Monday, September 19, 2011

आजकल मेरी आँखों पर ,बाईफोकल चश्मा है

जवानी में,
हसीनो को,
कमसिनो को
पड़ोसिनो को,
ताकते, झांकते,
मेरी दूर की नज़र कमजोर हो गयी,
और मेरी आँखों पर,
दूर की नज़र का चश्मा चढ़ गया
बुढ़ापे तक,
अपनी बीबी को,
रंगीन टी वी को
कुछ करीबी को
पास से देखते देखते ,
मेरी पास की नज़र कमजोर हो गयी,
और मेरी आँखों पर,
पास की नज़र का चश्मा चढ़ गया
जवानी के शौक,
और बुढ़ापे की आदतें,
ये उम्र का करिश्मा है
आजकल  मेरी आँखों पर ,
बाईफोकल  चश्मा है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, September 3, 2011

यादें

यादें
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तेज धूप गर्मी से,
जब छत की ईंटों के,
थोड़े जोड़ उखड जाते है
और बारिश होने पर,
जोड़ों की दरारों में,
कितने ही अनचाहे,
खर पतवार निकल जाते है
जीवन की तपिश से,
जाने अनजाने में,
रिश्तों के जोड़ों में,
जब दरार पड़ती है
और बूढी आँखों से,
बरसतें है जब आंसू,
तो बीती यादों के
कितने ही खर पतवार,
बस उग उग आते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'