Friday, April 24, 2015

         बुजुर्गों की पीड़ा

हमारे एक बुजुर्ग मित्र,जो कभी हँसमुखी थे
अपने बच्चों के व्यवहार से,काफी दुखी थे
हमने समझाया,आपको रखना पडेगा थोड़ा सबर
क्योंकि ये जनरेशन गेप है याने पीढ़ियों का अंतर
इसलिए 'एडजस्ट 'करने में ही है समझदारी
खोल दो अपने दिल की बंद खिड़कियां सारी
इससे आपके नज़रिये में बदलाव आएगा
आपका दुखी जीवन संवर जाएगा
हमारी बात सुन कर ,वो गए बिफर
और बोले ये सब खिड़कियां खोलने का ही है असर
जब तक खिड़कियां बंद थी ,सुख था ,शांति थी,
घर में हमारी ही चलती थी
और खिड़कियां खोलना ही हमारी,
सब से बड़ी गलती थी
जब से बाहर की हवा के झोंके ,
खिड़कियों से अंदर आये है
ये अपने साथ धूल और गंदगी लाये है
मच्छर भिनभिनाते है ,
मख्खियां मंडराने लगी है
हमारी व्यवस्थित गृहस्थी ,
तितर बितर होकर,डगमगाने  लगी है
ये हमारे खिड़कीखोलने का ही है नतीजा
अब मक्की की रोटी नहीं बनती ,
हमारे घर आता है'पीज़ा'
इन बाहरी ताक़तों ने ,मेरे बच्चों पर ,
अपना कब्जा जमा लिया है
और धीरे धीरे मुझे बेबस बना दिया है
मेरा वजूद घटता जा रहा है ,
और मैं एक पुराने किले सा ढह गया हूँ
सिर्फ वार त्योंहार के अवसर   पर,
पाँव छूने की चीज बन कर रह गया हूँ
मेरे मन में यही बात खट रही है
जैसे जैसे मेरी उमर बढ़ रही है
मेरी  कदर घट   रही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

Tuesday, April 14, 2015

            किस्मत का चक्कर

तमन्ना थी दिल में ,बड़ी थी ये हसरत
कभी हम पे हो उनकी नज़रे इनायत
मगर घास उनने , कभी  भी  डाली,
जरा सी भी हम पे, दिखाई  न उल्फत
         अब जाके उनपे हुआ कुछ असर है
         यूं ही खामखां, ये इनायत मगर है 
         हरी घास जब सूखने लग गयी  है,
         लगे डालने हमको ,शामो-सहर है
देखो खुदा  का ये  कैसा  करम है 
वो सत्तर की है और पचोत्तर के हम है
न खाने की हिम्मत ,न ही भूख बाकी,
न ही दांतों में जब चबाने का दम है
         क्यों होता हमारे ही संग हर दफा है
         वफ़ा चाहते तब,न मिलती वफ़ा है
         थे जब बाल सर पर तो कंघी नहीं थी,
        मिली कंघी ,जब बाल सर के सफा है
खुदा तेरा इन्साफ  कैसा अजब है
नहीं मिलता खाना,लगे भूख जब है
और जब पचाने के लायक न रहते ,
पुरसता है हमको ,तू पकवान सब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'