Thursday, October 30, 2014

        कार का पुराना मॉडल

हमारी कार का मॉडल,पुराना  हो गया है पर ,
          अभी बकरार इंजिन का ,वही जलवा पुराना है
अभी भी स्टीयरिंग में और गियर में जान है वो ही ,
          वही रफ़्तार है कायम ,सफर वो ही सुहाना  है
ये दीगर बात है कि शॉक अब्सोर्बर पड़े ढीले,
            और टायर भी थोड़े घिस गए है इतना चल चल के ,
समय के साथ थोड़ा रंग भी है पड गया फीका, 
            फसें हम  प्यार में उसके ,वही गाडी चलाना   है           

घोटू

Monday, October 27, 2014

                  फूटे हुए पटाखे हम है

सूखी  लकड़ी मात्र नहीं हैं,हम खुशबू वाले चन्दन है
जहाँ  रासलीला होती थी,वही पुराना  वृन्दावन है
कभी कृष्ण ने जिसे उठाया था अपनी चिट्टी ऊँगली पे,
नहीं रहे हम अब वो पर्वत,अब गोबर  के गोवर्धन है
हरे भरे और खट्टे मीठे , अनुभव वाली कई सब्जियां ,
मिला जुला कर गया पकाया ,अन्नकूट वाला भोजन है
बुझते हुए दीयों के जैसी ,अब आँखों में चमक बची है,
जब तक थोड़ा तेल बचा है,बस तब तक ही हम रोशन है
ना तो मन में जोश बचा है,ना बारूद  भरा है तन में,
जली हुई हम फूलझड़ी है,फूटे हुए पटाखे,बम  है

घोटू

Sunday, October 19, 2014

             वो बात अब न रही

जी तो करता है मेरा ,ये भी करू,वो भी करू,
         मगर मैं क्या करूं ,ये उम्र साथ अब न रही
न तो हम में ही रहा जोश वो जवानी का,
           तुम्हारे जलवों में वैसी बात अब न रही 
फ़ाख़्ता मारते थे जब मियां ,वो दिन न रहे,
           सितारे तोड़ के लाने की उमर बीत गयी,
अब तो अखरोट भी हम तोड़ नहीं पाते है,
          रंगीले दिन और सुहानी वो रात अब न रही
ज़माना वो भी था जब हम पतंग उड़ाते थे,
          माशुका  हाथ में चरखी ले ढील देती  थी,
 हम खुद ही हो गए है इस कदर ढीले ,
           वक़्त की डोर भी तो अपने हाथ अब न रही
बहुत ही चौके और छक्के जड़े  जवानी में ,
            समय के आगे मगर हुए 'कैच आउट'हम
अब तो हम 'पेवेलियन'छोड़ कर जाने वाले ,
           हमारे  बल्ले में वो करामात अब न  रही
कभी डंका हमारे नाम का भी बजता था,
         हमारी आरती भी लोग उतारा करते ,
ज़माना करता नमस्कार चमत्कारों को ,
        हमारे जादू में भी वैसी बात अब न रही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

Wednesday, October 15, 2014

               अपने जब होते बेगाने

पहले तुम जितने अपने थे ,अबतुम उतने ही बेगाने हो
और जान कर भी ये सब कुछ,बनते बिलकुल अनजाने हो
बन कर नन्हे फूल खिले थे,महके थे तुम जब आँगन में
तुमको लेकर,जाने क्या क्या ,सपने देखे थे इस मन ने
पाल,पोसा और संवारा ,हरदम रख कर ख्याल तुम्हारा
 सोचा था जब जरुरत होगी ,तब तुम दोगे  ,हमें सहारा
पर बचपन में ही तो केवल,बात हमारी तुम माने हो
पहले तुम जितने अपने  थे,अब उतने ही बेगाने हो
साथ समय के,बड़े चाव से,घर तुम्हारा,गया बसाया
करी तुम्हारी शादी उस संग,मीत  तुम्हारे मन जो भाया
लेकिन दिन दिन ,दूर हुए तुम,होनी ने वो  चक्र चलाया
एक रिश्ते में ,ऐसे उलझे ,बाकी रिश्तों को बिसराया
प्यार सदा हम बरसाते है,तुम रहते ,भृकुटी  ताने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो
कभी नहीं सोचा था हमने,कि तुम इतने बदल जाओगे
अगर सफलता पा जाओगे ,तो तुम  इतना इतराओगे
मत भूलो,जो तुम हो  उसमे,बहुत हमारा योगदान है
मात  पिता की आशीषों से ,ही बच्चे  बनते महान है
नहीं समझ में हमको आता ,जाने क्या मन में ठाने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो
तुम्हारी मति  हुई भ्रष्ट है,हम खुश रहते,तुम्हे कष्ट है
या तुम हुए गर्व से अंधे ,या विवेक हो गया नष्ट है
लेकिन तुम दिल के टुकड़े हो ,बदल गए  ,दुर्भाग्य हमारा
सदा सुखी,खुश रहो,फलो और फूलो,आशीर्वाद हमारा
समय तुम्हे सद् बुद्धि  देगा ,नियति को कब पहचाने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

Tuesday, October 14, 2014

            शाम आ रही है

दिन ढल रहा है और शाम आ रही है,
तभी साये अब लम्बे होने लगे  है
बदलती ही करवट ,जहाँ यादें रहती ,
सलवट भरे वो बिछौने   लगे है
बुझने को होता दिया जब है कोई,
सभी कहते है वो भभकता बहुत है,
हमें लगता है शायद ये ही वजह है ,
कि हम और रोमांटिक होने लगे है
चेहरे पे झुर्री है,आँखों में  जाले ,
नहीं दम बचा,हसरतें पर बड़ी है
इसी आस में कुछ निकल आये मख्खन,
मथी  छाछ,फिर से बिलोने लगे है 
बड़े चाव से वृक्ष रोपा था हमने ,
बुढ़ापे में खाने को फल देगा मीठे ,
फल लग रहे हैं,मगर खा न पाते ,
उमर के सितम ऐसे होने लगे है
बहुत व्यस्त अपनी गृहस्थी में बच्चे,
सुखी है सभी अपनी मस्ती में बच्चे ,
समझते हमें फालतू बोझ लेकिन,
जमाने के डर से ,वो ढोने लगे है
सूरज किरण संग कभी खेलते थे ,
अभी संध्या संग है और रजनी बुलाती ,
कहते है नींद ,मौत की  है सहेली ,
बड़ी देर उसके संग ,सोने लगे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, October 2, 2014

          ना इधर के रहे -ना उधर के रहे

ना तो उस दौर के और न इस दौर के ,
             बन गए दरमियानी कोई चीज हम
ना फलक पर चढ़े,ना जमीं पर रहे ,
            रह गए बस लटकते ही अधबीच हम
ना तो भूखे ही है,ना भरा पेट है ,
            बीच खाने के थाली  को क्यों छोड़ दें,
ना इधर के रहे ,ना उधर के रहे ,
           उम्र की ऐसी आ पहुंचे ,दहलीज हम 
जिस्म कहता है अब हम जवां ना रहे,
            कोई बूढा कहे ,दिल ये ना मानता ,
जब जवां लड़कियां हमको अंकल कहे ,
            दिल में होती चुभन,जाते है खीझ हम
ना तो काले ही है ,ना सफ़ेद ही हुए ,
            बाल सर पर हमारे बने खिचड़ी ,
उम्र का फर्क ये , हमको मिलने न दे ,
           रह गए एक दूजे पे ,बस रीझ हम
ना तो दिन ही ढला,ना हुई रात है ,
          शाम की है ये बेला ,बड़ी खुशनुमा ,
है बड़ा ही रूमानी ,सुहाना समां ,
          प्रेम के रस में जाते है अब भीज हम
ना तो नौसिखिया ही है ,ना रिटायर हुए,
          है तजुर्बा भरा ,तन  मे ताक़त भी है,
कोई कितना भी आजमा ,हमें देख ले,
          पायेगा ये बड़े काम की चीज  हम
दिल में जज्बा जवानी का कायम अभी,
           बात दीगर है अब जल्दी थक जाते हम ,
है बुलंदी पे अब भी मगर हौसला ,
            अब करें क्या ,बताओ ना तुम,'प्लीज 'हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'