Tuesday, December 23, 2014

        बुढ़ापा -शाश्वत सत्य

मेरे मन में चाह हमेशा दिखूं जवां मै
और जवानी ढूँढा करता ,यहाँ वहां  मै
कभी केश करता काले ,खिजाब लगाके
शक्तिवर्धिनी कभी दवा की गोली  खा के
कभी फेशियल करवाता सलून में जाकर
नए नए फैशन से खुद को रखूँ सजा कर
और कभी परफ्यूम लगाता हूँ मै  मादक
करता हूँ जवान दिखने की कोशिश भरसक
जिम जाता हूँ ,फेट हटाने ,रहने को फिट
जिससे मेरी तरफ लड़कियां हो आकर्षित
पर किस्मत की बेरहमी करती है बेकल
जब कन्याएं,महिलायें कहती है 'अंकल'
लाख छिपाओ,उम्र न छिपती ,तथ्य यही है
मै बूढा हो गया ,शाश्वत सत्य  यही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, December 16, 2014

      माँ और बच्चे

मैं रोज देखता सुबह सुबह ,
माँएं ,अन संवरी ,बासी सी
कंधे ,बच्चों का बस्ता ले ,
कुछ लेती हुई उबासी सी
कुछ मना रही वो कुछ खाले ,
कुछ मुंह में केला ठूंस रही
तुम ने रखली ना सब किताब,
कुछ होमवर्क का पूछ रही
अपनी माँ की ऊँगली थामे ,
अलसाया बच्चा रहा दौड़
है हॉर्न बजाती स्कूल बस ,
वो कहीं उसको जाय छोड़
भारी सा बस्ता उसे थमा,
वह उसे चढ़ाती  है बस पर
निश्चिन्त भाव से फिर वापस ,
वो घर लौटा करती हंस कर
दोपहरी में फिर जब बस के ,
आने का होता है टाइम
आकुल व्याकुल सी बच्चे का,
वो इन्तजार करती हर क्षण
बस से ज्यों ही उतरे बच्चा ,
ले लेती उसका  बेग थाम
स्कूल की सब बातें सुनती ,
चलती धीमे से बांह थाम
माँ और बच्चों की दिनचर्या ,
मैं देखा करता ,रोज रोज
अनजाने ही मेरे मन में,
उठने लग जाता एक सोच
बच्चों का बोझ उठा पाते ,
माँ बाप सिरफ़ बस तक केवल
पड़ता है बोझ उठाना खुद ,
ही बच्चों को है जीवन भर
अक्षम होंगे जब मात पिता ,
जब ऐसे भी दिन आयेंगे
बच्चे उतने अपनेपन से ,
क्या उनका बोझ उठायेंगे ?
 रिटायरमेंट पति का-नज़रिया पत्नी का

हुये जब से रिटायर है ,
हमेशा रहते ये घर है
चैन अब दो मिनिट का भी,
नहीं हमको मयस्सर है
कभी कहते है ये लाओ
कभी कहते है वो लाओ
आज सर्दी का मौसम है,
पकोड़े तुम बना लाओ
नहीं जाते है ड्यूटी पर,
हुई मुश्किल हमारी है
सुबह से शाम सेवा में ,
लगी ड्यूटी हमारी है
नहीं होता है खुद से कुछ,
दिखाते रहते  नखरा  है 
क्यों इतनी गंदगी फैली ,
ये क्यों सामान बिखरा है
निठल्ले बैठे रहते है,
नहीं कुछ काम दिनभर है
बहुत ये शोर करते है ,
हुए खाली कनस्तर है
जरा सी बात पर भी ये ,
लड़ाई,जंग करते है
प्यार के मूड में आते ,
तो दिन भर तंग करते है
चले जाते थे जब दफ्तर
चैन से रहते थे दिन भर
नहीं थी बंदिशें कोई,
कभी शॉपिंग ,कभी पिक्चर
रिटायर ये हुए जब से ,
हमारी आयी आफत है
होगया काम दूना है,
मुसीबत ही मुसीबत है

घोटू
रिटायरमेंट के बाद-पति का नज़रिया

शिकायत उनको रहती थी ,
उन्हें टाइम न देते हम
अब तो टाइम ही टाइम है,
रिटायर हो गए है हम
अब तो चौबीस घंटे ही,
हम 'डिस्पोजल' पे उनके है
मगर ये बात भी तो ना ,
मुताबिक़ उनके मन के है
गयी है गड़बड़ा उनकी ,
सभी दिनचर्या है दिन की
हो गयी चिड़चिड़ी सी वो ,
हमेशा रहती है भिनकी
ये आदत थी कि ऑफिस में ,
चार छह चाय पीते थे
हुकुम में चपरासी हाज़िर ,
शान शौकत से जीते थे
आदतन मांग ली उनसे,
चाय दो चार दिन भर में
हुई मुश्किल उन्हें , होने ,
लग गया दर्द फिर सर में
न सोने को मिले दिन में,
न सखियों संग,सजे महफ़िल
हमाए पास ही दिन भर,
लगाएं कैसे अपना दिल
तरसती साथ को जो थी ,
लग गयी अब अघाने है
और हम पहले जैसे ही,
दीवाने थे,दीवाने है
है बच्चे अपने अपने घर,
अकेले घर में हम दोनों
कभी भी साथ ना इतने ,
थे जीवन भर में हम दोनों
न चिंता काम की कोई,
मौज,मौसम है फुरसत का
रिटायर हो के ही मिलता ,
मज़ा असली मोहब्बत का

Monday, December 15, 2014

     विदेश में बसी औलाद-माँ बाप की फ़रियाद

भूले भटके याद कर लिया करो हमें ,
             बेटे! इतना बेगानापन ठीक नहीं
पता नहीं हम कभी अचानक ही यूं ही,
          चले जाएँ कब, छोड़ ये चमन, ठीक नहीं
तुम बैठे हो दूर विदेशी धरती पर ,
           तुम्हे ले गयी है माया ,भरमाने की 
मातृभूमि की धरती ,माटी,गलियारे,
            जोह रहे है  बाट तुम्हारे  आने की
ऐसे उलझे तुम विदेश के चक्कर में,
            अपने माँ और बाप,सभी को भूल गये
तुमको लेकर क्या क्या आशा थी मन में,
             इतने सपने  देखे, सभी फिजूल गये
यहीं बसा परिवार,सभी रिश्ते नाते,
              ये  तुम्हारा देश,तुम्हारी  धरती  है
आस लगाए बैठे है कब आओगे ,
             प्यासी आँखे ,राह निहारा  करती है
जहाँ पले  तुम ,खेले कूदे ,बड़े हुए,
              याद तुम्हे वो घर और आँगन करता है
तुम शायद ही समझ सकोगे कि कितना,
             याद तुम्हे व्याकुल होकर मन करता है
सोच रहे होगे 'इमोशनल फूल' हमें ,
              हाँ ,ये सच है ,हम में बहुत 'इमोशन' है
नहीं 'प्रेक्टिकल'हैं हम इतने अभी हुये ,
             प्यार मोहब्बत अभी यहाँ का 'फैशन'है
हमको तुम हर महीने भेज चन्द 'डॉलर',
             सोचा करते ,अपना फर्ज निभाते हो
भूले भटके ,बरस दो बरस में ही तुम ,
              शकल दिखाने  ,कभी कभी आ जाते हो
यही देखने कि हम अब तक ज़िंदा है,
               कितनी 'प्रॉपर्टी' है,कीमत  क्या  होगी
हरेक  चीज, पैसों से तोला करते हो ,
               तुम्हे प्यार करने की फुर्सत कब होगी
हम माँ बाप ,तुम्हारी चिंता करते है ,
                देते तुमको सदा दुआ ,सच्चे  मन से
जबकि तुमने सबसे ज्यादा दुखी किया ,
                  बन  निर्मोही,अपने   बेगानेपन  से
 फिर भी इन्तजार में तुम्हारे,आँखें,
                  लौट आओगे ,आस लगाए ,बैठी है
शायद तुमको भी सदबुद्धी आजाये ,
                  मन में यह विश्वास जगाये बैठी  है      
ऐसा ना हो ,इतजार करते आँखें,
                  रहे खुली की खुली ,लगे पथराने सी
मरने पर भी लेट बरफ की सिल्ली पर ,
                   करे प्रतीक्षा ,तुम्हारे आ जाने की
बहुत जलाया हमको तुमने जीवन भर,
                 अंतिम पल भी तुम्ही जलाने आओगे
बहुत बहाये आंसू हमने जीवन भर ,
                   तुम गंगा में अस्थि बहाने आओगे
सदा प्यार से अपने भूखा रखा हमें ,
                    आकर कुछ पंडित को भोज कराओगे
और बेच कर सभी विरासत पुरखों की,
                     शायद अपना अंतिम फर्ज ,निभाओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

Friday, November 28, 2014

          व्यायाम केंद्र

त्याग कर के नींद अपनी ,भाग आते ,जाग कर ,
                   लाख  हमको आये आलस ,मगर रुकते हम  नहीं
अच्छी सेहत का है लालच ,स्वास्थ्य की दीवानगी,
                   आपकी ये व्हिसिल ,रणभेरी से कोई कम नहीं
चाहे गर्मी ,चाहे सर्दी या चाहे बरसात हो ,
                    रोक सकता है हमें अब कोई  मौसम   नहीं  
करते वर्जिश ,खिलखिलाते और बजाते तालियां,
                     बूढ़े है तो क्या हुआ ,हम भी किसी से कम नहीं     

घोटू
               खड़े खड़े

हमें है याद स्कूलमे,शैतानी जब भी करते थे,
              सज़ा अक्सर ही पाते थे,बेंच पर हम खड़े होकर
गए कॉलेज तो तकते थे,लड़कियों को खड़े होकर,
              नया ये शौक पाला  था ,जवानी में बड़े होकर
हुस्न कोई अगर हमको ,कहीं भी है नज़र आता ,
              अदब से हम खड़े होकर ,सराहा करते ,ब्यूटी है
ट्रेन लोकल में या बस में,सफर  करते खड़े होकर ,
              खड़े साहब के आगे हो ,निभाया करते ड्यूटी  है
मुसीबत लाख आये पर ,तान सीना खड़े रहते ,
               बहुत है होंसला जिनमे,उन्हें सब मर्द कहते है
किसी की भी मुसीबत में,खड़े हो साथ देते है ,
               दयालू लोग वो  होते, उन्हें  हमदर्द   कहते  है
बनो नेता ,करो मेहनत ,इलेक्शन में खड़े  होकर,
              जीत कर पांच वर्षों तक ,बैठ सकते हो कुर्सी पर
बड़े एफिशिएंट कहलाते ,तरक्की है सदा पाते ,
               काम  घंटों का मिनटों में,जो निपटाते खड़े रह कर
खड़े हो जिंदगी की जंग को है  जीतना पड़ता ,
               आदमी रहता है सोता ,अगर यूं ही पड़ा  होता      
खड़े होना सज़ा भी है,खड़े होना मज़ा भी है,
                जागता आदमी है जब ,तभी है वो खड़ा होता
इशारे उनकी ऊँगली के ,और हम नाचे खड़े होकर ,
                  जवानी में खड़े होकर ,बहुत की उनकी खिदमत है
आजकल तो ठीक से भी,खड़े हम हो नहीं पाते ,
                    बुढ़ापा ऐसा आया है,  हो गयी पतली हालत है

मदन  मोहन बाहेती'घोटू'     

Monday, November 24, 2014

   बुढ़ापे में-पत्नी के कितने ही रूप

उम्र के इस मोड़  पर
सभी बच्चों ने बसा लिया है अपना घर,
हमें तन्हा छोड़ कर
मैं और मेरी पत्नी,दोनों अकेले है ,
पर मिलजुल कर वक़्त काटते है
अपनी अपनी पीड़ाएँ ,आपस में बांटते है
कई बार ऐसे भी मौके आते है
मुझे अपने परिवार के लोग,
अपनी पत्नी में नज़र आते है
जैसे फुर्सत में कभी कभी ,
जब वो मेरे बालों को सहलाती है
मुझे बचपन में,मेरे बालों को सहलाकर ,
कहानी  सुनाती हुई 'दादी' नज़र आती है
और जब वो मेरी पसंद का खाना बना,
बड़ी मनुहार कर ,मुझे प्यार से खिलाती है
उसमे,मुझे  मेरी 'माँ'की छवि नज़र आती है
जब कभी बड़े हक़ से ,
छोटी छोटी चीजों के लिए जिद करती है
मुझे अपनी 'बेटी' सी लगती है
और जब नाज़ और नखरे दिखा कर लुभाती है
तब मुझे वो मेरी पत्नी नज़र आती है
कई बार मुझे लगता है कि इसी तरह ,
हम एक दूसरे में,अपना बिछुड़ा परिवार  ढूंढते है
 बस इसी तरह ,खरामा ,खरामा ,
 बूढ़ापे  के दिन कटते  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 20, 2014

      जीवन संध्या

बड़ी बड़ी बुलंद इमारतें भी ,
शाम के धुंधलके में ,
नज़र  नहीं आती है
अस्तित्व होते हुए भी ,
 गुम  हो जाती है
ऐसा ही होता है,
जब जीवन की संध्या आती है

घोटू
          आम का वृक्ष -उमर का असर

आम का वृक्ष,
जो कल तक ,
दिया करता था मीठे फल
अब छाँव देता है केवल
इसलिए उपेक्षित है आजकल
भले ही अब भी ,
उस पर कोकिल कुहकती है
पंछी कलरव करते है,
शीतल हवाएँ बहती है
पर,अब तो बस केवल
पूजा और शुभ अवसरों पर ,
कुछ पत्ते बंदनवार बना कर ,
लटका  दिये जाते है
जो उसकी उपस्तिथि  अहसास आते है
उसके अहसानो का कर्ज ,
इस तरह चुकाया जाता  है
कि उसकी सूखी लकड़ी को,
हवन में जलाया जाता है
फल नहीं देने  फल ,
उसे इस तरह मिल रहा  है 
आम का वृक्ष ,
अब बूढ़ा जो हो रहा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
            बदलाव -बढ़ती  उमर का

पेट कल भी भरा करता था इसी से ,
                पेट भरती  आजकल  भी तो यही है
फर्क ये है कल गरम फुलका नरम थी,
                आजकल ये डबल रोटी   हो गयी  है
साथ जिसके जागते थे रात भर हम ,
                  जगाती  है हमें अब भी ,रात भर वो
तब जगा  करते थे मस्ती मौज में हम,
                 नहीं सोने देती है अब खांस कर वो
पहले सहला ,लगा देते आग तन में,
                 हाथ नाजुक ,कमल पंखुड़ी से नरम जो
हो गए है आजकल वो खुरदुरे से ,
                 अब भी राहत देते है खुजला   बदन को
था  ज़माना प्रेम से हमको खिलाती ,
                  कभी रसगुल्ला ,जलेबी या मिठाई
आजकल  मिठाई पर पाबंदियां है ,
                  देती सुबहो शाम है हम को दवाई  
रोकती हमको पुरानी हरकतों से ,
                   कहती ब्लडप्रेशर  तुम्हारा बढ़ न जाये
जोश होता हिरण ,रहते मन मसोसे ,
                    बुढ़ापे ने हमको क्या क्या  दिन दिखाये

मदन मोहन बाहेती''घोटू'

Friday, November 14, 2014

          बढ़तीं उमर की रईसी

हम हो गए रईस है इस बढ़ती उमर में,
         सर पर है चांदी और कुछ सोने के दांत है
किडनी में,गॉलब्लेडर में ,स्टोन कीमती,
         शक्कर का पूरा कारखाना ,अपने साथ है
अम्बानी के तो गैस के कुवें समुद्र में ,
         हम तो बनाते गैस खुद ही ,दिन और रात है
है पास में इतना बड़ा अनुभव का खजाना ,
         जिसको कि बांटा करते है हम ,खुल्ले हाथ है    

घोटू

Thursday, October 30, 2014

        कार का पुराना मॉडल

हमारी कार का मॉडल,पुराना  हो गया है पर ,
          अभी बकरार इंजिन का ,वही जलवा पुराना है
अभी भी स्टीयरिंग में और गियर में जान है वो ही ,
          वही रफ़्तार है कायम ,सफर वो ही सुहाना  है
ये दीगर बात है कि शॉक अब्सोर्बर पड़े ढीले,
            और टायर भी थोड़े घिस गए है इतना चल चल के ,
समय के साथ थोड़ा रंग भी है पड गया फीका, 
            फसें हम  प्यार में उसके ,वही गाडी चलाना   है           

घोटू

Monday, October 27, 2014

                  फूटे हुए पटाखे हम है

सूखी  लकड़ी मात्र नहीं हैं,हम खुशबू वाले चन्दन है
जहाँ  रासलीला होती थी,वही पुराना  वृन्दावन है
कभी कृष्ण ने जिसे उठाया था अपनी चिट्टी ऊँगली पे,
नहीं रहे हम अब वो पर्वत,अब गोबर  के गोवर्धन है
हरे भरे और खट्टे मीठे , अनुभव वाली कई सब्जियां ,
मिला जुला कर गया पकाया ,अन्नकूट वाला भोजन है
बुझते हुए दीयों के जैसी ,अब आँखों में चमक बची है,
जब तक थोड़ा तेल बचा है,बस तब तक ही हम रोशन है
ना तो मन में जोश बचा है,ना बारूद  भरा है तन में,
जली हुई हम फूलझड़ी है,फूटे हुए पटाखे,बम  है

घोटू

Sunday, October 19, 2014

             वो बात अब न रही

जी तो करता है मेरा ,ये भी करू,वो भी करू,
         मगर मैं क्या करूं ,ये उम्र साथ अब न रही
न तो हम में ही रहा जोश वो जवानी का,
           तुम्हारे जलवों में वैसी बात अब न रही 
फ़ाख़्ता मारते थे जब मियां ,वो दिन न रहे,
           सितारे तोड़ के लाने की उमर बीत गयी,
अब तो अखरोट भी हम तोड़ नहीं पाते है,
          रंगीले दिन और सुहानी वो रात अब न रही
ज़माना वो भी था जब हम पतंग उड़ाते थे,
          माशुका  हाथ में चरखी ले ढील देती  थी,
 हम खुद ही हो गए है इस कदर ढीले ,
           वक़्त की डोर भी तो अपने हाथ अब न रही
बहुत ही चौके और छक्के जड़े  जवानी में ,
            समय के आगे मगर हुए 'कैच आउट'हम
अब तो हम 'पेवेलियन'छोड़ कर जाने वाले ,
           हमारे  बल्ले में वो करामात अब न  रही
कभी डंका हमारे नाम का भी बजता था,
         हमारी आरती भी लोग उतारा करते ,
ज़माना करता नमस्कार चमत्कारों को ,
        हमारे जादू में भी वैसी बात अब न रही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

Wednesday, October 15, 2014

               अपने जब होते बेगाने

पहले तुम जितने अपने थे ,अबतुम उतने ही बेगाने हो
और जान कर भी ये सब कुछ,बनते बिलकुल अनजाने हो
बन कर नन्हे फूल खिले थे,महके थे तुम जब आँगन में
तुमको लेकर,जाने क्या क्या ,सपने देखे थे इस मन ने
पाल,पोसा और संवारा ,हरदम रख कर ख्याल तुम्हारा
 सोचा था जब जरुरत होगी ,तब तुम दोगे  ,हमें सहारा
पर बचपन में ही तो केवल,बात हमारी तुम माने हो
पहले तुम जितने अपने  थे,अब उतने ही बेगाने हो
साथ समय के,बड़े चाव से,घर तुम्हारा,गया बसाया
करी तुम्हारी शादी उस संग,मीत  तुम्हारे मन जो भाया
लेकिन दिन दिन ,दूर हुए तुम,होनी ने वो  चक्र चलाया
एक रिश्ते में ,ऐसे उलझे ,बाकी रिश्तों को बिसराया
प्यार सदा हम बरसाते है,तुम रहते ,भृकुटी  ताने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो
कभी नहीं सोचा था हमने,कि तुम इतने बदल जाओगे
अगर सफलता पा जाओगे ,तो तुम  इतना इतराओगे
मत भूलो,जो तुम हो  उसमे,बहुत हमारा योगदान है
मात  पिता की आशीषों से ,ही बच्चे  बनते महान है
नहीं समझ में हमको आता ,जाने क्या मन में ठाने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो
तुम्हारी मति  हुई भ्रष्ट है,हम खुश रहते,तुम्हे कष्ट है
या तुम हुए गर्व से अंधे ,या विवेक हो गया नष्ट है
लेकिन तुम दिल के टुकड़े हो ,बदल गए  ,दुर्भाग्य हमारा
सदा सुखी,खुश रहो,फलो और फूलो,आशीर्वाद हमारा
समय तुम्हे सद् बुद्धि  देगा ,नियति को कब पहचाने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

Tuesday, October 14, 2014

            शाम आ रही है

दिन ढल रहा है और शाम आ रही है,
तभी साये अब लम्बे होने लगे  है
बदलती ही करवट ,जहाँ यादें रहती ,
सलवट भरे वो बिछौने   लगे है
बुझने को होता दिया जब है कोई,
सभी कहते है वो भभकता बहुत है,
हमें लगता है शायद ये ही वजह है ,
कि हम और रोमांटिक होने लगे है
चेहरे पे झुर्री है,आँखों में  जाले ,
नहीं दम बचा,हसरतें पर बड़ी है
इसी आस में कुछ निकल आये मख्खन,
मथी  छाछ,फिर से बिलोने लगे है 
बड़े चाव से वृक्ष रोपा था हमने ,
बुढ़ापे में खाने को फल देगा मीठे ,
फल लग रहे हैं,मगर खा न पाते ,
उमर के सितम ऐसे होने लगे है
बहुत व्यस्त अपनी गृहस्थी में बच्चे,
सुखी है सभी अपनी मस्ती में बच्चे ,
समझते हमें फालतू बोझ लेकिन,
जमाने के डर से ,वो ढोने लगे है
सूरज किरण संग कभी खेलते थे ,
अभी संध्या संग है और रजनी बुलाती ,
कहते है नींद ,मौत की  है सहेली ,
बड़ी देर उसके संग ,सोने लगे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, October 2, 2014

          ना इधर के रहे -ना उधर के रहे

ना तो उस दौर के और न इस दौर के ,
             बन गए दरमियानी कोई चीज हम
ना फलक पर चढ़े,ना जमीं पर रहे ,
            रह गए बस लटकते ही अधबीच हम
ना तो भूखे ही है,ना भरा पेट है ,
            बीच खाने के थाली  को क्यों छोड़ दें,
ना इधर के रहे ,ना उधर के रहे ,
           उम्र की ऐसी आ पहुंचे ,दहलीज हम 
जिस्म कहता है अब हम जवां ना रहे,
            कोई बूढा कहे ,दिल ये ना मानता ,
जब जवां लड़कियां हमको अंकल कहे ,
            दिल में होती चुभन,जाते है खीझ हम
ना तो काले ही है ,ना सफ़ेद ही हुए ,
            बाल सर पर हमारे बने खिचड़ी ,
उम्र का फर्क ये , हमको मिलने न दे ,
           रह गए एक दूजे पे ,बस रीझ हम
ना तो दिन ही ढला,ना हुई रात है ,
          शाम की है ये बेला ,बड़ी खुशनुमा ,
है बड़ा ही रूमानी ,सुहाना समां ,
          प्रेम के रस में जाते है अब भीज हम
ना तो नौसिखिया ही है ,ना रिटायर हुए,
          है तजुर्बा भरा ,तन  मे ताक़त भी है,
कोई कितना भी आजमा ,हमें देख ले,
          पायेगा ये बड़े काम की चीज  हम
दिल में जज्बा जवानी का कायम अभी,
           बात दीगर है अब जल्दी थक जाते हम ,
है बुलंदी पे अब भी मगर हौसला ,
            अब करें क्या ,बताओ ना तुम,'प्लीज 'हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, September 21, 2014

             कल की यादें-आज की बातें

                             १
याद हमको आते वो दिन ,हम बड़े दिलफेंक थे
दिखने में लगते थे असली ,पर असल में 'फेक'थे
जवानी में खूब जम कर हमने मारी मस्तियाँ ,
अब तो टीवी  हो या बीबी,  दूर से बस  देखते
                    २
हो रही मुश्किल बहुत अब ,कैसे टाइम 'किल'करें
व्यस्त है लाइन सभी की, किसे 'मोबाइल ' करें
इस तरह के बुढ़ापे में ,हो गए हालात  है,
गया 'थ्रिल',तन शिथिल ,अब क्या किसीसे हम मिल करें
                   ३
अपने  बूढ़े दोस्तों संग ,थोड़ी गप्पें हाँक लो
बैठ कर के ,गैलरी में,थोड़ा नीचे झाँक लो
'एक्स्ट्रा करिक्यूलियर एक्टिविटी' के नाम पर,
पड़ोसन क्या कर रही,नज़रें बचा कर ताक लो

घोटू

Sunday, September 14, 2014

       बीत गए दिन

बीत गए दिन अवगुंठन के ,
         अब केवल सहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
          अपना मन बहला लेते है
जो पकवान रोज खाते थे,
           कभी कभी ही चख पाते है
जोश जवानी का गायब है ,
           अब जल्दी ही थक जाते है
'आई लव यू 'उनको कह देते ,
           उनसे भी कहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर ,
          अपना मन बहला लेते है
कभी दर्द मेरा सर करता ,
            कभी पेट दुखता तुम्हारा
कभी थकावट, बने रुकावट,
            एक दूजे  से करें किनारा
कोई न कोई बहाना करके ,
             इच्छा को टहला देते  है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
            अपना मन बहला लेते  है
गया ज़माना रोज चाँद का ,
           जब दीदार हुआ करता  था
मौज ,मस्तियाँ होती हर दिन ,
          जब त्योंहार हुआ करता था
बीती यादों की गंगा में,
           बस खुद को  नहला लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता कर,
           अपना मन बहला लेते है
 शाश्वत सत्य बुढ़ापा लेकिन ,
             उमर बढ़ी और जोश घट गया      
एक दूजे की पीड़ा में ही ,
               हम दोनों का ध्यान  बंट  गया
 शारीरिक सुख ,गौण हो गया ,
              मन का सुख पहला  लेते है
बस ऐसे ही प्रीत जता  कर ,
              अपना मन बहला लेते  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '    

Friday, September 5, 2014

              उम्र के त्योंहार में

क्यों परेशां हो रहे हो  ,तुम यूं  ही  बेकार में
आएगा जब समापन इस उम्र के त्योंहार में
यज्ञ की आहुतियों से ,स्वाह तुम हो जाओगे,
राख यमुना में बहेगी,हड्डियां  हरद्वार  में
तुम उठे,दो चार दिन में 'उठाला 'हो जाएगा ,
तुम्हारी तस्वीर भी,छप सकती है अखबार में
सांस राहत की मिलेगी ,तुम्हारी संतान को ,
तुम्हारी दौलत बंटेगी ,जब सभी परिवार में
अब तो निपटा देते बरसी ,लोग बस एक माह में,
श्राद्ध में  याद आ सकोगे,साल में, एक बार  में
जब तलक संतान है ,बन कर के उनकी वल्दियत,
उनकी तुम पहचान बन कर,रहोगे   संसार   में
सोच कर यह , घर का इंटीरियर ना  जाए  बिगड़ ,
तुम्हारी  तस्वीर भी ना टंगेगी ,दीवार  में
जब तलक है दम में दम और बसे तन में प्राण है,
तब तलक ही तुम्हारा ,अस्तित्व है संसार में

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, September 3, 2014

         जोश- बुढ़ापे में

उठो,जागो,पड़े रहने से न कुछ हो पायेगा ,
                     अगर कुछ  करना है तुमको ,खड़ा होना  चाहिए
यूं ही ढीले पड़े रह कर ,काम हो सकता नहीं,
                      जोश हो और हौसला भी,बड़ा होना  होना  चाहिए
इस बुढ़ापे  में भला ये सब कहाँ हो पायेगा ,
                       ये ग़लतफ़हमी तुम्हारी ,सोचना ये छोड़ दो,
पुरानी माचिस तीली भी लगा देती आग है ,
                        मसाला माचिस पर लेकिन ,चढ़ा होना चाहिए

घोटू

Wednesday, August 27, 2014

      हम बूढ़े है

हम बूढ़े है,उमर हो गयी ,
      लेकिन नहीं किसी से कम है
स्वाभिमान के साथ जियेंगे ,
      नहीं झुकेंगे,जब तक दम  है
साथ उमर के ,शिथिल हुआ तन,
     किन्तु हमारा मन है चंगा
जो भी चाहे,लगाले डुबकी ,
    भरी प्यार की,हम है गंगा
सबको पुण्य प्रदान करेंगे,
    जब तक जल है,बहते हम है
स्वाभिमान से जिएंगे हम ,
   नहीं झुकेंगे,जब तक दम है
चाह रहे तुमसे अपनापन ,
     शायद हमसे हुई भूल है
पान झड़ गए सब पतझड़ में,
    हम फुनगी पर खिले फूल है
हमने आते जाते देखे,
   कितने ही ऐसे  मौसम है
स्वाभिमान से जिएंगे हम,
    नहीं झुकेंगे ,जब तक दम है 
अनुभव की चांदी बिखरी है ,
    काले केश हो रहे  उज्जवल
सूरज जब ढलने लगता है,
         किरणे होजाती है शीतल
जहाँ प्यार की धूप पसरती ,
        हम वो खुला हुआ  आँगन है
स्वाभिमान से जिएंगे हम,
    नहीं झुकेंगे,जब तक दम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, August 6, 2014

         बीबीजी की चेतावनी

मुझे तुम कहते हो बुढ़िया ,जवां तुम कौन से लगते
  तुम्हारी फूलती साँसे ,चला  जाता  नहीं    ढंग से
मैं तो अब भी ,अकेले ही ,संभाला करती सारा घर
नहीं तुम  टस से मस होते ,काम करते न  रत्ती भर
नयी हर रोज फरमाइश ,बनाओ ये , खिलाओ ये
रहूँ दिन भर मैं ही पिसती ,भला क्यों कर,बताओ ये
तुम्हारी पूरी इच्छाये ,सभी दिन रात ,मैं करती
और उस पर ये मजबूरी ,रहूँ तुमसे ,सदा डरती
तुम्हारे सब इशारों पर ,नाचने वाली , अब मैं  ना
बहुत शौक़ीन खाने के ,हो तुम पर ये ,समझ लेना
सजी पकवान की थाली ,तुम्हे चखने भी  ना  दूंगी
कहा फिर से अगर बुढ़िया ,हाथ रखने भी ना दूंगी

घोटू

 

Monday, July 28, 2014

'हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा '

बड़े  सख्त दिल के है दीखते जो इन्सां ,
         रहे झाड़ते रौब ,हमेशा ही,जब तब
झलकते  है उनकी भी आँखों में आंसूं,
       विवाह करके बेटी,बिदा करते है जब
बाहर से कोई दिखे सख्त दिल पर ,
       है दिल मोम  का और भरा प्यार सच्चा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
      हरेक में छुपा है ,एक छोटा सा बच्चा
अम्मा की गोदी में जब रखता माथा ,
     ममता से अम्मा ,जब  सहलाती सिर  है
आँखों में छा जाती बचपन की यादें ,
    लौट आता प्यारा सा, बचपन वो फिर है
नज़र फिर से आता है ,भोलापन वो ही ,
    वही प्यारी मीठी सी,बातों का  लच्छा
बड़ा कोई कितना भी बन जाए लेकिन,
    हरेक में छुपा  है एक छोटा सा बच्चा
नफासत,नज़ाकत,शराफत का पुतला,
          बड़े ही अदब से ,सदा पेश आता  
बड़े ही सलीके से,काँटा छुरी से ,
          है खाने की टेबल पे ,खाना जो खाता
अकेले में,ठेले पे,खा गोलगप्पे,
          या गोला बरफ का,मज़ा लेता सच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
         हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा
वो बच्चा बड़ा जो हठी जिद्दी होता ,
         जिसे पाने को रहती,चन्दा की चाहत
अगर जिद नहीं उसकी होती है पूरी ,
        उठा लेता ,घर सर पे,करता मुसीबत
उसे अक्स चंदा का पानी में दिखला ,
         नहीं बहला सकते हो,दे  सकते गच्चा
भले ही बड़ा कोई बन जाए कितना ,
         हरेक में छुपा है,एक  छोटा  सा बच्चा
बुढ़ापे में आता वो बच्चा निकल कर,
        वो ही जिद,हठीपन और वो ही मचलना
बूढ़ों में ,बच्चों में ,अंतर न रहता ,
        वही खानापीना और डगमग के चलना
बच्चों सी जिद ,रौब लेकिन बड़ों सा ,
        है लाचार तन ,प्यार दिल में है  सच्चा
बड़ा कोई कितना ही बन जाए लेकिन ,
        हरेक में छुपा है एक छोटा सा बच्चा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, July 21, 2014

            पुराने खिलाड़ी

न तो देखो धुला कुरता ,फटी बनियान मत देखो
          धड़कता इनके पीछे जो, दीवाना सा है दिल देखो
सफेदी देख कर सर की ,नहीं बिदकाओ  अपना मुंह,
            पुराने हम खलाड़ी है ,कभी हम से तो मिल देखो
       पुराने स्वाद चावल है ,अनुभव का खजाना है 
        चखोगे ,याद रख्खोगे ,माल परखा ,पुराना है
 नए नौ दिन,पुराने सौ दिनों तक काम आते है ,
       इस भँवरे का दिवानापन,कभी फूलों सा खिल देखो                 
'घोटू '
       उम्र है  मेरी तिहत्तर

जिंदगानी के सफर में ,मुश्किलों से रहा लड़ता
आ गया इस मोड़ पर हूँ,कभी गिरता ,कभी पड़ता
ना किया विश्राम कोई,और रुका ना ,कहीं थक कर
                                           उम्र है मेरी तिहत्तर
जवानी  ने बिदा ले ली ,भले कुछ  मुरझा रहा तन
जोश और जज्बा पुराना ,है मगर अब तलक कायम
आधा खाली दिख रहा पर,भरा है आधा कनस्तर
                                           उम्र है मेरी तिहत्तर  
भले ही सर पर हमारे ,सफेदी सी छा रही  है
पर हमारे हौंसले की ,बुलंदी वो की  वो ही है
दीवारें मजबूत अब भी ,गिर रहा चाहे पलस्तर
                                       उम्र मेरी है तिहत्तर  
छाँव दी कितने पथिक को ,था घना मैं जब तरुवर
दिया पंछी को बसेरा और बहाई हवा शीतल
फल उन्हें भी खिलाएं है,मारा जिनने ,फेंक पत्थर
                                           उम्र मेरी है तिहत्तर
किसी से शिकवा न कोई ,ना किसी को कोसता हूँ
न तो कल को भूल पाता और न कल की सोचता हूँ
पा लिया मैंने बहुत कुछ,जैसा था मेरा मुकद्दर
                                      उम्र मेरी है तिहत्तर
बेसुरी सी हो रही है  उमर के  संग  बांसुरी है
लग गयी बीमारियां कुछ,किन्तु हालत ना बुरी है
ज़रा ब्लडप्रेशर बढ़ा है,खून में है अधिक शक्कर
                                         उम्र है मेरी तिहत्तर
कठिन पथ है ,राह में कुछ ,दिक्कतें तो आ रही है 
चाल है मंथर नदी की ,मगर बहती जा रही है
 कौन जाने कब मिलेगा ,दूर है कितना समंदर
                                        उम्र है मेरी तिहत्तर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, July 15, 2014

           उम्र बढ़ी तो क्या क्या बदला

गठीली थी जो जंघाएँ ,पड़  गयी गांठ अब उनमे ,
              कसा था जिस्म  तुम्हारा ,हुआ अब गुदगुदा सा है
कमर चोवीस इंची थी ,हुई चालीस इंची अब,
              पेट  पर पड़  गए है सल, हुलिया ही जुदा सा  है
लचकती थी कमर तुम्हारी ,चलती थी अदा से जब ,
              आजकल चलती हो तुम तो,बदन सारा लचकता है
हिरन जैसी कुलाछों में,आयी गजराज की मस्ती,
              दूज का चाँद था जो ,हो गया ,अब वो पूनम का है
भले ही आगया है फर्क काफी तन में तुम्हारे ,
               तुम्हारे मन का भोलापन ,वही प्यारा सा है निर्मल
आज भी प्यार से जब देखती हो,जुल्मी नज़रों से ,
              दीवाना सा मैं हो जाता,मुझे कर देती तुम  पागल
कनक की जो छड़ी सा था ,हुआ है तन बदन दूना ,
               तुम्हारा प्यार मुझसे हो गया है चौगुना   लेकिन
हो गए इस तरह आश्रित है हम एक दूजे पर ,
               न रह सकती तुम मेरे बिन,न मैं रहता तुम्हारे बिन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

Sunday, July 13, 2014

           पुराना माल -तीन चतुष्पद
                              १
पुराने माल है लेकिन,ढंग से रंग रोगन कर ,
         किया 'मेन्टेन 'है खुद को ,चमकते ,साफ़ लगते है
कमी जो भी है अपनी ,हम,उसे ऐसा छिपाते है,
          लोग ये कहते है तंदरुस्त कितने   आप लगते है
हरेक अंग आजकल नकली ,हमें बाज़ार में मिलता ,
           आप  इम्प्लांट करवा लो,लगालो बाल भी नकली , 
विटामिन और ताक़त की ,गोलियां खूब बिकती है,
           जवाँ खुद ना ,जवानो के ,मगर हम बाप  लगते  है
                          २    
तीन ब्लेडों के रेज़र से,सफाई गाल की करते ,
           लगा कर 'फेयर एंड लवली'रूप अपना निखारा  है
रँगे  है बाल हमने 'लोरियल'की हेयर डाई से,
            कराया 'फेसियल' सेलून' में ,खुद को संवारा है 
 आज भी जब कलरफुल 'ड्रेस में सज कर निकलते है,
            लड़कियां 'दादा' ना  कहती, हमें 'अंकल'बुलाती है,
बूढ़ियाँ भी हमें नज़रें बचाके देख लेती है ,
                 कहे कोई हमें बूढा ,ये  हमको ना गंवारा है 
                           ३
'सेल'है 'एंड सीजन 'का,माल ये सस्ता हाज़िर है ,
          है डिस्काउंट भी अच्छा , ये मौका फिर न पाएंगे
पके है पान खा  लो तुम,न सर्दी ना जुकाम होगा ,
         बहल कुछ तुम भी जाओगे ,बहल कुछ हम भी जाएंगे
पुराना माल है इसको,समझ एंटीक ही ले लो,
       समय के साथ 'वेल्यूं' बढ़ती जाती ऐसी चीजों की,
उठाओ लाभ तुम इसका,ये ऑफर कुछ दिनों का है,
         हाथ से जाने ना दो तुम   ,ये मौका फिर न पाएंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
         बरसात आई

आज बरसात आई है
मुद्द्तों बाद आयी है
मचलने लग गया है मन,
लिए जज्बात आयी है
हुआ मौसम बड़ा बेहतर
भीग कर जाएँ हम हो तर
 साथ बूंदों के हम नाचें,
मज़ा मौसम का लें जी भर
देख कर तेरा भीगा तन ,
रहूँ ना मैं भी आपे में
मज़ा मुझको जवानी का,
मिले फिर से बुढ़ापे में

घोटू

Sunday, July 6, 2014

       बूढ़ों में भी दिल होता है

होता सिर्फ जिस्म बूढा है,
जो कुछ नाकाबिल होता है
पर जज्बात भड़कते रहते,
बूढ़ों में भी दिल होता है
सबसे प्यार महब्बत करना
और हुस्न की सोहबत करना
ताक,झाँक,छुप कर निहारना
चोरी चोरी  ,नज़र   मारना
जब भी देखें , फूल सुहाना
भँवरे सा उसपर  मंडराना
सुंदरता की  खुशबू  लेना
प्यार लुटाना और दिल देना
ये सब बातें, उमर न देखे
निरखें हुस्न ,आँख को सेंकें
दिल पर अपने काबू रखना ,
उनको भी मुश्किल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
उनके दिल का मस्त कबूतर
उड़ता रहता नीचे , ऊपर 
लेता इधर उधर की खुशबू
करता रहता सदा गुटरगूं
 घरकी चिड़िया  रहती घर में
खुद उड़ते रहते अम्बर मे
चाहे रहती, ढीली  सेहत
पर रहती अनुभव की दौलत
काम बुढ़ापे में जो आती
उनकी दाल सदा  गल जाती 
दंद फंद कर के कैसे भी ,
बस पाना मंज़िल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
जब तक रहती दिल की धड़कन
तब तक रहता दीवानापन
भले बरस वो ना पाते है
लेकिन बादल तो छाते है
हुई नज़र धुंधली हो चाहे
माशूक ठीक नज़र ना आये
होता प्यार मगर अँधा है
चलता सब गोरखधंधा है
भले नहीं करते वो जाहिर
अपने फ़न में होते माहिर
कैसे किसको जाए पटाया,
ये अनुभव हासिल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, June 26, 2014

         सुख-दुःख

जवानी में होता है,सजने सँवरने का सुख
शादी करके ,अपने प्रियतम से मिलने का सुख
थोड़े दिनों बाद फिर,माँ बाप बनने का सुख
और फिर धीरे धीरे ,बच्चों के बढ़ने का सुख
बड़ी ख़ुशी चाव से ,फिर बहू लाने का सुख
और कुछ दिनों,दादा दादी,कहलाने का सुख    
इतने सुख पाते पाते,बुढ़ापा है आ जाता
जो बड़ा सताता है और कहर है ढाता
थोड़े दिनों बाद जब ,अपने देतें है भुला
शुरू हो जाता है,दुखों का फिर सिलसिला
कभी बिमारी का दुःख,कभी तिरस्कार का दुःख
बहुत अधिक चुभता है,अपनों की मार का दुःख
जीवन में सुख दुःख की,मिलावट है होती
कभी चांदनी होती,कभी अमावस है  होती

घोटू
         क्या हाल है?

दांत, डेंटिस्ट के भरोसे
सांस,दवाइयों के भरोसे
नज़र,चश्मे के भरोसे
वक़्त,टी. वी. के भरोसे
किससे क्या करें आस,
किसी को क्यों कोसे?
अब तो हम दोनों है,
एक दूसरे के भरोसे 
बाकी ये जीवन है ,
सिर्फ भगवान के भरोसे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, June 25, 2014

     उमर के साथ साथ

कभी जब उनके कन्धों की,दुपट्टा शान होता था ,
      वो चलते थे तो लहराता ,हमें वो लगती  थी तितली
खुले बादल से जब गेसू,हवा में,उनके,उड़ते थे ,
       अदा से जब वो मुस्काते  ,चमकते दांत बन बिजली
जवानी में ये आलम था ,ठुमक कर जब वो चलते थे,
        थिरकता जिस्म मतवाला  , बना  देता  था  दीवाना
उमर ने करदी ये हालत, रही ना जुल्फ काली अब ,
         पाँव में आर्थराइटिस है,बड़ा मुश्किल है  चल  पाना
मगर एक बात है अब भी,कशिश जो पहले उन में थी,
          अभी तक वो ही कायम है,लुभाती हमको उतना ही
हमारी उनकी चाहत में,न आया कोई  भी अंतर ,
            गयी बढ़ती उमर जैसे ,बढ़ा है प्यार उतना ही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, June 22, 2014

           झुर्रियों के सल

जब तुम पैदा हुए ,
मेरे पेट पर सल पड़े
तुम्हारी पत्नी आयी,
मेरे माथे पर सल पड़े
उमर के साथ साथ
बदलते गए हालात
पर सलों का सिलसिला,थम नहीं पाया
समय ने मसल दिया
दिल के अरमानों को ,
और अब तो पूरा ही,बदन है झुर्राया

घोटू    

Monday, June 16, 2014

             आम की गुठली

मैं  बूढ़ा हूँ
चूसी हुई मैं कोई आम की,गुठली सा,कचरा कूड़ा हूँ
मैं बूढा हूँ
ये सच है मैं बीज आम का,उगा आम का वृक्ष मुझी से 
विकसित होकर फूला,फैला  और हुआ फलदार मुझी से
कच्चे फल तोड़े लोगों ने, काटा और   आचार बनाया
चटनी कभी मुरब्बा बन कर ,मैं सबके ही मन को भाया
और पका जब हुआ सुनहरी ,मीठा और रसीला,प्यारा
सबने तारीफ़ करी प्यार से ,चूंस लिया मेरा रस सारा
देख उन्हें खुश,सुखी हुआ मैं ,मुर्ख न समझा नादानी में
हो रसहीन ,दिया जाऊंगा,फेंक किसी कचरे दानी  में
आज तिरस्कृत पड़ा हुआ मैं ,सचमुच  बेवकूफ पूरा हूँ
मैं बूढ़ा हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, June 5, 2014

       पिताजी याद आतें है

हमारी जिंदगी में जब भी दुःख,अवसाद आते है
परेशाँ मुश्किलें करती ,पिताजी याद आते है
सिखाया जिनने चलना था,हमें पकड़ा के निज उंगली
कराया ज्ञान अक्षर का  ,पढ़ाया  लिखना अ ,आ, ई
भला क्या है,बुरा क्या है ,गलत क्या है ,सही क्या है
दिया ये ज्ञान उनने  था,बताया   कैसी दुनिया  है
कहा था ,हाथ मारोगे,  तभी तुम तैर पाओगे
हटा कर राह  के रोड़े ,राह  अपनी  बनाओगे
नज़र उनपे ही जाती थी, जब आती थी कोई मुश्किल
उन्ही के पथप्रदर्शन से ,हमें हासिल हुई मंज़िल
जरुरत जब भी पड़ती थी,सहारा उनका मिलता था
नसीहत उनकी ही पाकर,किनारा हमको मिलता था
ढंग रहने का सादा था ,उच्चता थी विचारों में
भव्य व्यक्तित्व उनका था ,नज़र आता हजारों में
अभी भी गूंजती है खलखिलाहट और हंसी उनकी
वो ही चेहरा चमकता सा और वो सादगी उनकी
भले ही सख्त दिखते थे  हमें करने को अनुशासित
मगर हर बात में उनकी ,छुपा रहता , हमारा हित
उन्ही की ज्ञान और शिक्षा ,हमारी सच्ची दौलत है
आज हम जो भी कुछ है सब,पिताजी की बदौलत है
आज भी मुश्किलों के घने बादल ,जब भी छाते है
उन्ही की शिक्षा से हम खुद को बारिश से बचाते है
उन्ही के बीज है हम ,आज जो ,विकसे,फले,फूले
हमें धिक्कार है ,उपकार उनका ,जो कभी  भूले
वो अब भी आशीर्वादों की ,सदा सौगात लातें है
भटकते जब भी हम पथ से, पिताजी याद आते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

Saturday, May 24, 2014

        जिंदगी  कैसे कटी

कटा बचपन चुम्मियाँ पा ,भरते थे किलकारियां,
                      गोदियों में खिलोने की तरह हम सटते रहे
हसीनो के साथ हंस कर,उम्र  सारी काट दी,
                        कभी कोई को  पटाया ,कभी खुद पटते  रहे
आई जिम्मेदारियां तो निभाने के वास्ते ,
                         कमाई के फेर में ,दिन रात हम  खटते  रहे 
कभी बीबी,कभी बच्चे ,कभी भाई या बहन ,
                       हम सभी में,उनकी जरुरत ,मुताबिक़  बंटते रहे 
शुक्ल पक्षी चाँद जैसे ,कभी हम बढ़ते रहे ,
                         कृष्णपक्षी  चाँद जैसे ,कभी हम घटते   रहे
मगर जब आया बुढ़ापा,काट ना इसकी मिली ,
                         और बुढ़ापा काटने को ,खुद ही हम कटते रहे     

घोटू
          बुढ़ापा ना कटे

जवानी थी,मारा करते फाख्ता थे तब मियाँ
मजे से दिन रात काटे ,खूब काटी मस्तियाँ
मगर अब आया बुढ़ापा,काटे से कटता  नहीं,
ना इधर के ,ना उधर के,हम फंसे है दरमियाँ

घोटू

Thursday, May 8, 2014

          अंकल की पीड़ा

कल तक हम नदिया जैसे थे,बहते कल कल
कलियों संग करते किलोल थे मस्त कलन्दर
कन्यायें   हमसे मिलने , रहती थी  बेकल
काल हुआ प्रतिकूल ,जवानी गयी ज़रा ढल
बहुत कलपता ,कुलबुल करता ,ह्रदय आजकल
कामनियां ,जब हमें बुलाती ,कह कर 'अंकल '

घोटू

Thursday, May 1, 2014

        हाल-बुढ़ापे का

याद  है  वो  जवानी  के  वक़्त  थे
हम बड़े ही कड़क थे और सख्त थे
ताजगी थी  , भरा हममें  जोश था
बुलंदी पर थे , हमें कब  होश   था
रौब था और बड़ी तीखी धार थी
थी नहीं परवाह कुछ संसार की
जवां था तन,जेब में भी माल था
इस तरह से  बन्दा ये खुशहाल था
हुए बूढ़े अब हम ढीले पड़  गए
वृक्ष के सब पात पीले पड़  गए
ना रहा वो जोश ,ना सख्ती रही
अब तो केवल भजन और भक्ति रही
मारा  करते फाख्ता थे जब मियां   
गए वो दिन, बुढ़ापे  के  दरमियाँ
हो गया   ऐसा हमारा हाल  है
मन मचलता ,मगर तन कंगाल है

मदन मोहन बहती'घोटू'

Sunday, April 20, 2014

            एडजस्ट हो जाते है
 
 रेलवे स्टेशन पर,जब ट्रेन आती है
डब्बे में मुसाफिर की ,भीड़ घुस आती है
भीतर बैठे लोग ,'जगह  नहीं' चिल्लातें है
ट्रेन  जब चलती  है,सब  ऐडजस्ट हो जाते है
जोश भरा नया मुलाजिम ,जब नौकरी पाता है
बड़ी तेजी ,फुर्ती से ,काम सब  निपटाता  है
ऑफिस का ढर्रा जब ,समझ वो जाता है
अपने सहकर्मी संग ,एडजस्ट हो जाता है
छोड़ कर माँ बाप ,पिया घर जाती है
नए लोग ,सास ससुर ,थोड़ा घबराती है
प्यार और सपोर्ट जब,निज पति का पाती है
धीरे  धीरे  हर लड़की ,एडजस्ट हो  जाती  है
बड़े बड़े सिद्धांतवादी ,अफ़सरों के  घर पर
 पहुँचते है ब्रीफकेस ,नोटों से भर भर कर
मिठाई के डब्बे और गिफ्ट  रोज आते है
ईमानदार अफसर भी एडजस्ट हो जाते है
जवानी में खूब मौज ,मस्तियाँ मनाते है
उमर के साथ साथ ,ढीले पड़  जाते है
मन मसोस रह जाते ,कुछ ना कर पाते है
बुढ़ापे के साथ  सब ही,एडजस्ट  हो जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, April 19, 2014

     बुढापा -खटारा कार

इस तरह है जिंदगी ,अपनी खटारा हो गयी ,
                             कार भी है पुरानी और बैटरी में नहीं दम
पूरी बॉडी खड़खड़ाती ,चलती जब स्पीड से,
                              थोड़ी भी चढ़ती चढ़ाई,होता है इंजिन गरम
गीयर ढीले,घिसा इंजिन ,स्टीयरिंग भी लूज है,
                               ट्यूब  पंक्चर से भरी  है,घिस गए टायर  सभी
जब तलक है चल रही ,चलती रहे ,किसको पता ,
                             किस जगह ,किस मोड़ पर,रुक जाए ये गाडी कभी

घोटू

Friday, March 28, 2014

         तीन  चतुष्पदियाँ
                   १
                 बीमा
अपने संतानों के खातिर ,सोचते  है कितना  हम
मर के भी उनके लिए , कुछ न कुछ कर जाएँ हम 
काट कर  के पेट अपना ,भरते बीमा  प्रीमियम
मिलेगा बच्चों को पैसा ,जब हमें ले जाए   यम
                              २
                      फल
जिंदगी अपनी लुटाते है  हम जिनकी चाह मे
जीते जी, पर  बुढ़ापे में , पूछते  ना   वो   हमें
सोचते ये देख मुझको,आम्र के तरु  ने कहा ,
बोया तुम्हारे पिता ने , दे रहा हूँ , फल तुम्हे
                              ३
                      दान पुण्य
बोला पंडित ,दान करले ,काम ये ही आयेगा
मरने पर इस पुण्य से ही,मोक्ष को तू पायेगा
मैंने  सोचा जन्म अगला,मेरा सुधरे या नहीं ,
दान पाकर,जन्म पंडित का सुधर ,पर ,जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
            अब हाशिये पे हम

अब क्या सुनाएँ आपको ,अपनी कहानी हम
आँखें न कहीं आपकी ,हो जाए सुन के नम
बचपने में बड़े भोले और  मासूम से थे हम
आयी जवानी ,शोखियों का ,था गजब आलम
आया है मगर जब से ,बुढ़ापे का ये मौसम
ना तो इधर के ही रहे और ना उधर के हम
लड़ते ही रहे जमाने से जब तलक था दम
देखें है हमने हर तरह के बदलते  मौसम
कुछ इस कदर से ,बुढ़ापे ने ढायें है सितम  
सचमुच परेशां ,अपनोकी ही बेरुखी से हम
और लिखते लिखते जिंदगी की दास्ताने गम
पन्ना है पूरा भर गया अब  हाशिये पे हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Wednesday, March 5, 2014

         नेताओं का बुढ़ापा

स्वर्गलोक के देव, अप्सरायें न कभी बूढ़ी होती 
किन्तु बुढ़ापे  में मानव की,हालत बड़ी बुरी होती
हम लोग  रिटायर जब होते ,तो हो जाता है बुरा हाल
और नेता जब बूढ़े होते तो बन जाते है   राज्य पाल
क्या नेता होते देव तुल्य ,चिरयुवा ,जवां हरदम रहते
जो उनको चुन कर देव बनाते जीवन भर सब दुःख सहते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, February 27, 2014

        मन नहीं लगता

मैके में बीबी हो
और बंद टी वी हो ,
          घर भर में चुप्पी हो,
               मन नहीं लगता
सजी हुई थाली हो
पेट पर न खाली हो
           तो कुछ भी खाने में
                मन नहीं लगता
नयन मिले कोई  संग
चढ़ता जब प्यार रंग,
               तो कुछ भी करने में,
                     मन नहीं लगता
मन चाहे ,नींद आये
सपनो में वो आये
                नींद मगर उड़ जाती ,
                       मन नहीं  लगता
जवानी की सब बातें
बन जाती है यादें
             क्या करें बुढ़ापे में,
                मन नहीं लगता    
साथ नहीं देता तन
भटकता ही रहता मन
               अब तो इस जीवन में
                     मन नहीं लगता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, February 26, 2014

        भरोसा कोई न कल का

बहुत कर्म कर लिए ,निकम्मा आज हो गया ,
                          करना चाहे  लाख ,मगर ना कुछ कर पाता
धीरे धीरे शिथिल हो रहा तेरा तन है ,
                           अपने मन में हीन भावना ,क्यों है लाता
सच ये तेरा क्षरण हो रहा साथ समय के ,
                            हर पग तेरा ,बढ़ता जाता ,मरण राह पर
जीर्ण क्षीर्ण हो रही तुम्हारी कंचन काया ,
                            लेकिन तेरा ,नहीं नियंत्रण ,कोई चाह पर
बहुत जवानी में तू खेला,उछला कूदा ,
                             बहुत प्रखर था सूर्य ,लग गया पर अब ढलने
पतझड़ का मौसम आया ,तरु के सब पत्ते,
                              धीरे  धीरे सूख  सूख  कर लगे  बिछड़ने
यह प्रकृति का नियम ,नहीं कुछ तेरे बस में,
                               जो भी आया है दुनिया में ,वो  जाएगा
बस तेरे सत्कर्म ,काम आयेंगे तेरे ,
                                 जिनके कारण तुझको याद किया जाएगा
लाख छोड़ना चाहे तू ,पर छूट न पाती ,
                                  अब भी मोह और माया ,मन में बसी हुई है
और  कामना के कीचड में तेरी किश्ती,
                                  निकल न पाती,बुरी तरह से फसी हुई है
क्यों तू इतना दुखी हो रहा,खुश हो जी ले,
                                   जितने भी दिन बचे ,उठा तू सुख हर पल का
कल कल करती जीवन सरिता ,कब सागर में ,
                                   मिल,विलीन हो जाए ,भरोसा कोई न कल का

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  
   

Sunday, February 23, 2014

      कितने पापड़ बेले है

काँटों में भी उलझे  है  हम, फूलों संग   भी  खेले  है
खुशियों का भी स्वाद चखा है दुःख भी हमनेझेले है 
हंसना ,रोना ,खाना पीना ,जीवन की दिनचर्या है ,
रोज रोज जीने के खातिर ,कितने किये झमेले है
हममें जो  खुशबू है गुलाब की ,थोड़ी बहुत आरही है ,
,हम पर कभी गुलाब गिरा था,हम मिटटी के ढेले है
जब विकसे और महक रहे थे,तितली ,भँवरे आते थे ,
अब मुरझाने लगे इसलिए ,तनहा और अकेले है
आज हम यहाँ,इस मुकाम पर ,पंहुचे ठोकर खा खाके ,
अब तुमको हम क्या बतलायें ,कितने पापड बेलें है
इश्क़ ,प्यार को लेकर अपना ,थिंकिंग बड़ा प्रेक्टिकल है,
ना फरहाद की लाइन चलते ,ना मजनू के चेले  है
सूखा तना समझ कर हमको ,यूं ही मत ठुकरा देना,
कोई बेल लिपट कर देखे,हम कितने अलबेले  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 
 

Saturday, February 22, 2014

        दास्ताने जिंदगी

सबसे मीठी बातें की और उम्र भर बांटी मिठास ,
  फिर भी देखो बुढ़ापे में ,बढ़ गयी खूं  में  शकर
दुश्मनो  से ता उमर हम ,लोहा ही लेते  रहे ,
   फिर भी तो कम हो रहा है,आयरन खूं  मगर
काम का,चिंताओं का ,परिवार का,संसार का,
   पड़ता ही प्रेशर रहा है हम पे सारी उम्र भर
सौ तरह के प्रेशरों से ,दबे हम हरदम रहे,
  बढ़ा फिर भी ब्लड का प्रेशर,बताते है डाक्टर
कारनामे, कितने काले,किये या करने पड़े,
  फिर भी सर पर,क्यों सफेदी ,लगी है आने नज़र
जिंदगी हमने खपा दी ,जिनके सुख के वास्ते ,
 वो ही हमसे खफा क्यों ,रहने लगे है आजकल
 दिल लगाया,दिल मिलाया ,दिल लुटाया ,दिल जला,
  खुश हुए तो गम भी झेला ,दिल ही दिल में उम्र भर
बड़े ही दिलेर थे ,दिलवर भी थे दिलदार भी ,
हो गया कमजोर अब दिल ,रहना पड़ता संभल कर
चाल में थोड़ी अकड़ थी ,तन के चलते थे सदा ,
खूब चाले चली हमने,उल्टी,  सीधी ,ढाई  घर
चलने का अब वक़्त आया है तो चल पाते नहीं,
हमारी कुछ चल न पायी ,उम्र की इस चाल पर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
      ग़मे जिंदगी
'घोटू' अपनी जिंदगी का क्या बताएं फ़लसफ़ा
टूटता ही दिल रहा है, हमेशा और हर दफा
चाहते थे जुल्फ में उनकी उगें,लहराये हम,
बाल दाढ़ी की तरह हम,आज निकले,कल सफा
उम्र भर मुस्कान को उनकी तरसते रह गए ,
मगर जब भी वो मिले ,नाराज़ से होकर ख़फ़ा
वो हमेशा , खुश रहे,हँसते रहे,आबाद हो,
बस यही अरमान ले ,की जिंदगी हमने  खपा
प्यार की हर रस्म तो ,हमने निभाई,प्यार से,
ता उमर  हम बावफ़ा थे,वो ही निकले बेवफ़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Sunday, February 9, 2014

        बुढ़ापा-अहसास उम्र का

अबकी कड़कड़ाती ,ठिठुरन  भरी सर्दी के बाद ,
मुझे हुआ अहसास
कि बुढ़ापा आ गया है पास
सर्दी में केप और मफलर में ,
रहते थे ढके
सर के सब बाल सफ़ेद होकर थे  पके
और जब  सर्दी गयी और टोपी हटी ,
तो मन में आया खेद
क्योंकि मेरे सर के बाल ,
सारे के सारे हो गये थे  थे सफ़ेद
 और सर की सफेदी ,याने बुढ़ापे का अहसास
मुझे कर गया निराश
और मैंने झटपट अपने बालों पर लगा कर खिजाब
कर लिया काला
सच इस  कालिख का भी ,अंदाज है निराला
आँखों  में जब काजल बन लग जाती है
आँखों को सजाती है  
कलम से जब कागज़ पर उतरती है
तो शब्दों में बंध  कर,महाकाव्य रचती है
श्वेत बालों पर  जब लगाई जाती है
जवानी का अहसास कराती है
बच्चो के चेहरे पर काला टीका लगाते है
 और बुरी नज़र से बचाते है
मगर ये ही कालिख ,जब मुंह पर पुत  जाती है
बदनाम कर जाती है
तो हमारे सफ़ेद बालों पर जब लगा खिजाब
उनमे आ गयी  नयी जान  ,
 और हम  अपने आपको समझने लगे जवान
पर हम सचमुच में है कितने  नादान 
क्योंकि ,बुढ़ापा या जवानी ,
इसमें कोई अंतर नहीं खास है
ये तो सिर्फ ,मन का एक अहसास है
अगर सोच जवान है ,तो आप जवान है
और सर पर के काले बाल
ला देतें है आपको जवान होने का ख्याल
तो अपने सोच में जवानी का रंग आने दो
और जीवन में उमंग आने दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, January 6, 2014

   उम्र है मेरी बहत्तर

उम्र है मेरी बहत्तर
है बड़े हालत बेहतर
उंगलिया पाँचों है घी में,
और कढ़ाई में मेरा सर
        न तो चिंता काम की है
        ना कमाई ,दाम की है
        मौज है ,बेफ़िक्रियां  है,
           उम्र ये आराम की है 
कोई भी बोझ न सर पर
उम्र है मेरी बहत्तर
         बच्चे अपने घर बसे है 
         अब हैम दो प्राणी बचे है
        मैं हूँ और बुढ़िया है मेरी ,
         मस्तियाँ है और मज़े है
देखते है टी वी दिन भर
उम्र मेरी है बहत्तर
            अच्छी खासी पेंशन है
             नहीं कोई  टेंशन है
             हममें  बस दीवानापन है,     
             करते जो भी कहता मन है
खाते बाहर ,देखें पिक्चर
उम्र मेरी है बहत्तर
              जब तलक चलता है इंजिन
               सीटियां बजती है हर दिन 
               खूब जी भर ,करे मस्ती ,
               गाडी ये रुक जाये किस दिन
क्या पता ,कब और कहाँ पर
उम्र मेरी है बहत्तर

Saturday, January 4, 2014

     वरिष्ठ -गरिष्ठ

वरिष्ठ हो गए है,गरिष्ठ हो गए है ,पचाने में हमको ,अब होती है मुश्किल
मियां, बीबी,बच्चा ,है परिवार अच्छा ,कोई अन्य घर में ,तो होती है मुश्किल 
सभी काम करते ,मगर डरते डरते ,रहो बैठे खाली ,तो होती है मुश्किल
जिन्हे पोसा पाला ,लिया  कर किनारा ,देने में निवाला ,अब होती है मुश्किल
चलाये जो टी वी ,कहे उनकी बीबी ,कि बिजली के खर्चे बहुत बढ़ गए है
कहीं आयें ,जाये ,तो वो मुंह फुलाये ,उनके दिमाग,आसमा चढ़ गए है
करो कुछ तो मुश्किल,करो ना तो मुश्किल,बुढ़ापे में कैसी ये दुर्गत हुई है
भले ही बड़े  है ,तिरस्कृत पड़े है ,न पूछो हमारी क्या हालत हुई है
हमारी ही संताने ,सुनाती हमें  ताने,भला खून के घूँट,पीयें तो कबतक
वो हमसे दुखी है ,हम उनसे दुखी है,भला जिंदगी ऐसी ,जीयें तो कब तक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'