Wednesday, November 23, 2011

मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
------------------------------------------------
दर्द का क्या भरोसा,आ जाय जब तब
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
है बड़ी अनबूझ  ये जीवन पहेली
है कभी दुश्मन कभी सच्ची सहेली
बांटती खुशियाँ,कभी सबको हंसाती
कभी पीड़ा,दर्द के  आंसू रुलाती
क्या पता कब मौत आ दे जाय दस्तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
आसमां में जब घुमड़ कर मेघ छाते
नीर बरसा प्यास धरती की बुझाते
तो गिराते बिजलियाँ भी है कहीं पर
धूप,छाँव,सर्द ,गर्मी,सब यहीं पर
कौन जाने,कौन मौसम ,रहे कब तक
मनाते खुशियाँ रहो ,तुम जियो जब तक
कभी शीतल पवन जो मन को लुभाती
वही लू के थपेड़े बन है तपाती
धूप सर्दी में सुहाती बहुत मन को
वही गर्मी में जला देती बदन को
कौन का व्यहवार ,जाए बदल कब तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Friday, November 18, 2011

माँ के सपनो में बसा-गाँव का पुराना घर

माँ के सपनो में बसा-गाँव का  पुराना घर
------------------------------------------------
मिनिट मिनिट में सारी बातें,माँ अब भूल भूल जाती है
लेकिन उसे पुराने घर की, यादें बार बार आती है
दूर गाँव में कच्चा घर था
फिर भी कितना अच्छा घर था
लीप पोत कर उसे सजाती
माटी की खुशबू थी आती
और कबेलू  वाली छत थी
बारिश में जो कभी टपकती
सच्चा  प्यार वहां पलता था
मिटटी का चूल्हा जलता था
लकड़ी और कंडे जलते थे
राखी से बर्तन मंजते थे
दल भरतिये में थी गलती
अंगारों पर रोटी सिकती
खाने को बिछता था पाटा
घट्टी से पिसता था आटा
शाम ढले फिर दिया बत्ती
चिमनी,लालटेन थी जलती
 सभी काम खुद ही करते थे
कुंए से पानी भरते थे
पीट धोवना,कपडे धुलते
बच्चे सब जाते स्कूल थे
बाबूजी    ऑफिस  जाते  थे
संझा को सब्जी लाते थे
कभी पपीता कभी सिंघाड़े
खाते थे मिल कर के सारे
ना था टी वी,ना ट्रांजिस्टर
बातें करते साथ बैठ कर
बच्चे सुना पहाड़े  रटते
होम वर्क बस ये ही करते
सुन्दर और सादगी वाला
वो जीवन था बड़ा निराला
चलता रहा समय का चक्कर
और हुआ पक्का,कच्चा घर
बिजली आई,नल भी आये
ट्रांजिस्टर,टी.वी. भी लाये
वक़्त लगा फिर आगे बढ़ने
बेटे गए नौकरी करने
और बेटियां गयी सासरे
नहीं कोई भी रहा पास रे
बस माँ थी और बाबूजी थे
संग थे दोनों,बड़े सुखी थे
लेकिन लगा वक़्त का झटका
छोड़ साथ,माँ का,हम सब का
बाबूजी थे स्वर्ग  सिधारे
और हो गया घर सूना रे
जहाँ कभी थी रेला पेली
बूढी  माँ,रह गयी अकेली
बेटे उसे साथ ले आये
पर उस घर की याद सताए
पूरा जीवन जहाँ गुजारा
ईंट ईंट चुन जिसे संवारा
बाबूजी संग ,हँसते गाते
जिसमे बसी हुई है यादे
सूना पड़ा हुआ है वो घर
पर माँ का मन अटका उस पर
और  अब माँ बीमार पड़ी है
लेकिन जिद पर रहे अड़ी है
एक बार जा,वो घर देखूं,आंसू बार बार लाती है
वो यादें,वो बीत गए दिन,बिलकुल भूल नहीं पाती है
मिनिट मिनिट में सारी बातें,माँ अब भूल भूल जाती है
लेकिन उसे पुराने घर की,यादें बार बार आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 11, 2011

वृद्ध का सन्मान कर दो

बहुत पूजित वृद्ध जन है
प्यार का ऊंचा गगन है
सफलता की सीढियां है,
संस्कृति का ये चमन है
हमारे बूढ़े ,बड़े  है
मुश्किलों से ये लड़े है
डगमगाए जब कभी हम,
थामने हरदम खड़े  है
आज ये पीढ़ी पुरानी
सफलताओं की कहानी
आज हम जो है,जहाँ है,
ये इन्ही की मेहरबानी
उम्र मत तुम  प्यार देखो
भावना,उपकार देखो
करो सेवा,पाओगे तुम,,
आशीषें  हर बार देखो
जिन्होंने सारी उमर भर
लुटाया,निज नेह तुम पर
मांगते ,प्रतिकार में है,
प्यार और सन्मान केवल
उमर का यशगान  करदो
वृद्ध  का सन्मान कर दो
प्यार की ले पुष्पमाला,
अनुभवों का मान कर दो
हो ख़ुशी मुस्कायेंगे वो
भाव से भर जायेंगे वो
मुदित हो विव्हल ह्रदय से,
अश्रुजल छलकायेंगे वो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, November 9, 2011

रिटायर हो हम गए है

रिटायर हो हम गए है
-------------------------
रिटायर हो हम गए है
बदल सब मौसम गए है
थे कभी सूरज प्रखर हम
हो गए है आज मध्यम
आई जीवन में जटिलता
मुश्किलों से वक़्त कटता
थे कभी हम बड़े अफसर
सुना करते सिर्फ 'यस सर'
गाड़ियाँ थी,ड्रायवर थे
नौकरों से भरे घर थे
रहे चमचों से घिरे हम
रौब का था गजब आलम
जरा से करते इशारे
काम होते पूर्ण सारे
सदा रहते व्यस्त थे हम
काम के अभ्यस्त थे हम
आज कल बैठे निठल्ले
रह गए एक दम इकल्ले
हो गए है बड़े बेबस
नौकरों के नाम पर बस
पार्ट टाइम कामवाली
है बुरी हालत हमारी
काम करते हाथ से है
क्षुब्ध अपने आप से है
रौब अब चलता नहीं है
कोई भी सुनता नहीं है
आदतें बिगड़ी हुई है
कोई भी चारा नहीं है
बस जरासी पेंशन है
और हजारों टेंशन है
हो बड़े बेदम गए है
रिटायर हो हम गए है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपेक्षायें

अपेक्षायें
-----------
अपेक्षायें मत करो तुम,तोडती दिल अपेक्षायें
पूर्ण यदि जो ना हुई तो,तुम्हारे  दिल को दुखायें
किया यदि कुछ,किसी के हित,करो और करके भुलादो
मिलेगा प्रतिकार में कुछ,आस   ये दिल से मिटा दो
तुम्हारा कर्तव्य था यह,जिसे है तुमने निभाया
क़र्ज़ था पिछले जनम का,इस जनम में जो चुकाया
या कि फिर यह सोच करके,रखो यह संतोष मन में
इस जनम के कर्म का फल,मिलेगा अगले जनम में
या किसी के लिए कुछ कर,पुण्य है तुमने कमाये
अपेक्षायें मत करो तुम,तोडती दिल अपेक्षायें
बीज जो तुम बो रहे हो ,वृक्ष बन कर बढ़ेंगे कल
नहीं आवश्यक तुम्हारे,हर तरु में लगेंगे फल
और यदि फल लगे भी तो,मधुर होगे,तय नहीं है
तुम्हे खाने को मिलेंगे,बात ये निश्चय नहीं है
इसलिए तुम बीज बोओ,आएगी ऋतू,तब खिलेंगे
आस तुम मत करो फल की,भाग्य में होंगे,मिलेंगे
नहीं आवश्यक सजग हो,सब सपन ,तुमने सजाये
अपेक्षायें मत करो तुम, तोडती दिल अपेक्षायें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, November 8, 2011

हमें भी लगता बुरा है

हमें भी लगता बुरा है
------------------------
हमारी हर बात पर ही,
तुम्हे लग जाता बुरा है
मौन है हम,मगर समझो,
हमें भी लगता बुरा है
बहुत है दिल को दुखाती,
तुम्हारी रुसवाईयां  है
ह्रदय में नश्तर चुभोती,
आजकल तनहाइयाँ है
और अपने में मगन तुम,
उड़ रहे ऊंचे गगन में
अरे,हम कुछ है तुम्हारे,
ख्याल आया कभी मन में
अभी भी मन में हमारे,
प्यार का सागर उमड़ता
और तुम भूले पिघलना ,
इस कदर आ गयी जड़ता
तुम्हे करके  के याद अक्सर ,
उभरते है प्यार के स्वर
मगर हर वाणी हमारी,
लौट आती,प्रतिध्वनि कर
तुम वही हो,हम वही है,
बीच में क्यों दूरियां है
बताओ ना क्या हुआ है,
कौनसी मजबूरियां है
बहुत मिलते हम पियाले,
बहुत मिलते हम निवाले
ना मिलेंगे मगर हम से,
चाहने वाले, निराले
कभी हम संग संग चले थे,
साथ हँसते और गाते
डूब यादों के भंवर में,
डुबकियाँ है हम लगाते
साथ हम थे तो ख़ुशी थी,
जिंदगी थी मुस्कराती
बिना सहलाये हमारे,
नींद भी थी नहीं आती
हमारा स्पर्श तुमको,
लगा लगने खुरदुरा है
मौन है हम,मगर समझो,
हमें भी लगता बुरा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, November 7, 2011

मुझे तडफाया सभी ने

मुझे तडफाया सभी ने
--------------------------
उम्र की इस बेबसी में
मुझे तडफाया सभी ने
और मुझ पर बीतती क्या,
ये नहीं सोचा किसी ने
तान कर ताने दिए और,
दिल दुखाया दिल्लगी में
कभी थे दावत उड़ाते,
आज है फांकाकशी में
उम्र ऐसे ही गयी कट,
कभी दुःख में या ख़ुशी में
मुझे दीवाना समझ कर,
यूं ही ठुकराया सभी ने
नहीं देखा पीर कितनी,
छुपी है मेरी हंसी में
नेह बांटो,खोल कर दिल,
रंजिशे क्यों आपसी में
आओ फिर से दिल मिलाएं,
क्या रखा तानाकशी में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 4, 2011

ऊनी कपड़ों वाला बक्सा

ऊनी कपड़ों  वाला बक्सा
-----------------------------
सर्दी का मौसम आया तो मैंने खोला,
बक्सा ऊनी  कपड़ों वाला
जो पिछले कितने महीनों से,
घर के एक सूने कोने में,
लावारिस सा पड़ा हुआ था,
हम लोग भी कितने प्रेक्टिकल होते है
जरुरत पड़ने पर ही किसी को याद करते है,
वर्ना,उपेक्षित सा छोड़ देते है
बक्से को खोलते ही,
फिनाईल  की खुशबू के साथ,
यादों का एक भभका आया
मैंने देखा ,फिनाईल की गोलिया,
जब मैंने रखी थी ,पूरी जवान थी,
पर मेरे कपड़ों को सहेजते ,सहेजते,
बुजुर्गों की तरह ,कितनी क्षीण हो गयी है
सबसे पहले मेरी नज़र पड़ी,
अपने उस पुराने सूट पर, 
जिसे मैंने अपनी शादी पर  पहना था,
और  शादी की सुनहरी यादों की तरह,
सहेज कर रखा था
मुझे याद  आया,जब तुमने पहली बार,
अपना सर मेरे कन्धों पर रखा था,
मैंने ये सूट पहन रखा था
मैंने इस सूट को,हलके से सहलाया,
और कोशिश की ढूँढने की,
तुम्हारे उन होठों  के निशानों को,
जो तुमने इस पर अंकित किये थे,
पिछले कई वर्षों से,
इसे पहन नहीं पा रहा हूँ,
क्योंकि सूट छोटा हो गया है,
पर हकीकत में,सूट तो वही है,
मै मोटा हो गया हूँ,
क्योंकि कपडे नहीं बदलते,
आदमी बदल जाता है
फिर निकला वह बंद गले वाला स्वेटर,
जिसे उलटे सीधे फंदे डाल,
तुमने  बड़े प्यार से बुना था,
और जिसे पहनने पर लगता था,
की तुमने अपने बाहुपाश मै,
कस कर जकड  लिया हो,
इस बार उस स्वेटर के  कुछ फंदे,
उधड़ते से नज़र आये
फिर दिखी शाल,
देख कर लगा,जैसे रिश्तों की चादर पर,
शक  के कीड़ों ने,
जगह जगह छेद कर दिए है,
मन मै उभर आई,
जीवन की कई ,खट्टी मीठी यादें,
भले बुरे लोग,
सर्द गरम दिन,
बनते बिगड़ते रिश्ते
फिर मैंने सभी ऊनी कपड़ों को,
धूप में फैला दिया,इस आशा से कि,
सूरज कि उष्मा से,
शायद इनमे फिर से,
नवजीवन का संचार हो जाये
मै हर साल  जब भी,
ऊनी कपड़ों का बक्सा खोलता हूँ,
चंद पल,पुरानी यादों को जी लेता हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'