Sunday, January 8, 2012

बेबसी

बेबसी
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तमन्ना है चाँद को जाकर छुए,खड़े  ढंग से मगर हो पाते नहीं
हुस्न की खिलती बहारें देख कर,छटपटाते,पर पटा पाते नहीं
खाने के तो हम बड़े शौक़ीन है,ठीक से पर अब पचा पाते नहीं
मन तो करता खिलखिला कर हम हँसे,होंठ खुल कर मगर मुस्काते नहीं
बढ़ गयी इतनी  खराशें गले में,ठीक से अब गुनगुना पाते नहीं
बांसुरी अब हो गयी है बेसुरी,सुर बराबर भी निकल पाते नहीं
यूं तो बादल घुमड़ते है जोर से,मगर बेबस से बरस पाते नहीं
उम्र ने एसा असर है कर दिया,चाह है पर कुछ भी कर पाते नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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