमने छह दिन काम किया,
अब आराम बुढ़ापे मे है,ये  जीवन का संडे  है 
'घोटू '


Monday, June 10, 2013

         जब पसीना गुलाब था 
          
वो दिन भी क्या थे ,जब कि पसीना गुलाब था 
हम भी जवान थे और तुममे भी शबाब था 
तुम्हारा प्यार   मदभरा  जामे-शराब था 
उस उम्र का हर एक लम्हा ,लाजबाब  था 
             बेसब्रे थे और बावले ,मगरूर बहुत थे
            और जवानी के नशे में हम चूर  बहुत थे 
            पर जोशे-जिन्दगी से हम भरपूर बहुत थे 
            लोगों की नज़र में हम नामाकूल  बहुत थे
  जब इन तिलों में तेल था ,वो दिन नहीं रहे 
  अरमान दिल के हमारे आंसू में  सब   बहे 
  अपने ही गये  छोड़ कर ,अब किससे क्या कहे 
  टूटा है दिल, उम्मीद के ,सारे  किले  ढहे 
            हमने था जिन्दगी  को बड़े चाव से जिया 
             आबे-हयात उनके लबों से था जब पिया 
               बढ़ती हुई उम्र ने है ऐसा सितम किया 
             वो दिन गए जब मारते थे ,फ़ाक़्ता मियां 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, June 7, 2013

         
          जिन्दगी -चार  मुक्तक 
                        १ 
 जिन्दगी थी ,खूबसूरत ,जिन पलों में 
  रहे उलझे,सांसारिक , सिलसिलों में 
   फेर में नन्यान्वे के रहे फंस  कर ,
  फायदे  ,नुक्सान की ही अटकलों में 
                         २ 
   हमें अच्छा या बुरा कुछ  दिख न पाया 
  भटकता  ही रहा ये मन, टिक न पाया 
  अभी तक  हिसाब ये हम कर न पाये ,
  हमने क्या क्या खोया और क्या क्या कमाया 
                          ३    
   जिन्दगी का मुल्य हम ना जान पाये 
    आपाधापी में यूं ही बस दिन बिताये 
    व्यर्थ की ही उलझनों में रहे उलझे ,
    अधूरी रह गयी मन की कामनायें 
                           ४ 
    सांझ आयी ,सूर्य ढलने लग गया है 
    उम्र का ये दौर  ,खलने  लग गया है 
    जितना भी हो सके,जीवन का मज़ा लें,
    ख्याल मन में ये  मचलने लग गया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

          बुढापे की खुराक 
          
खा लिया करते थे 'घोटू',पाच छह गुलाब जामुन ,
                उम्र का एसा असर है ,सिर्फ  जामुन खा रहे है 
दिल जलाया ,जलेबी ने,और रसगुल्ला हुआ गुल,
                  खीर खाना अब मना है,सिर्फ खीरा   खा रहे है 
भूल करके गर्म हलवा ,करेले का ज्यूस कड़वा ,
                    लूखी रोटी ,फीकी सब्जी, कैसे भी गटका रहे है  
तली चीजों पर है ताला ,चाय ,काफी पड़ी फीकी ,
                      शुगर  ना बढ़ जाए तन में,इसलिये घबरा रहे है 

  'घोटू'
                      बुजुर्गों का आशीर्वाद 
                       

प्रगति पथ पर जब भी बढ़ता आदमी ,
                        चढ़ने लगता तरक्की की सीढियां 
एक उसके कर्म से या भाग्य से ,
                         जाती है तर ,कई उसकी  पीड़ियाँ 
बनाता पगडंडियो को है सड़क ,
                         साफ़ होती राह जिसके काम से 
उसकी मेहनत का ही ये होता असर ,
                          सबकी गाडी  चलती  है आराम से 
बीज बोता ,उगाता है सींचता ,
                            वृक्ष होता तब कहीं फलदार  है 
खा रहे हम आज फल ,मीठे सरस ,
                             ये बुजुर्गों का दिया  उपहार  है 
आओ श्रद्धा से नमाये सर उन्हें ,
                               आज जो कुछ भी है,उनकी देन है 
उनके आशीर्वाद से ही हमारी ,
                                जिन्दगी में अमन है और चैन  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'