Sunday, March 27, 2011

आ तेरा श्रृंगार करूँ मै

आ तेरा  श्रृंगार करूँ मै
तुझको जी भर प्यार करूँ मै
बूढा  तन,सल भरी उंगलियाँ,
हीरा जड़ित अंगूठी उनमे
दोपहरी की चमक आ गयी ,
हो जैसे ढलते सूरज में
जगमग मोती की लड़ियों से ,
आजा तेरी मांग भरूं  मै
आ तेरा श्रृंगार करूँ मै
बूढ़े हाथों की कलाई पर
स्वर्णिम कंगन ,खन खन करते
टहनी पर जैसे पलाश की
सुन्दर फूल केसरी झरते
इस पतझड़ के मौसम में भी
आ बासन्ती रंग भरूं मै
आ तेरा श्रृंगार करूँ मै
मणि माला का बोझ ग्रिव्हा पर,
और करघनी झुकी कमर में
नयी नवेली सी लगने का
शौक चढ़ा है ,बढ़ी उमर में
अपनी धुंधली सी आँखों से
आ तेरा दीदार करूँ मै
आ तेरा श्रृंगार करूँ मै




2 comments:

  1. bahut marmik rachna.dil ko choo gai.

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  2. word verification blog se hata de to comment karne me aasaani hogi.

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