Wednesday, June 25, 2014

     उमर के साथ साथ

कभी जब उनके कन्धों की,दुपट्टा शान होता था ,
      वो चलते थे तो लहराता ,हमें वो लगती  थी तितली
खुले बादल से जब गेसू,हवा में,उनके,उड़ते थे ,
       अदा से जब वो मुस्काते  ,चमकते दांत बन बिजली
जवानी में ये आलम था ,ठुमक कर जब वो चलते थे,
        थिरकता जिस्म मतवाला  , बना  देता  था  दीवाना
उमर ने करदी ये हालत, रही ना जुल्फ काली अब ,
         पाँव में आर्थराइटिस है,बड़ा मुश्किल है  चल  पाना
मगर एक बात है अब भी,कशिश जो पहले उन में थी,
          अभी तक वो ही कायम है,लुभाती हमको उतना ही
हमारी उनकी चाहत में,न आया कोई  भी अंतर ,
            गयी बढ़ती उमर जैसे ,बढ़ा है प्यार उतना ही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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