Wednesday, March 27, 2013

            तलाश

मै तो दर दर भटक रहा था
गिरता पड़ता अटक रहा था
इधर झांकता,उधर  झांकता
सड़कों पर था धूल  फांकता
गाँव गाँव द्वारे द्वारे   में
मंदिर  मस्जिद , गुरद्वारे में
फूलों में  ,कलियों,में ढूँढा
पगडण्डी,गलियों में ढूंढा
मित्रों में ,अपने प्यारों में
कितने ही रिश्तेदारों में
कुछ जानो में ,अनजानो में
सभी वर्ण  के इंसानों में
भजन,कीर्तन के गानों में
युवा हो रही संतानों में
इस तलाश ने बहुत सताया
लेकिन फिर भी ढूंढ न पाया
नहीं कहीं भी ,लगा पता था
मै  'अपनापन 'ढूंढ रहा था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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