Sunday, April 20, 2014

            एडजस्ट हो जाते है
 
 रेलवे स्टेशन पर,जब ट्रेन आती है
डब्बे में मुसाफिर की ,भीड़ घुस आती है
भीतर बैठे लोग ,'जगह  नहीं' चिल्लातें है
ट्रेन  जब चलती  है,सब  ऐडजस्ट हो जाते है
जोश भरा नया मुलाजिम ,जब नौकरी पाता है
बड़ी तेजी ,फुर्ती से ,काम सब  निपटाता  है
ऑफिस का ढर्रा जब ,समझ वो जाता है
अपने सहकर्मी संग ,एडजस्ट हो जाता है
छोड़ कर माँ बाप ,पिया घर जाती है
नए लोग ,सास ससुर ,थोड़ा घबराती है
प्यार और सपोर्ट जब,निज पति का पाती है
धीरे  धीरे  हर लड़की ,एडजस्ट हो  जाती  है
बड़े बड़े सिद्धांतवादी ,अफ़सरों के  घर पर
 पहुँचते है ब्रीफकेस ,नोटों से भर भर कर
मिठाई के डब्बे और गिफ्ट  रोज आते है
ईमानदार अफसर भी एडजस्ट हो जाते है
जवानी में खूब मौज ,मस्तियाँ मनाते है
उमर के साथ साथ ,ढीले पड़  जाते है
मन मसोस रह जाते ,कुछ ना कर पाते है
बुढ़ापे के साथ  सब ही,एडजस्ट  हो जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, April 19, 2014

     बुढापा -खटारा कार

इस तरह है जिंदगी ,अपनी खटारा हो गयी ,
                             कार भी है पुरानी और बैटरी में नहीं दम
पूरी बॉडी खड़खड़ाती ,चलती जब स्पीड से,
                              थोड़ी भी चढ़ती चढ़ाई,होता है इंजिन गरम
गीयर ढीले,घिसा इंजिन ,स्टीयरिंग भी लूज है,
                               ट्यूब  पंक्चर से भरी  है,घिस गए टायर  सभी
जब तलक है चल रही ,चलती रहे ,किसको पता ,
                             किस जगह ,किस मोड़ पर,रुक जाए ये गाडी कभी

घोटू