Friday, November 28, 2014

               खड़े खड़े

हमें है याद स्कूलमे,शैतानी जब भी करते थे,
              सज़ा अक्सर ही पाते थे,बेंच पर हम खड़े होकर
गए कॉलेज तो तकते थे,लड़कियों को खड़े होकर,
              नया ये शौक पाला  था ,जवानी में बड़े होकर
हुस्न कोई अगर हमको ,कहीं भी है नज़र आता ,
              अदब से हम खड़े होकर ,सराहा करते ,ब्यूटी है
ट्रेन लोकल में या बस में,सफर  करते खड़े होकर ,
              खड़े साहब के आगे हो ,निभाया करते ड्यूटी  है
मुसीबत लाख आये पर ,तान सीना खड़े रहते ,
               बहुत है होंसला जिनमे,उन्हें सब मर्द कहते है
किसी की भी मुसीबत में,खड़े हो साथ देते है ,
               दयालू लोग वो  होते, उन्हें  हमदर्द   कहते  है
बनो नेता ,करो मेहनत ,इलेक्शन में खड़े  होकर,
              जीत कर पांच वर्षों तक ,बैठ सकते हो कुर्सी पर
बड़े एफिशिएंट कहलाते ,तरक्की है सदा पाते ,
               काम  घंटों का मिनटों में,जो निपटाते खड़े रह कर
खड़े हो जिंदगी की जंग को है  जीतना पड़ता ,
               आदमी रहता है सोता ,अगर यूं ही पड़ा  होता      
खड़े होना सज़ा भी है,खड़े होना मज़ा भी है,
                जागता आदमी है जब ,तभी है वो खड़ा होता
इशारे उनकी ऊँगली के ,और हम नाचे खड़े होकर ,
                  जवानी में खड़े होकर ,बहुत की उनकी खिदमत है
आजकल तो ठीक से भी,खड़े हम हो नहीं पाते ,
                    बुढ़ापा ऐसा आया है,  हो गयी पतली हालत है

मदन  मोहन बाहेती'घोटू'     

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