Sunday, February 24, 2013

      संतान और उम्मीद

अपनी संतानों से ज्यादा ,मत रखो उम्मीद तुम,
           परिंदे हैं,उड़ना सीखेंगे ,कहीं उड़ जायेंगे
घोंसले में बैठ कर ना रह सकेंगे उम्र भर,
          पेट भरने के लिए ,दाना तो चुगने जायेंगे
बेटियां तो धन पराया है,उन्हें हम एक दिन,
          किसी के संग ब्याह देंगे ,वो बिदा हो जायेंगी
ब्याह बेटे का रचाते ,बहू लाते चाव से,
           आस ये मन में लगाए,घर में रौनक आएगी
और पत्नी संग अगर वो,मौज करले चार दिन,
         लगने लगता है तुम्हे,बेटा  पराया हो गया
बात पत्नी की सुने और उस पे ज्यादा ध्यान दे ,
        जोरू का गुलाम वो माता का जाया हो गया
अगर बेटा कहीं जाता,नौकरी या काम से ,
        सोचने लगते हो बीबी ने अलग तुमसे किया
दूर तुमसे हो गया है ,तुम्हारा लख्ते -जिगर,
         फंसा अपने जाल में है,बहू ने उसको लिया
उसके भी कुछ शौक है और उसके कुछ अरमान है,
         जिंदगी शादीशुदा के ,भोगना है सुख सभी
उसके बीबी बच्चे है और पालना परिवार है ,
          बोझ जिम्मेदारियों का ,पड़ने  दो,उस पर अभी 
अरे उसको भी तो अपनी गृहस्थी है निभाना ,
           उसको अपने ढंग से ,जीने दो अपनी जिंदगी
खान में रहता जो पत्थर ,कट के,सज के ,संवर के ,
           हीरा बन सकता है वो ,नायाब भी और कीमती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

Friday, February 1, 2013

                   मित्र पुराने याद आ गये

जब यादों ने करवट बदली,मित्र पुराने याद आ गये
आँखों आगे ,कितने चेहरे ,कितने वर्षों बाद आ गये
बचपन में जिन संग मस्ती की ,खेले,कूदे ,करी पढाई 
खो खो और कबड्डी खेली ,गिल्ली डंडे,पतंग उड़ाई
पेड़ों पर चढ़,इमली तोड़ी,जामुन खाये ,की शैतानी
उन भूले बिसरे मित्रों की,आई  यादें ,कई,पुरानी
धीरे धीरे बड़े हुए तो  ,निकला कोई नौकरी करने
कोई लगा काम धंधे से,गया कोई फिर आगे पढने
सबके अपने अपने कारण थे ,अपनी अपनी मजबूरी
बिछड़ गये  सब बारी बारी,और हो गयी सब में दूरी
सब खोये अपनी दुनिया में,अपने सुख दुःख में,उलझन में
जब लंगोटिया साथी छूटे ,नये दोस्त आये जीवन में
कुछ सहकर्मी ,चंद पड़ोसी,दिल के बड़े करीब छा गये
जब यादों ने करवट बदली ,मित्र पुराने याद आ गये  
कुछ पड़ोस के रहनेवालों के संग इतना बढ़ा घरोपा
एक दूसरे के सुखदुख में ,जिनने साथ दिया अपनों सा
बार बार जब हुआ ट्रांसफर,बार बार  घर हमने बदले
बार बार नूतन सहकर्मी,और पडोसी ,कितने बदले
और रिटायर होने पर जब,कहीं बसे ,तो अनजाने थे
नए पडोसी,नए दोस्त फिर,धीरे धीरे बन जाने थे
क्योंकि उम्र  के इस पड़ाव में,मित्रो की ज्यादा है जरुरत
जो सुख दुःख में ,साथ दे सके ,कह कर आती नहीं मुसीबत
खोल 'फेस बुक ',कंप्यूटर में,वक़्त बिताते हैं कुछ ऐसे
ढूँढा करते दोस्त पुराने,क्या करते है और है कैसे
दूर बसे सब सगे ,सम्बन्धी,अनजाने अब पास आ गये
जब यादों ने करवट बदली,मित्र पुराने,याद आ गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'