Wednesday, March 27, 2013

            तलाश

मै तो दर दर भटक रहा था
गिरता पड़ता अटक रहा था
इधर झांकता,उधर  झांकता
सड़कों पर था धूल  फांकता
गाँव गाँव द्वारे द्वारे   में
मंदिर  मस्जिद , गुरद्वारे में
फूलों में  ,कलियों,में ढूँढा
पगडण्डी,गलियों में ढूंढा
मित्रों में ,अपने प्यारों में
कितने ही रिश्तेदारों में
कुछ जानो में ,अनजानो में
सभी वर्ण  के इंसानों में
भजन,कीर्तन के गानों में
युवा हो रही संतानों में
इस तलाश ने बहुत सताया
लेकिन फिर भी ढूंढ न पाया
नहीं कहीं भी ,लगा पता था
मै  'अपनापन 'ढूंढ रहा था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, March 20, 2013

   मै  बूढा हूँ

नाना रूप धरे है मैंने ,मामा था अब नाना हूँ
कभी द्वारकाधीश कृष्ण था,अब तो विप्र  सुदामा हूँ
दादागिरी जवानी में की ,अब असली में दादा हूँ
घोड़े जैसा चला ढाई घर ,अब छोटा सा प्यादा हूँ
फेंका गया किसी कोने में ,मै तो करकट कूड़ा हूँ
बहुत अवांछित और उपेक्षित,मै बुजुर्ग हूँ,बूढा हूँ
जीवन भर के उपकारों का,यही मिला प्रतिफल मुझको
तुम भी शायद ,भोगोगे ये,बूढा होना कल तुमको

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

      उम्र बुढापे की कमाल है

 बचपन में मन  होता निश्छल
हंसता एक पल,रोता एक पल
जब अबोध बालक मुस्काता
उस पर प्यार सभी को आता
फिर  किशोर वय  में भी  अक्सर 
बोझ पढाई का  है मन पर
और जवानी है जब आती
जीवन में खुशिया छा जाती
कैसे खायें  और   कमायें
मन में रहती है चिंतायें
ऐसे ही कट जाता यौवन
बहुत तरंगित तन,चिंतित मन
करते हम प्रयास है जी भर
बस जाए संतानों के घर
हमें बुढ़ापा आते आते
सबके अपने  घर बस जाते
घर में छा जाता सूनापन
खाली खाली लगता जीवन
तन पड़ने लगता है ढीला
हो जाता मन बहुत रंगीला
उम्र बुढ़ापे की जब आती
असली तभी  जवानी छाती
मन चाहे करना धमाल है
उम्र बुढ़ापे की भी कमाल है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'






Sunday, March 17, 2013

सपने सपने -कब है अपने

सपने सपने
कब है अपने
ये अपने ही जाये  होते 
खुलती आँख,पराये होते
बचपन में ,राजा ,रानी के
किस्सों से ,दादी,नानी के
और वैभव के ,किशोर मन में
खो जाते ,जीवन उलझन में
कुछ सच होते,कुछ तडफाते
सपने तो है ,आते जाते
आये ,बिना बुलाये होते
खुलती आँख,पराये होते
जब यौवन की ऋतू मुस्काती
फूल विकसते,कोकिल  गाती
कोई मन में बस जाता है
तो वो सपनो में आता   है
फिर शादी और जिम्मेदारी
रोज रोज की मारामारी
हरदम मुश्किल,ढाये होते
खुलती आँख ,पराये होते
फिर जब होती है संताने 
सपने फिर लगते है आने
बच्चे जो लिख पढ़ जायेंगे
काम बुढापे में आयेंगे 
बेटा बेटी ,अपने जाये
शादी होते,हुये पराये
बस यादों के साये  होते
खुलती आँख,पराये होते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, March 15, 2013

       नशा -बुढ़ापे का

आदमी पर जब नशा छाता है
वो ठीक से चल भी नहीं सकता ,
डगमगाता है
उसे कुछ भी याद नहीं रहता ,
सब कुछ भूल जाता है
मेरी माँ भी ठीक से चल नहीं सकती ,
डगमगाती है
और मिनिट मिनिट में ,
सारी  बातें भूल जाती है  ,
नशे के सारे निशां उसमे नज़र आते है,
उमर नब्बे की में भी ऐसा भला होता है
मुझे तो ऐसा कुछ लगता है कि मेरे यारों ,
बुढापे का भी कोई ,अपना नशा होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



Thursday, March 7, 2013

         अबकी होली ऐसे खेलो

घर के बुजुर्ग भी इन्सां है
उनके भी मन में अरमां है
एकाकीपन उन्हें खटकता है
मुश्किल से वक़्त  गुजरता है
तुम जान तभी ये पाओगे
जब तुम बूढ़े हो जाओगे
वे जीवनदाता  तुम्हारे
तुम लगते हो जिनको प्यारे
ये बात बहुत चुभती मन को
कर रहे उपेक्षित तुम उनको
वे यह अहसान चाहते है
थोडा सा ध्यान चाहते है
मेरा तुमसे ये कहना है
वे बड़े दुखी है,तनहा है
उनका मन जरा टटोलो तुम
दो शब्द प्यार के बोलो तुम
मुट्ठी भर प्यार उन्हें दे दो
सुख का संसार उन्हें दे दो
अबकी होली में ले गुलाल
उनका मुंह रंग दो,लाल लाल
पग छुवो,करो प्रणाम उन्हें
दे दो थोडा सन्मान उन्हें
उनके झुर्राये  से मुख पर
उमड़ेंगे ,खुशियों के बादल
आँखों से बह कर प्रेमनीर
कर देगा तुमको भी अधीर
बस इतना सा कर देने पर
जायेंगे वो खुशियों से भर
वो दिल से तुम्हे दुआ देंगे 
और आशिषे बरसा देंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, March 4, 2013

      होली के रंग-बुजुर्गों के संग

हम बुजुर्ग है ,एकाकी है
पर अब भी उमंग बाकी है
हंसी खुशी से हम जियेंगे,
जब तक ये जीवन बाकी है
अपनों ने दिल तोडा तो क्या ,
हमउम्रों का संग बाकी है
बहुत लड़ लिए हम जीवन में,
 अब ना कोई जंग बाकी है
मस्ती में बाकी का जीवन,
जी लेने के ढंग बाकी है
आओ मौज मनाये मिलकर ,
होली वाले रंग बाकी है
ऐसे होली रंग में भीजें,
सूखा कोई न अंग बाकी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'