Tuesday, December 25, 2012

    कुछ तो ख्याल किया होता

जिनने जीवन भर प्यार किया ,
                उन्हें कुछ तो प्यार दिया  होता
मेरा ना मेरी बुजुर्गियत ,
                का कुछ तो ख्याल  किया होता
छोटे थे थाम  मेरी उंगली ,  
                   तुम पग पग चलना सीखे थे,
मै डगमग डगमग गिरता था,
                   तब मुझको  थाम लिया होता
जब तुम पर मुश्किल आई तो ,
                     मैंने आगे बढ़ ,मदद करी,
जब मुझ पर मुश्किल आई तो,
                       मेरा भी साथ दिया होता
मैंने तुमसे कुछ ना माँगा ,
                        ना मांगू ,ये ही कोशिश है,
अहसानों के बदले मुझ पर,
                        कुछ तो अहसान किया होता


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, December 18, 2012


 ढलती उमर  का प्रणय निवेदन

मै जो भी हूँ ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा मत देना
माना तन थोडा जर्जर है ,लेकिन मन में जोश भरा है
इन धुंधली आँखों में देखो,कितना सुख संतोष  भरा है
माना काले केश घनेरे,छिछले और सफ़ेद हो रहे,
लेकिन मेरे मन का तरुवर,अब तक ताज़ा ,हराभरा है
तेरे उलझे बाल जाल में,मेरे नयना उलझ गए है,
इसीलिये शृंगार समय तुम,उलझी लट सुलझा मत लेना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना
चन्दन जितना बूढा होता ,उतना ज्यादा महकाता है
और पुराने चांवल पकते ,दाना दाना खिल जाता है
जितना होता शहद पुराना ,उतने उसके गुण बढ़ते है,
'एंटीक 'है चीज पुरानी,उसका  दाम सदा  ज्यादा है
साथ उमर के,अनुभव पाकर ,अब जाकर परिपक्व हुआ हूँ,
अगर शिथिलता आई तन में,उस पर ध्यान जरा मत देना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा  मत देना
साथ उमर  के ,तुममे भी तो,है कितना बदलाव आ गया
जोश,जवानी और उमंग में ,अब कितना उतराव  आ गया
लेकिन मेरी नज़रों में तुम,वही षोडसी  सी रूपवती  हो,
तुम्हे देख कर मेरी बूढी,नस नस में उत्साह   आ गया
बासी रोटी ,बासी कढ़ी   के,साथ,स्वाद ,ज्यादा लगती है ,
सच्चा प्यार उमर ना देखे,तुम इतना बिसरा मत देना
मै  जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

Sunday, December 2, 2012

         हम  अब भी दीवाने है

बात प्यार की जब भी निकले ,हम तो इतना जाने है
हम पहले भी दीवाने थे ,हम अब भी दीवाने  है
प्यार ,दोस्ती से यारी है ,नफरत है गद्दारी से ,
डूबे रहते है मस्ती मे ,हम तो वो  दीवाने  है
ना तो कोई लाग  लगावट,नहीं बनावट बातों में,
ये सच है ,दुनियादारी से,हम थोड़े अनजाने  है
कल की चिंता में है खोया ,हमने मन का चैन नहीं,
नींद चैन की लेते है हम ,सोते खूँटी  ताने  है
सीधा सादा सा स्वभाव है ,छल प्रपंच का नाम नहीं ,
पंचतंत्र और तोता मैना के बिसरे  अफ़साने है
खाने और पकाने में भी ,काम सभी के आये थे ,
मोच पड़ गयी,भरे हुए पर,बर्तन भले पुराने है 
जिनके प्यारे स्वर उर अंतर ,को छू छू कर जाते है,
राग रागिनी  रस से  रंजित,हम वो पक्के गाने है
दाना दाना खिल खिल कर के ,महकेगा,खुशबू देगा ,
कभी पका कर तो देखो ,चावल बड़े पुराने है
काफी कुछ तो बीत गयी है ,बीत जायेगी बाकी भी ,
हँसते गाते ,मस्ती में ही ,बाकी दिवस बिताने है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, October 11, 2012

कभी सोलह की लगती हो, कभी सत्रह की लगती हो

मुझे  जब कनखियों से देखती ,तिरछी नज़र से तुम
बड़ी हलचल मचा  देती हो     मेरे इस जिगर में तुम
दिखा कर दांत सोने का,    कभी जब मुस्कराती हो
तो इस दिल पर अभी भी सेकड़ों ,बिजली गिराती हो
हुआ है आरथेराइटिस, तुम्हे  तकलीफ   घुटने की
मगर है चाल में अब भी ,अदायें वो, ठुमकने  की
वही है शोखियाँ तुम में,वही लज्जत, दीवानापन
नजाकत भी वही,थोडा,भले ही  ढल गया है तन
बदन अब भी मुलायम पर,मलाईदार  लगती हो
महकती हो तो तुम अब भी,गुले गुलजार लगती हो
तुम्हारा संग अब भी रंग ,भर देता है जीवन में
जवानी जोश फिर से लौटता है तन के आँगन में
सवेरे उठ के जब तुम ,कसमसा ,अंगडाई भरती हो
कभी सोलह की लगती हो,कभी सत्रह की लगती हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, September 30, 2012

रिटायर होने पर

उस दिन जब हम  होकर के तैयार
ऑफिस जाने वाले थे यार
बीबी को आवाज़ लगाई,
अभी तलक नहीं बना है खाना
हमको है ऑफिस जाना
तो बीबीजी बोली मुस्काकर
श्रीमानजी,अब आपको दिन भर,
रहना है घर पर
क्योंकि आप हो गए है रिटायर
सारा दिन घर पर ही काटना है
और मेरा दिमाग चाटना है
एसा ही होता है अक्सर
रिटायर होने पर
आदमी का जीना हो जाता है दुष्कर
दिन भर बैठ कर निठल्ला
आदमी पड़ जाता है इकल्ला
याद आते है वो दिन,
 जब मिया फाख्ता मारा करते थे
अपने मातहतों पर,
ऑफिस में रोब झाडा करते थे
यस सर ,यस सर का टोनिक पीने की,
जब आदत पड़ जाती है
तो दिन भर बीबीजी के आदेश सुनते सुनते,
हालत बिगड़ जाती है
सुबह जल्दी उठ जाया करो
रोज घूमने जाया करो
डेयरी से दूध ले आया करो
घर के कामो में थोडा हाथ बंटाया करो
बीते दिन याद आते है जब,
हर जगह वी आई पी ट्रीटमेंट था मिलता
आजकल कोई पूछता ही नहीं,
यही मन को है खलता
पर क्या करें,
उम्र के आगे किसी का बस नहीं है चलता
वक़्त काटना हो गया दूभर है
हम हो गए रिटायर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, September 28, 2012

 याद रखे दुनिया ,तुम एसा कुछ कर जाओ

तुम्हारा चेहरा ,मोहरा और ये आकर्षण

सुन्दर सजे धजे से कपडे या आभूषण
रौबीला व्यक्तित्व,शान शौकत तुम्हारी
धन ,साधन और ये दौलत सारी की सारी
ये गाडी ,ये बंगला और ये रूपया ,पैसा
रह जाएगा पड़ा यूं ही,वैसा का वैसा
साथ निभाने वाला कुछ भी नहीं पाओगे
खाली हाथ आये थे,खाली हाथ  जाओगे
नहीं रख सकोगे तुम ये सब,संग संभाल कर
एक दिन बन तस्वीर ,जाओगे टंग दीवाल पर
तुमने क्या ये कभी शांति से बैठ विचारा
तुम क्या हो और कब तक है अस्तित्व  तुम्हारा
झूंठी शान और शौकत पर मत इतराओ
याद रखे दुनिया, तुम एसा कुछ कर जाओ
मोह और माया के बंधन से आकर बाहर
अपनी कोई अमिट छाप छोडो  धरती पर
तुम्हारी भलमनसाहत और काम तुम्हारा
मरने पर भी अमर रखेगी,नाम तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

Thursday, September 27, 2012

              आपकी परछाईयां
सुबह सुबह जब उगता है सूरज,
परछाईयाँ लम्बी  होती है
उसी तरह ,जीवन का सूरज  उगता है,
यानी की बचपन,
आप सभी को डेक कर मुस्काते है
किलकारियां भरते है
खुशियाँ लुटाने में,
कोई  भेदभाव नहीं करते है
आपकी मुस्कान का दायरा,
सुबह की परछाईं की तरह,
बड़ा लम्बा होता है
और दोपहरी में,
याने जीवन के मध्यान्ह में,
आपकी परछाईं,आपके नीचे,
अपने में ही सिमट कर रह जाती है
वैसे ही आप जब,
अपने उत्कर्ष की चरमता पर होते है,
अहम से अभिभूत होकर,
स्वार्थ में लिपटे हुए,
सिर्फ अपने आप को ही देखते है
और दोपहर की परछांई की तरह,
अपने में ही सिमट कर रह जाते है
और शाम को,
जब सूरज ढलने को होता है,
आपकी परछांई,लम्बी होती जाती है,
वैसे ही जब जीवन की शाम आती है,
आपकी सोच बदल जाती है
आपकी भावनाओं का दायरा,
पुरानी यादों की तरह,
उमड़ते जज्बातों की तरह,
तन्हाई भरी रातों की तरह,
लम्बा होता ही जाता है
जब तक सूरज ना ढल जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, September 24, 2012

सचमुच हम कितने मूरख है

कोई कुछ भी कह दे,उसकी बातों में  आ जाते झट है
                                सचमुच हम कितने मूरख है
 भ्रष्टाचार विहीन व्यवस्था,और सुराज के सपने देखें
इस कलयुग में,त्रेता युग के,रामराज  के सपने   देखें
पग पग पर रिश्वतखोरी है,दिन दिन बढती है मंहगाई
लूटखसोट,कमीशन बाजी,सांसद करते हाथापाई
राजनीती को ,खुर्राटों ने,पुश्तेनी व्यापार बनाया
अर्थव्यवस्था को निचोड़ कर,घोटालों का जाल बिछाया
उनके झूंठे बहकावे में,फिर भी आ जाते जब तब है
                                सचमुच हम कितने मूरख है
कथा भागवत सुनते,मन में ,ये आशा ले,स्वर्ग जायेंगे
करते है गोदान ,पकड़कर पूंछ बेतरनी ,तर जायेंगे
मोटे मोटे टिकिट कटा कर,तीर्थ ,धाम के , करते दर्शन
ढोंगी,धर्माचार्य ,गुरु के,खुश होतें है,सुन कर प्रवचन
गंगा में डुबकियाँ लगाते,सोच यही,सब पाप धुलेंगे
रातजगा,व्रत कीर्तन करते,इस भ्रम में कि पुण्य मिलेंगे
दान पुण्य और मंत्रजाप से,कट जाते सारे  संकट है
                             सचमुच हम कितने मूरख है
आज बीज बोकर खुश होते,अपने मन में ,आस लगा कर
वृक्ष घना होकर बिकसेगा, खाने को देगा मीठे फल
नहीं अपेक्षा करो किसी से,पायेगा दुःख ,ह्रदय तुम्हारा
करो किसी के खातिर यदि कुछ,समझो था कर्तव्य तुम्हारा
नेकी कर दरिया में डालो, सबसे अच्छी बात यही  है
सिर्फ भावनाओं में बह कर के, करना दिल को दुखी नहीं है
प्रतिकार की ,आशा मन में,रखना संजो,व्यर्थ,नाहक है
                           सचमुच  हम कितने मूरख है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

Tuesday, September 18, 2012

              पशुवत जीवन
बचपन में,
हम खरगोश की तरह होते है
नन्हे,मासूम,कोमल,मुलायम,
मुस्कराते रहते है
किलकारियां भरते है
प्यार और दुलार की,
हरी हरी घास चरते है
किशोरावस्था में,
हिरन की तरह कुलांछे लगाते है
या बारहसिंघा की तरह,
अपने सींगों पर इतराते है
और जवानी में,
कभी दूध देती गाय की तरह रंभाते है
कभी कंगारू की तरह,
 अपने बच्चों को सँभालते है
कभी शेर की तरह दहाड़ते है
कभी हाथी की तरह चिंघाड़ते है
और बुढ़ापे के रेगिस्थान में,
ऊँट की तरह,
प्यार के नखलिस्थान की तलाश करते है
लम्बी उम्र की तरह,
अपनी लम्बी गर्दन उचका उचका ,
कांटे भरी झाड़ियों में,
हरी हरी पत्तियां दूंढ ढूंढ,
अपना पेट भरते है
सदा गधों सा बोझा  ढोतें है
हम उम्र भर,
पशुवत जीवन जी रहे होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, September 16, 2012

         जीवन झंझट

थोडा सा आराम मिला है, मुझको जीवन की खट पट में
कुछ इकसठ में,कुछ बांसठ में,कुछ त्रेसठ में,कुछ चोंसठ में
  चलता यह गाडी के नीचे,पाले गलत फहमियां   सारी
मै था मूरख श्वान समझता ,मुझ से ही चलती है  गाडी
जान हकीकत, मै पछताया,खटता रहा यूं ही फ़ोकट में 
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खट पट में
मै था एक कूप मंडुप सा,कूए  में सिमटी थी दुनिया
नहीं किसी से लेना देना ,,बस मै था और मेरी दुनिया
निकला बाहर तो ये जाना,सचमुच ही था ,कितना शठ मै
थोडा सा आराम मिला है,मुझको जीवन की खटपट में
उलझा रहा और की रट में,मं में  प्यार भरी चाहत  थी
आह मिली तो होकर आहत,राह ढूंढता था  राहत की
यूं ही फंसा रखा था मैंने,खुदको  बे मतलब,झंझट  में
थोडा सा आराम मिला है,मुझको  जीवन की खटपट में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

Saturday, September 15, 2012

                 जीवन लेखा

जीवन के इस दुर्गम पथ पर,पग पग पर भटकाव लिखा है
कहीं धूप का रूप तपाता, कहीं छाँव  का ठावं   लिखा    है
तड़क भड़क है शहरों वाली,बचपन वाला गाँव लिखा   है
गीत लिखे कोकिल के मीठे, कागा  का भी काँव लिखा है
पासे फेंक  खेलना जुआ  ,हार जीत का दाव लिखा  है
कहीं किसी से झगडा,टंटा ,कहीं प्रेम का भाव लिखा है
 अच्छे बुरे  कई लोगों से,जीवन भर टकराव लिखा है
प्रीत परायों ने पुरसी है,अपनों से   अलगाव   लिखा है
लिखी जवानी में उच्श्रन्खलता ,वृद्ध हुए ,ठहराव  लिखा है
वाह रे ऊपरवाले  तूने,जीवन भर   उलझाव लिखा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, September 12, 2012

इजहारे इश्क-बुढ़ापे में

दिल के कागज़ पर लिखा है,नाम केवल आपका
ध्यान मन में लगा रहता है हरेक पल  आपका
क्या गजब का हुस्न है और क्या  अदाएं आपकी,
घूमता आँखों में रहता, चेहरा चंचल    आपका
हम को दीवाना दिया है कर तुम्हारी चाह ने ,
सोने के साँचें से आया , ये बदन ढल आपका
बन संवर के ,निकलती  हो ,जब  ठुमकती चाल से,
दिल करे दीदार करता रहूँ दिन भर   आपका
श्वेत  केशों पर न जाओ,उम्र में  क्या रखा,
प्यार देखो,दिल जवां है,और पागल  आपका
बात सुन वो हँसे,बोले आप है सठिया गये,
जंच रहा है ,नहीं हमको ,ये प्रपोजल  आपका
फिर भी ये तारीफ़ सुन कर,हमको है अच्छा लगा,
तहे दिल से शुक्रिया है,डियर 'अंकल'  आपका

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चीपट-घिसे हुए साबुन की

घिसे हुए साबुन की चीपट,
न पकड़ में आती है,न काम में आती है
या तो यूं ही गल जाती है,
या व्यर्थ फेंकी जाती है
मगर उस घिसी हुई चीपट को,
अगर नए साबुन के साथ चिपका दो,
तो आखरी दम तक काम आती है
बुजुर्ग लोग भी,
घिसे हुए साबुन की चीपट की तरह है,
उम्र भर काम आते है
और बुढ़ापे में,चीपट से क्षीण हो जाते है
नयी पीढियां यदि नए साबुन की तरह,
उन्हें अपने साथ प्यार से चिपका ले,
तो उम्र भर काम आते है
वर्ना चिंताओं से गल जाते हैं,
या फेंक दिए जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, September 10, 2012

मगर माँ बस एक है

कई तारे टिमटिमाते,आसमां में रात भर,
                          मगर सूरज एक है  और चंद्रमां बस एक है
कहने को तो दुनिया में कितने करोड़ों देवता,
                           मगर जो दुनिया चलाता,वो खुदा बस एक है
कई टुकड़ों में गयी बंट,देश कितने बन गए,
                           ये धरा पर एक ही है,आसमां भी एक है
 कई रिश्ते है जहाँ में,भाभियाँ है चाचियाँ,
                         बहने है,भाई कई है ,मगर माँ  बस एक है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

रात दिन कुछ नहीं देखा,उम्र के सैलाब में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

रातदिन खटते रहे बस लक्ष्मी की चाह में
मुश्किलें थी,दिक्कतें थी,उन्नति की राह में
             मगर हम पिसते रहे
             एडियाँ   घिसते  रहे
सिर्फ दौलत और पैसा ही बसा था   ख्वाब में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

पंडितों को जन्मपत्री दिखा किस्मत पूछते
आश्रम,दरगाह,मंदिर, हम सभी को पूजते
              सभी से लुटते रहे
              और हम जुटते रहे
कभी टोने टोटके में,कभी पूजा ,जाप में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

सुख नहीं कोई उठाया,मुफलिसों से हम जिये
बहुत कुछ हमने कमाया,मगर सब किसके लिये
                उम्र के इस मोड़ पर
                गए सब संग छोड़ कर
इस बुढ़ापे में सहारा,कोई भी ना साथ में
जिंदगी हमने गमा दी,यूं ही शुभ और लाभ में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


Saturday, September 8, 2012

      चाखने की ये उमर है

देख कर बहला लिया मन,और बस करना सबर  है
नहीं खाने की रही ,बस चाखने की ये उमर   है
मज़े थे जितने उठाने,ले लिये सब जवानी में
अब तो उपसंहार ही  बस,है बचा इस कहानी में
याद आती है पुरानी, गए वो दिन खेलने के
बड़े ही चुभने लगे ये दिन मुसीबत  झेलने के
मचलता तो मन बहुत पर,तन नहीं अब साथ देता
त्रास,पीडायें हज़ारों,  बुढ़ापा दिन    रात         देता
जब भी मौका मिले तो बस, ताकने की ये उमर है
नहीं खाने की रही बस चाखने की ये उमर   है
तना तो अब भी तना है,पड़ गए पर पात पीले
दांत,आँखे,पाँव ,घुटने,पड़  गए सब अंग ढीले
क्या गुजरती है ह्रदय पर,आपको हम क्या बताएं
बुलाती है हमको अंकल कह के जब नवयौवनाएं
सामने पकवान है पर आप खा सकते नहीं है
मन मसोसे सब्र करना,बचा अब शायद यही है
हुस्न को बस  ,कनखियों से,झाँकने की ये उमर है
नहीं खाने की रही बस चाखने  की ये उमर  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

Thursday, August 16, 2012

ये बुड्डा मॉडर्न हो गया

उम्र का आखरी पड़ाव  है करीब आया,
   मज़ा भपूर मोडर्न होके मै  उठाता हूँ
पहन कर जींस,कसी कसी हुई टी शर्टें,
   दाल रोटी के बदले रोज पीज़ा खाता हूँ
अपने उजले सफ़ेद बालों को रंग कर काला,
     मोड सी स्टाईल में ,उनको सजा देता हूँ
बड़े से काले से गोगल को पहन,मै खुलकर,
     ताकने  ,झाँकने का खूब मज़ा लेता हूँ
नमस्ते,रामराम या प्रणाम भूल गया,
      'हाय 'और ' बाय' से अब बातचीत होती है
फाग का रंग नहीं ,अब तो 'वेलेनटाइन डे' पर ,      
       लाल गुलाब ही देकर के प्रीत  होती है
वैसे तो थोड़ी समझ में मुझे कम आती है,
       आजकल देखने लगा हूँ फिलम अंग्रेजी
उमर के साथ अगर हो रहा हूँ मै मॉडर्न,
       लोग क्यों कहते हैं कि हो रहा हूँ मै क्रेजी
सवेरे जाता हूँ जिम,सायकिलिंग भी  करता हूँ,
       कभी स्टीम कभी सोना बाथ लेता हूँ
और स्विमिंग पूल जाता तैरने के लिए,
         अपनी बुढिया को भी अपने साथ लेता हूँ
 बड़ी कोशिश है कि फिट रहूँ,जवान रहूँ,
         जाके मै पार्लर में फेशियल भी करता  हूँ
आदमी सोचता है जैसा वैसा रहता है,
         बस यही सोच कर ,ये सारे शगल करता हूँ
  घर में मै,आजकल,न कुरता,पजामा ,लुंगी,
        पहनता स्लीव लेस शर्ट और बरमूडा
सैर करता हूँ विदेशों कि,घूमता,फिरता,
        तभी तो लगता टनाटन है  तुमको ये बुड्डा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, August 12, 2012

कसक मन में रह गयी है

भावनायें बह गयी,संभावनायें  ढह गयी है
मिलन फिर हो पायेगा, ये आस धूमिल रह गयी है
अब तो  कहने सुनने को बाकी बचा ही और क्या है,
ये तुम्हारी बेरुखी ही बात सारी कह गयी है
एक तो वातावरण में,हवाएं फैली,विषैली,
और उस पर फिर अचानक,हवा उलटी बह गयी है
कलकलाती थी नदी पर जब से पानी थम गया है,
हो गयी फिसलन यहाँ पर,काई  की  जम तह गयी है
आस में ,मौसम बसंती,आयेगा,पत्ते लगेंगे,
जिंदगानी एक सूखा वृक्ष बन कर रह गयी है
पता ना,किस दिन ढहेगी,पर टिकी,मजबूत है ,
ये पुरानी इमारत,भूचाल  इतने सह गयी है
क्यों हुआ,कैसे हुआ,क्यों कर हुआ,क्या बतायें,
मगर ये होना न था,ये कसक मन में रह गयी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
माँ बाप और बेटा

मेरा बेटा,
जब नर्सरी स्कूल में पढता था
तो जो उसकी मिस कहती थी ,
उसी को सच जानता था
माँ बाप कुछ भी कहे,
उनकी बात नहीं मानता था
और  अब जब उसकी शादी हो चुकी है,
उसमे कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया है
अब मिस नहीं,
उसकी मिसेस जो भी कहती है,
उसी को  सच जानता है
माँ बाप कुछ भी कहे,
उनकी बात नहीं मानता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
उनकी सारी गलतियाँ बिसरा चुके है

चोंट इतनी जमाने की खा चुके है
जितने भी आंसू थे आने,आ चुके है
विदारक घड़ियाँ दुखों की टल गयी है,
सैंकड़ों ही बार अब  मुस्का  चुके है
मुकद्दर में लिखा है वो ही मिलेगा,
अपने दिल को बारहा समझा चुके है
किये होंगे करम कुछ पिछले जनम में,
जिसका फल इस जनम में हम पा चुके है
मोहब्बत के नाम से लगने लगा डर,
मोहब्बत का सिला एसा  पा चुके है
हम तो है वो फूल देशी गुलाबों के,
महकते है ,गो  जरा कुम्हला चुके है
रहे वो खुश और सलामत ये दुआ है,
उनकी सारी गलतियाँ बिसरा चुके है

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, August 11, 2012

आजकल हम रोज जिम जाने लगे है

प्यार में हम जिनके पगलाने लगे  है
आजकल वो हमसे कतराने लगे  है
तहे दिल से उनसे करते है मोहब्बत,
और उनको हम तो दीवाने लगें है
थोड़ी सी अच्छी हुई सेहत हमारी,
कहते है कि हम अब मोटियाने लगे है  
दिल  मिलाने की कहो तो तिलमिलाते,
आजकल वो नखरे दिखलाने  लगे है
पेट या सरदर्द का करके बहाना,
किस तरह भी हम को टरकाने लगे है
दुबले होने डाइटिंग के नाम पर हम,
उबली सब्जी ,टमाटर ,खाने लगे है
'घोटू 'हम स्टीम ,सोना बाथ लेकर,
अपनी चर्बी , थोड़ी छटवाने लगे है
जब से उनने हमको मोटा कह दिया है,
आजकल हम रोज जिम जाने लगे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, June 19, 2012

     कल के  लिये

आस है कल अगर फल की ,आज पौधे रोंपने है
विरासत के वजीफे,नव पीढ़ियों को   सौंपने  है
मार कर के कुंडली ,कब तलक  बैठे तुम  रहोगे
सभी सत्ता ,सम्पदा,सुख को समेटे  तुम रहोगे
थक गये हो,पक गये हो,हो गये बेहाल से तुम
टपक सकते हो कभी भी,टूट  करके डाल से तुम
छोड़ दो ये सभी बंधन, मोह, माया में भटकना
एक दिन तस्वीर बन,दीवार पर तुमको लटकना
वानप्रस्थी इस उमर में,भूल जाओ  कामनायें
प्यार सब जी भर लुटा दो,बाँट दो   सदभावनाएँ
याद रख्खे पीढियां,कुछ काम एसा  कर दिखाओ
कमाई  कर ली बहुत , अब नाम तुम अपना कमाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Tuesday, June 12, 2012

बुढ़ापे में

बताएं आपको क्या बात है बुढ़ापे में
बिगड़ जाते बहुत हालात है बुढ़ापे में
    नींद आती ही नहीं,आई,उचट   जाती है
    पुरानी बातें कई दिल में उभर  आती है
बड़ी रुक रुक के ,बड़ी देर तलक आती है,
पुरानी यादें और पेशाब है  बुढ़ापे में
    मिनिट मिनिट में सारी ताज़ी बात भूलें  है
    जरा भी चल लो तो जल्दी से सांस फूले  है
कभी घुटनों में दरद ,कभी कमर दुखती है,
होती हालत बड़ी खराब है     बुढ़ापे में
    खाने पीने के हम शौक़ीन तबियत वाले
    जी तो करता है बहुत,खा लें ये या वो खालें
बहुत पाबंदियां है डाक्टर की खाने पर,
पेट भी देता नहीं साथ है  बुढ़ापे में
    दिल तो ये दिल है यूं ही मचल मचल जाता है
    आशिकाना मिजाज़,छूट  कहाँ  पाता   है
मन तो करता है बहुत कूदने उछलने को,
हो नहीं पाते ये उत्पात  हैं बुढ़ापे   में
      देखिये टी वी या फिर चाटिये अखबार सभी
       भूले भटके से बच्चे पूछतें  है  हाल कभी
कभी देखे थे जवानी में ले के बच्चों को,
टूट जाते सभी वो ख्वाब है   बुढ़ापे में
बताएं आपको क्या बात है बुढ़ापे में
बिगड़ जाते बहुत हालात है  बुढ़ापे में

मदन मोहन बहेती 'घोटू'
      
 
   

Thursday, April 12, 2012

बाल रंग कर के बूढा आया है

बाल रंग कर के बूढा आया है

देखो कैसा जूनून छाया है

बाल रंग कर के बूढा आया है
पहन ली जींस,बड़ी टाईट है
और टी शर्ट भी बड़ी फिट है
खूब परफ्यूम तन पे है छिड़का
बड़ा रंगीन है मिजाज़ इसका
गोल्ड का फेशियल कराया है
देखो कैसा जूनून छाया है
बहुत गुल खिलाये जवानी में
लगाई आग ठन्डे पानी में
आजकल बहुत कसमसाता है
स्वर्ण  की भस्म रोज़ खाता है  
देख कर हुस्न छटपटाया है
देखो कैसा जूनून छाया है
भले ही बूढा हो गया बन्दर
जोश अब भी है जिस्म के अन्दर
हरकतें मनचलों सी करता है
गुलाटी के लिए  मचलता है
बासी कढ़ी में उबाल आया है
देखो कैसा जूनून छाया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, April 11, 2012

रखो ख्याल तुम बुजुर्गों का

रखो ख्याल तुम बुजुर्गों का
--------------------------------
उठालो फायदा जी भर के तुम बुजुर्गों का
ये तो हैं,एक समन्दर भरा ,तजुर्बों  का
प्रेम से जब भी उसमे डुबकियाँ लगाओगे
थोड़े गहरे से ही ,मोती को ढूंढ लाओगे
मिला है साया बुजुर्गों का बड़ी किस्मत से
खजाना भरलो उनकी दुआओं की दौलत से
बड़ी तकदीर से ही साथ मिलता है इनका
इनका साया ओ सर पे साथ मिलता है इनका
ये खुशनसीबी है कि तुमको मिला है मौका
करो सन्मान,रखो ख्याल तुम बुजुर्गों का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, March 28, 2012

वो दिन कितने अच्छे होते थे

वो दिन कितने अच्छे होते थे
---------------------------

कई बार सोचा करता हूँ,
 वो दिन कितने अच्छे होते थे
जब एक घर में ,सात आठ बच्चे होते थे
माँ तो घर के  रोजमर्रा के काम संभालती थी
और बच्चों को,दादी पालती थी 
बाद में बड़े बच्चे,
छोटे बच्चों को सँभालने लगते थे
लड़ते झगड़ते भी थे,
पर आपस में प्यार भी बहुत करते थे
तब शिक्षा का व्यापारीकरण भी नहीं हुआ था,
 हर साल कोर्स की किताबें भी नहीं बदलती थी
कई वर्षों तक एक ही किताब चलती थी
बड़ों की किताबें छोटा ,
और फिर बाद वाला छोटा भी पढता था
वैसे ही बड़ों के कपडे छोटा,
और छोटे के कपडे उससे भी छोटा पहनता था
घर में चहल पहल रहती थी ,प्यार पलता था
और घर खुशियों से गूंजा  करता था
और अब एकल परिवार,एक या दो बच्चे
नौकरी करते माँ बाप,और तन्हाई में रहते बच्चे
टी वी से चिपके रह कर अपना वक़्त गुजारते है
स्कूल के होम वर्क का बोझ  ही इतना होता है,
कि मुश्किल से ही खेलने का समय निकालते है
दादा दादी,कभी कभी मेहमान बन कर आते है
और आठ दस दिन में चले जाते है
दादा दादी का वो प्यार और दुलार,
आजकल बिरलों को ही मिल पा रहा है
इसीलिए आज का बच्चा,
सारे रिश्ते नाते,रीति रिवाज ,
और प्यार भूलता जा रहा है
और दिन-ब-दिन जिद्दी होता जा रहा है
दादी कि कमी को शायद ऐसे भुलाता है
कि पिताजी को भी DADDY (डेडी या दादी )कह कर बुलाता है
और अब इकलौता  बेटा यदि कपूत निकल गया
तो समझो,माँ बाप का बुढ़ापा कि बिगड़ गया
उन दिनों जब होते थे सात आठ बच्चे
कुछ बुरे भी निकलते थे,लेकिन कुछ अच्छे
कोई न कोई तो सपूत  निकल ही जाता था
और माँ बाप का बुढ़ापा सुधर  जाता था
इसीलिए कई बार सोचता हूँ,
वो दिन कितने अच्छे होते थे
जब एक घर में सात आठ  बच्चे होते थे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम बूढ़े हो गये हैं


हम बूढ़े हो गये हैं
-----------------


हम बूढ़े हो गये हैं,
अपना बुढ़ापा इस तरह काटते हैं
अब हम सभी को अपना प्यार बांटते है
राग,द्वेष सबसे पीड़ित थे,जब जवान थे
गर्व से तने रहते थे ,पर नादान थे
काम में व्यस्त रहते थे हरदम
बस एक ही धुन थी,खूब पैसा कमायें हम
भागते रहे, दोड़ते रहे
कितने ही अपनों का दिल तोड़ते रहे
न आगे देखा,न देखा पीछे
बस भागते रहे दौलत के पीछे
न दीन की खबर थी,न ईमान की
बस  कमाई में ही अटकी जान थी
और मंजिल मिलती थी जब तलक
बढ़ जाती थी,अगली मंजिल पाने की ललक
फंस गये थे मृगतृष्णा में ऐसे
कि नज़र आते थे बस पैसे ही पैसे
बहुत क्लेश किये,बहुत एश किये
दौलत के लिए दिन रात एक किये
पर शरीर की उर्जा जब ठंडी पड़ने लगी
और जिंदगी,अंतिम पढाव की ओर बढ़ने लगी
जब सारा जोश गया,तब हमें होंश आया
माया के चक्कर में हमने क्या क्या गमाया
दोस्त छोटे,परिवार छूटा
अपनों का प्यार छूटा
और अब जब आने लगी है जीवन की शाम
ख़तम हो गया है सारा अभिमान
और हमें अब आया है ज्ञान
कि इतनी सब भागदौड़,
क्यों और किसके लिये करता है इंसान?
और अब हो गया है इच्छाओं का  अंत
तन और मन ,दोनों हो गये हैं संत
सच्चाई पर चलने लग गये है
बुराइयों से डरने लग गये है
अब हम,दिमाग की नहीं,दिल की बात मानते है
हम बूढ़े हो गये है,अपना बुढ़ापा इस तरह काटते है
अब हम सभी को अपना प्यार बांटते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



 

Monday, March 26, 2012

बुढ़ापा कैसे काटें?

  बुढ़ापा कैसे काटें?

आया बुढ़ापा,हमतुम मिल कर वक़्त बितायें

इक   दूजे के  कामों में   हम हाथ   बँटाये
तुम धोवो कपडे और मै फिर उन्हें सुखाऊ
तुम पूरी बेलो ,मै उनको तलता  जाऊ
मै  सब्जी काटूं तुम उसमे   छोंक लगाओ
मै सेकूँगा टोस्ट और तुम चाय बनाओ
और फिर हमतुम साथ बैठ कर पीयें,खायें
आया बुढ़ापा,हमतुम मिल कर वक़्त बितायें
ना ही मुझको चिंता जल्दी दफ्तर जाना
ना ही तुमको फिकर सवेरे टिफिन बनाना
उठें देर से,मिल जुल काम सभी निपटायें
घूमे,फिरें,मौज मस्ती कर,पिक्चर जायें
हँसते ,गाते,दौर उमर का ये कट जाये
आया बुढ़ापा,हमतुम मिल कर वक़्त बितायें
साथ साथ जीवन काटा है,हम दोनों ने
सुख ,दुःख ,सबको,मिल बांटा है,हम दोनों ने
हरा भरा था पेड़ जहां थी खुशियाँ बसती
आया पतझड़,पंछी उड़े,छोड़ कर  बस्ती
पीड़ भुला कर ,उसी नीड़ में ,हम मुस्कायें
आया  बुढ़ापा,हमतुम मिलकर,वक़्त बितायें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Sunday, March 25, 2012

हो गयी माँ डोकरी है

हो गयी माँ डोकरी है

प्यार का सागर  लबालब,अनुभव से वो भरी है

हो गयी माँ डोकरी है
नौ दशक निज जिंदगी के,कर लिए है पार उनने
सभी अपनों और परायों ,पर लुटाया  प्यार  उनने
सात थे हम बहन भाई,रखा माँ ने ख्याल सबका
रोजमर्रा जिंदगी के ,काम सब और ध्यान घर का
कभी दादी की बिमारी,पिताजी की व्यस्तायें
सभी कुछ माँ ने संभाला,बिना मुंह पर शिकन लाये
और जब त्योंहार आते,तीज,सावन के सिंझारे
सभी को मेहंदी लगाती,बनाती पकवान सारे
दिवाली  पर काम करती,जोश दुगुना ,तन भरे वो
सफाई,घर की पुताई,मांडती थी,मांडने  वो
और हम सब बहन भाई,पढाई में व्यस्त रहते
मगर सब का ख्याल रखती,भले थक कर पस्त रहते
गयी निज ससुराल बहने,भाइयों की नौकरी है
साथ बाबूजी नहीं है, हो गयी माँ डोकरी     है
भूख  भी कम हो गयी है,बिमारी है,क्षीण तन है
चाहती सब काम करना,मगर आ जाती थकन है
और जब त्योंहार आते,उन्हें आता जोश भर है
सभी रीती रिवाजों पर ,आज भी पूरा दखल है
ये करो, ऐसे करो मत,हमारी है  रीत ऐसी
पारिवारिक रिवाजों को ,निभाने की प्रीत ऐसी
फोन करके,बहू बेटी को आशीषें बांटती   है
कभी गीता भागवत सुन ,वक़्त अपना काटती है
भले ही धुंधलाई आँखें, मगर यादों से भरी  है
हो गयी माँ डोकरी  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, March 24, 2012

हमारा आज-तुम्हारा कल

             हमारा आज-तुम्हारा कल
              -------------------------
ये न समझो ,यूं ही हमने ,काट दी अपनी उमर है
भीग करके ,बारिशों में,अनुभव की हुए तर  है
आज तुम जिस जगह पर हो,क्या कभी तुमने विचारा
तुम्हारी इस प्रगति में,सहयोग है कितना   हमारा
तुम्हारे सुख ,दुःख ,सभी पर,आज भी रखते नज़र है
हमारा मन मुदित होता,तुम्हे बढ़ता देख कर है
प्यार तुम से कल किया था,प्यार तुमसे आज भी है
देख तुम्हारी तरक्की,हमें तुम पर नाज़ भी है
हमें है ना गिला कोई,आ गया बदलाव तुम मे
बदलना नियम प्रकृति का,क्यों रखें हम क्षोभ मन में
भाग्य का लेखा सभी को,भुगतना है,ख्याल रखना
आज हम को जो खिलाते,पड़ेगा कल तुम्हे  चखना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, March 11, 2012

कष्ट-बुढ़ापे का

कष्ट-बुढ़ापे का
उम्र के इस  दौर ने ये हमारी हालत बनाइ 
काम हम कुछ भी करें तो हमें है इसकी मनाही
बढ़ रहा है ब्लड प्रेशर,घूमना फिरना  मना है
बैठ कर कमरे में हमको,सिर्फ टी वी देखना है
सुन के बच्चे बिगड़तें है,मत सुनो आईटम गाने
बड़े  अच्छे मधुर होते ,पुराने गाने,सुहाने
बुढ़ापे में इस कदर है,हमें बच्चे प्यार करते
डाईबिटिज है हमें,वो नहीं  मीठी बात करते
पूजते माँ बाप को है,एक कोने में बिठाके
पथ्य है पकवान,रहना दाल रोटी सिर्फ खाके
सामने पकवान  खाता,बैठ घर का हर जना है
हमें मिलती खीचड़ी है,तली सब चीजें मना  है 
नहीं आइसक्रीम खाओ,तुम्हे हो जायेगी खांसी
नहीं चखने हमें देते मिठाई ,थोड़ी जरा  सी
प्यार से हम पर लगाये गए सब प्रतिबन्ध से है
आजकल घर में घुसे हम,जेल में ज्यों बंद  से  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, March 10, 2012

तुम बदली पर प्यार न बदला

तुम बदली पर प्यार न बदला

घटाओं से बाल काले आज  श्वेताम्बर  हुए  है

गाल चिकने गुलाबी पर झुर्रियां,सल पड़ गए है
हिरणी से नयन तुम्हारे, कभी  बिजली गिराते
चमक  धुंधली पड़ी ऐसी,छुप रहे ,चश्मा चढाते
और ये गर्दन तुम्हारी,जो कभी थी मोरनी सी
आक्रमण से उम्र के अब ,हुई द्विमांसल घनी सी
मोतियों सी दन्त लड़ी के,टूट कुछ मोती गये है
क्षीरसर में खिले थे जो वो कमल  कुम्हला गये है
कमर जो कमनीय सी थी,बन गयी है आज कमरा
पेट भी अब फूल कर के,लटकता है बना  दोहरा
पैर  थे स्तम्भ कदली के हुए अब हस्ती पग है
अब मटकती चाल का,अंदाज भी थोडा अलग है
शरबती काया तुम्हारी,सलवती अब हो गयी है
प्यार का लेकिन खजाना,लबालब वो का वही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, February 19, 2012

अरे ओ औलाद वालों!

अरे ओ औलाद वालों!
------------------------
अरे ओ औलाद वालों,
बुजुर्गों को मत प्रताड़ो
आएगा तुम पर बुढ़ापा,
जरा इतना तो विचारो
जिन्होंने अपना सभी कुछ,तुम्हारे खातिर लुटाया
तुम्हारा जीवन संवारा,रहे भूखे,खुद न खाया
तुम्हारी हर एक पीड़ा पर हुआ था दर्द जिनको
आज कर उनकी उपेक्षा,दे रहे क्यों पीड़ उनको
बसे तुम जिनके ह्रदय में,
उन्हें मत घर से निकालो
अरे ओ औलाद वालों !
समय का ये चक्र ऐसा,घूम कर आता वहीँ है
जो करोगे बड़ो के संग,आप संग होना वही है
सूर्य के ही ताप से जल,वाष्प बन,बादल बना है
ढक रहा है सूर्य को ही,गर्व से इतना तना  है
बरस कर फिर जल बनोगे,
गर्व को अपने संहारो
अरे ओ औलाद वालों!
बाल मन कोमल न जाने,क्या गलत है,क्या सही है
देखता जो बड़े करते,बाद में करता वही  है
इस तरह संस्कार पोषित कर रहे तुम बालमन के
बीज खुद ही बो रहे,अपने बुढ़ापे  की घुटन के
क्या गलत है,क्या सही है,
जरा अपना मन खंगालो
अरे ओ औलाद वालों!

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Tuesday, February 7, 2012

घुटने की तकलीफ

घुटने की  तकलीफ
-----------------------
होती हमें बुढ़ापे में है ,घुटने की तकलीफ बहुत है
बचपन में चलते घुटनों  बल,चलना तभी सीख पाते है
मानव के जीवन में घुटने,सबसे अधिक काम आते है
करो प्रणाम,झुकाव घुटने,प्रभु पूजन में घुटने टेको
दफ्तर में साहब के आगे,झुकना पड़ता है घुटने को
बैठो तो घुटने बल बैठो,लेटो,करवट लो, घुटने बल
योगासन में,भागदौड़ में,घुटने ही देते है संबल
जगन,शयन और मधुर मिलन में,घुटने का सहयोग बहुत है
सीढ़ी चढ़ने  और उतरने   में घुटनो  का  योग बहुत  है
पत्नी जी यदि जिद पर आये,उनके आगे टेको  घुटने
हम इतना झुकते जीवन भर,की घुटने लगते है दुखने
इस शरीर का सारा बोझा,बेचारे घुटने सहते है
कदम कदम पर ,घुटनों के बल,हम आगे बढ़ते रहते है
एक  तो उमर बुढ़ापे की और उस पर ये घुटने की पीड़ा
उस पर बच्चे ध्यान न देते,मन ही मन घुटने की पीड़ा
मन की घुटन,दर्द घुटने का,तन मन रहती पीड़ बहुत है
होती हमें बुढ़ापे में है,घुटने की तकलीफ बहुत है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Friday, January 27, 2012

बूढों का हो कैसा बसंत

बूढों का हो कैसा बसंत?
--------------------------
पीला रंग सरसों फूल गयी
मधु देना अब ऋतू भूल गयी
सब इच्छाएं प्रतिकूल गयी
        यौवन का जैसे हुआ अंत
        बूढों का हो कैसा बसंत
गलबाहें क्या हो,झुकी कमर
चल चितवन, धुंधली हुई नज़र
क्या रस विलास अब गयी उमर
         लग गया सभी पर प्रतिबन्ध
          बूढों का हो कैसा बसंत
था चहक रहा जो भरा नीड़
संग छोड़ गए सब,बसी पीड़
धुंधली यादें,मन है अधीर
          है सभी समस्यायें दुरंत
          बूढों का हो कैसा बसंत
मन यौवन सा मदहोश नहीं
बिजली भर दे वो जोश नहीं
संयम है पर संतोष नहीं
        मन है मलंग,तन हुआ संत
         बूढों का हो कैसा बसंत

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



Thursday, January 19, 2012

गुल से गुलकंद

गुल से गुलकंद
-----------------
पहले थी तुम कली
मन को लगती भली
खिल कर फूल बनी
तुम खुशबू से सनी
महकाया  जीवन
हर पल और हर क्षण
पखुडी पखुडी खुली
मन में मिश्री  घुली
गुल,गुलकंद हुआ
उर आनंद   हुआ
असर  उमर का पड़ा
दिन दिन प्यार बढ़ा
कली,फूल,गुलकंद
हरदम रही   पसंद
खुशबू प्यार भरी
उम्र यूं ही गुजरी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, January 12, 2012

जब जब दिल में दर्द हुआ है

जब जब दिल में दर्द हुआ है
तब तब मौसम सर्द हुआ है
जब भी कोई आपके अपने,
             जिनको आप प्यार करते है
मुंह पर मीठी मीठी बातें,
            पीछे पीठ वार   करते है
जब जब भी बेगानों जैसा,
अपना ही हमदर्द हुआ है
तब तब मौसम सर्द हुआ है
रिश्तों के इस नीलाम्बर में,
               कई बार छातें है बादल                                      
होती है कुछ बूंदा बांदी,
               पर फिर प्यार बरसता निश्छल
शिकवे गिले सभी धुल जाते,
मौसम खुल बेगर्द  हुआ है
जब जब दिल में दर्द हुआ है
गलतफहमियों का कोहरा जब,
                आसमान में छा जाता है
देता कुछ भी नहीं दिखाई ,
                रास्ता नज़र नहीं आता है
दूर क्षितिज में अपनेपन का,
सूरज जब भी जर्द हुआ है
तब तब मौसम सर्द हुआ है
शीत ग्रीष्म के ऋतू चक्र के,
                         बीच बसंत ऋतू आती है  
नफरत के पत्ते झड़ते है ,
                        प्रीत कोपलें मुस्काती है
कलियों और भ्रमरों का रिश्ता,
जब खुल कर बेपर्द  हुआ  है
तब तब दिल में दर्द हुआ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, January 8, 2012

बेबसी

बेबसी
--------
तमन्ना है चाँद को जाकर छुए,खड़े  ढंग से मगर हो पाते नहीं
हुस्न की खिलती बहारें देख कर,छटपटाते,पर पटा पाते नहीं
खाने के तो हम बड़े शौक़ीन है,ठीक से पर अब पचा पाते नहीं
मन तो करता खिलखिला कर हम हँसे,होंठ खुल कर मगर मुस्काते नहीं
बढ़ गयी इतनी  खराशें गले में,ठीक से अब गुनगुना पाते नहीं
बांसुरी अब हो गयी है बेसुरी,सुर बराबर भी निकल पाते नहीं
यूं तो बादल घुमड़ते है जोर से,मगर बेबस से बरस पाते नहीं
उम्र ने एसा असर है कर दिया,चाह है पर कुछ भी कर पाते नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'